व्यापार
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता अजय अमिताभ 'सुमन'21 Feb 2019
दिल की जो बातें थीं सुनता था पहले,
सच ही में सच था जो कहता था पहले।
करने अब सच से खिलवाड़ आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।
कमाई की ख़ातिर दबाता है सब को,
गिरा कर औरों को उठता है ख़ुद को।
कि ज़ेहन में उसके जुगाड़ आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।
मुनाफ़े की बातें ही बातें ज़रूरी।
दिन में ज़रूरी, रातों को ज़रूरी।
देख वायदों में उसके क़रार आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।
पैसे की चिंता ही उसको भगाती,
दिन में बेचैनी, रातों को जगाती।
दौलत पे ही उसको प्यार आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।
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