अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
आलेख | सामाजिक आलेख डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
वैज्ञानिक दृष्टिकोण कल्पनाशीलता एवं अंतर्ज्ञान से निर्मित होता है। किसी भी वैज्ञानिक खोज का आधार अंतर्ज्ञान से उपजी कल्पनाशीलता होती है। और यह अंतर्ज्ञान आध्यात्मिकता से ही चेतन होता है। वैज्ञानिक खोज वास्तविकता धरातल पर होती है। एक ऐसी वास्तविकता जिसे हम स्वीकार करें या न करें। विज्ञान हमारे मन की अमूर्त शक्तियों पर आधारित है जिसमें हमारी उत्कृष्टता की सारी उम्मीदें निहित हैं। वास्तव में विज्ञान, कला एवं मानव संबंधों में नैतिक मूल्यों एवं परिवर्तनों का गहरा प्रभाव पड़ता है एवं यही मूल्य विज्ञान की रचनात्मक खोजों के वास्तविक आधार होते हैं। हमारा अंतर्ज्ञान तालमेल के नए मानक तय करता है एवं इन मानकों के आधार पर मानव मस्तिष्क वास्तविकता को समझता है एवं यह वास्तविकता की समझ विज्ञान की खोजों को प्रतिपादित करती है। हमारा अंतर्ज्ञान एक अतिरिक्त सहायक के रूप मस्तिष्क से तालमेल कर नए विचारों को सृजित करता है एवं ये विचार विज्ञान की खोजों के सिद्धांत बनते हैं। आध्यात्मिकता एवं बौद्धात्मिकता से भौतिकता की ओर बढ़ता ये विश्व हर स्तर पर विवाद और संघर्ष से घिरा हुआ है। ये विश्व शांति एवं सद्भाव की खोज में विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच विवाद में फँस कर रह जाता है। समकालीन परिदृश्य में वे प्रयास जो इन दोनों के लिए सेतु का काम करते हैं अराजकता की बाढ़ में बह जाते हैं।
आध्यात्मिकता क्या है –
शब्दकोष से इसे परिभाषित करना बहुत कठिन है। इसे हम रहस्यों से मुलाक़ात कह सकते हैं। आध्यात्मिकता व्यक्ति की वह जीवन पद्धति जिससे वह अपने जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। किसी भी धर्म को उसकी आध्यात्मिक प्रणाली से ही परिभाषित किया जा सकता है। धर्म जटिल प्रणालियों का वह आचरण है जो संघटित या असंघटित लोगों को किसी देवी देवता की आस्था में निजी जीवन में आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों का आचरण करवाता है एवं दूसरे व्यक्तियों एवं पूजन पद्धतियों के सापेक्ष सम्बन्ध स्थापित करवाता है। अध्यात्म वह आन्तरिक मार्ग है जो व्यक्ति को उसके अस्तित्व की खोज में सक्षम बनाता है।
विज्ञान क्या है –
प्राकृतिक दुनिया को जानने का तर्क संगत,अनुभवजन्य, ज्ञानवादी सात्विक प्रकार जो साधनों के आधार पर किसी विचार को सिद्धांत मान कर प्रतिपादित करता है उसे हम विज्ञान कहते हैं। विज्ञान हमेशा से सिद्धांतों के प्रतिपादन में लगा रहता है। इस प्रतिपादन में तथ्य एवं तार्किक सबूत किसी भी पदार्थ एवं प्रक्रिया को विश्लेषित करते हैं। विज्ञान हमेशा अवधारणा को अपने ज्ञान एवं तर्क से तौलता है और प्रयोगों के आधार पर अपना निष्कर्ष देता है। विज्ञान के सभी सिद्धांत कसौटी पर कसे जाते हैं एवं प्रत्येक मनुष्य की बुद्धि एवं समझ से गुज़र कर ही सर्वमान्य एवं सार्वभौमिक बनते हैं।
विज्ञान एवं अध्यात्म के संबंधों की अवधारणायें– अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने अपनी किताब “साइंस फिलासफी एंड रिलिजन“ में लिखा है कि “आध्यात्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है एवं विज्ञान के बिना आध्यात्म अंधा” इस महान वैज्ञानिक का यह वाक्य दर्शाता है कि विज्ञान एवं अध्यात्म में अन्तरंग सम्बन्ध है हालाँकि इन दोनों के सम्बन्ध में सभी दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत हैं। इन मतों को चार मॉडलों में विभाजित किया गया है जो निम्नानुसार हैं–
-
वार फ़ेयर मॉडल – यह मॉडल विज्ञान एवं धर्म या आध्यात्मिकता को एक दूसरे के विरुद्ध मनाता है। इसमें उन सिद्धांतों को मान्य किया गया है जो धर्म को विज्ञान के विपरीत मानते हैं। इन सिद्धांतों के अनुसार या तो विज्ञान धर्म और आध्यात्मिकता पर भारी है या धर्म विज्ञान पर दोनों का कभी सामंजस्य नहीं हो सकता है।
-
अलग अधिकार क्षेत्र के सिद्धांत – इन सिद्धांतों के अनुसार विज्ञान एवं आध्यात्मिकता बिलकुल अलग हैं इन दोनों के कार्य क्षेत्र एवं संभावनाएँ अलग-अलग हैं। विज्ञान प्राकृतिक संसार को प्रतिपादित करता है जबकि आध्यात्मिकता आत्मिक संसार को। इन सिद्धांतों के मॉडल में भी विज्ञान एवं आध्यात्मिकता को अलग माना गया है।
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संयोजन के सिद्धांत – इन सिद्धांतों के अनुसार विज्ञान एवं अध्यात्म सीधे एक दुसरे से सम्बंधित हैं। मानव का चतुर्दिक विकास तभी संभव है जब विज्ञान एवं अध्यात्म का संयोजन होता है।
-
प्रति सम्बन्ध सिद्धांत – इन सिद्धांतों के अनुसार विज्ञान एवं अध्यात्म विचारों का वह समन्वय स्वरूप है जो भौतिक एवं आत्मिक संसार को परिभाषित करता है।
पहले दो सिद्धांतों का समूह विज्ञान एवं अध्यात्म को अलग दर्शाते हैं एवं आख़िरी के दो मॉडल विज्ञान एवं अध्यात्म को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते हैं। अधिकांश वैज्ञानिक एवं दार्शनिक अंतिम दो सिद्धांतों का ही प्रतिपादन करते हैं।
1914 में एक समाज वैज्ञानिक जेम्स ल्यूबा ने एक सर्वेक्षण किया और यह जानने की कोशिश की कि कितने वैज्ञानिकों की ईश्वर में आस्था है। क़रीब 42% वैज्ञानिकों ने माना की उन्हें भगवान के अस्तित्व पर विश्वास है। जब उन्होंने धर्म एवं विज्ञान के संबंधों पर विश्लेषण किया तो यह पाया गया कि तीन चीज़ें विज्ञान को धर्म से जोड़ती हैं।
ब्रह्माण्ड – जो कि विज्ञान के अन्वेषण का प्रमुख केंद्र बिन्दु है एवं सारा अध्यात्म इसी ब्रह्माण्ड में निहित है।
प्रकृति – प्राकृतिक रहस्यों के प्रतिपादन में हमेशा विज्ञान लगा रहता है एवं मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना भी इसी प्रकृति की देन है।
उर्जा – विज्ञान ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति में सन्नहित उर्जा को विश्लेषित करता है एवं विज्ञान के सारे प्रयोग इसी उर्जा के इर्दगिर्द नए अविष्कारों का सृजन करते हैं। मनुष्य का आतंरिक धर्म अध्यात्म भी इसी उर्जा में मनुष्य के स्व के अस्तित्व की तलाश करता है।
विज्ञान एवं अध्यात्म के परस्पर सम्बन्ध –
पाँच प्रयोग जो विज्ञान एवं अध्यात्म का परस्पर सम्बन्ध प्रतिपादित करते हैं –
1. ध्यानस्थ शरीर में स्वस्थ जीन सक्रिय होते हैं – जनरल हॉस्पिटल बोस्टन में वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया जिसमे क़रीब 26 ध्यान करने वाले लोगों का एक प्रशिक्षण शिविर लगाया गया। उसमें प्रथम दिन उनकी पूरी जाँच की गई। क़रीब आठ सप्ताह तक ध्यान करने पर वैज्ञानिकों ने उन लोगो के शरीर की जीन प्रोफ़ाइल की जाँच कर विश्लेषण किया तो पाया कि उसमें अद्भुत परिवर्तन हुआ है। उनके ऊर्जा का स्तर बहुत उच्च दशा में पाया गया, ब्लड शुगर अधिक संतुलित पाई गई व ऐंटी एजिंग एवं ऐंटी इन्फ़्लमेटरी प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है।
2. व्यक्तिगत प्रार्थनाएँ ऊर्जा प्रदान करती हैं – डुनेडिन विश्व विद्यालय में प्रयोगशाला में पौधों को दो क़तारों में रख कर एक क़तार के सामने व्यक्तिगत प्रार्थनाएँ की गई एवं दूसरी क़तार के सामने अपशब्दों का प्रयोग किया गया। परिणामों की गहन व्याख्या की गई तो पाया गया की प्राथनाओं की क़तार के पौधे बहुत पुष्ट एवं ऊर्जा से भरे पाये गए जबकि अपशब्दों की क़तार के पौधे रूखे एवं क्लांत पाये गए। व्यक्तिगत प्राथनाओं से आत्मनियंत्रण का स्तर बढ़ता है एवं तनाव के स्तर में कमी आती है।
3. योग से मस्तिष्क के प्रचलन की क्षमता में वृद्धि होती है – इलियानोए (Illinois) विश्वविद्यालय में क़रीब 30 छात्रों को क़रीब 20 मिनिट की योग कसरत करवाई गई और पाया गया कि उनमें विज्ञान के विषयों को समझने की क्षमता में अद्भुत वृद्धि हुई है।
4. सामूहिक प्रार्थनाओं से हृदय एवं धमनियों को फ़ायदा मिलता है – स्वीडन की गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में तीन समूहों से सामूहिक प्रार्थना के रूप में गायन एवं मंत्र उच्चारण करवाया गया और पाया गया कि मंत्र उच्चारण से हृदय एवं धमनियों में रक्त का संचार संतुलित हो जाता है।
5. उपवास से महत्वपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है – कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोध छात्रों ने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया है की उपवास में महत्वपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता शीर्ष पर होती है एवं बिना किसी हिचकिचाहट के व्यक्ति उचित निर्णय लेते हैं।
उपरोक्त पाँच प्रयोग विज्ञान एवं आध्यात्मिकता के संयोजन को प्रतिपादित करते हैं। विज्ञान खोज के लिए बाहरी या भौतिक जगत का प्रयोग करता है जबकि आध्यात्मिक खोज के लिए आत्मिक जगत का प्रयोग किया जाता है। विज्ञान प्रतिपादित करता है कि "यह जगत क्या है?" जबकि अध्यात्म प्रतिपादित करता है कि "मैं कौन और क्या हूँ?" विज्ञान की समझ हमें दूसरों से परिचित कराती है जबकि आध्यात्म की बुद्धि हमें स्वयं से परिचित कराती है। यह जगत चेतन एवं अचेतन पदार्थों से बना हुआ है। पदार्थों का परीक्षण विज्ञान के अंतर्गत आता है एवं चेतन व अंतर्मन को समझ कर उसे जाग्रत रखना आध्यात्म के अंतर्गत आता है। वास्तव में विज्ञान शब्द की पूर्णता, उद्देश्य एवं सार्थकता आध्यात्म में ही निहित है। विज्ञान सिद्धांतों को भौतिक रूप से प्रतिपादित करता है जबकि आध्यात्मिकता में सिद्धांत भौतिक रूप से प्रतिपादित नहीं किया जा सकते हैं। विज्ञान हमें पदार्थ एवं प्रकृति को समझाता है जबकि आध्यात्मिकता सिर्फ़ मन एवं संकल्प पर आधारित है। सभ्यता वैज्ञानिक या भौतिक खोजों एवं अनुभवों का एक सतत प्रयास है। इन खोजों एवं प्रयासों से समाज विकास की ओर उन्मुख होता है एवं मानव ज्ञान इससे परिष्कृत होता है। चेतना पदार्थों से ऊपर है एवं चेतन ही अपनी इच्छा से पदार्थों का उपभोग कर सकते है। अतः हम कह सकते हैं की आध्यात्मिकता विज्ञान का अंतिम स्वरूप है।
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