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ठंडी क्या आफ़त है भाई 

ठंडी क्या आफ़त है भाई, 
सर पे टोपी बदन रजाई।
  
भूले बाबा सैर सपाटा, 
गलियों में कैसा सन्नाटा, 
मौसम ने क्या ली अंगड़ाई, 
बिस्तर बिस्तर सुस्ती आई, 
 
पानी क्या है ज़ोर तमाचा, 
गुथ नहीं पाए भी आटा, 
सब्ज़ी कैसे काटे भाई, 
अजब ग़ज़ब है पीड़ पराई,
  
सन सन सन हवा जो आती, 
कानों को क्या ख़ूब सताती, 
गरम चाय को जी ललचाए, 
दास्ताने जी भर के भाए, 
 
गरम पकौड़े गरम कढ़ाई, 
इनके जैसा ना दूजा भाई, 
दादी का क्या चले खर्राटा, 
जैसे कोई बड़ा पटाखा, 
 
ए सी ने फ़ुरसत है पाई, 
पंखे दीखते हैं हरजाई, 
भूल गए सब चादर वादर, 
कूलर भी ना रहा बिरादर, 
 
क्या दुबले क्या मोटे तगड़े, 
एक एक कर सबको रगड़े, 
थर थर थर थर कँपते गात, 
और मुँह से निकले भाप, 
 
बाथ रूम से जब हो आते, 
एक बूँद से भले नहाते, 
कट कट कट दाँत बजाते, 
गरम आग पर हम तन जाते, 
 
चाचा चाची काका काकी, 
साथ बैठ कर घुर तपाते, 
साथ बैठकर मिल सब गाते, 
 
इससे बड़ी ना विपदा भाई, 
ठंडी क्या आफ़त है भाई, 
सर पे टोपी बदन रजाई।

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