अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

पचमढ़ी यात्रा

 

सतपुड़ा की रानी से मिलने का बहुत मन था, हरी-भरी मुस्कुराती, मन को भाती रानी, हरियाली और वन्य जीवों से परिपूर्ण सतपुड़ा के घने जंगलों के मध्य पंचमढ़ी अत्यंत सुंदर और मोहक स्थान है। हरे-भरे पहाड़ों के बीच में से कलकल बहता पानी, अनगिनत झरने, कहीं साल के घने जंगलों के बीच में खुले खेत, बाँस व जामुन के बग़ीचे और लाल मिट्टी पचमढ़ी की ख़ास पहचान है। 

आख़िर अपने को रोक न सका और चल दिया सतपुड़ा की रानी से मिलने, सुबह पाँच बजे अरुणोदय की लालिमा से युक्त आकाश जंगलों के हरे-भरे, टेढ़े-मेढ़े रास्तों के बीच, ‘अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आएगा’ गुनगुनाते हुए हम पचमढ़ी सुबह आठ बजे पहुँचे, चाय नाश्ते के बाद हम रानी से मिलने निकल पड़े।  

सबसे पहले हम पांडव गुफा पहुँचे, पहाड़ी पर बड़ी से चट्टान में बनी हैं ये पाँच गुफाएँ जिन्हें पाँच पांडवों के नाम से जाना जाता है। इन पाँच मढ़ियों से ही पचमढ़ी को अपना यह नाम मिला है। जंगलों और पहाड़ियों के लिहाज़ से रीछगढ़, हाँड़ी खोह, पवित्र महादेव, छोटा महादेव, चौरागढ़, जटाशंकर पचमढ़ी के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। ये सभी स्थान मुख्य रूप से शिव की आराधना से जुड़े हुए हैं। लेकिन सभी प्राकृतिक रूप से बेहद ख़ूबसूरत हैं। चट्टानों व पत्थरों के बीच से बहता रजत प्रपात यानी बिग फ़ॉल और उसकी तलहटी में बना अप्सरा विहार और खड़ी व मुश्किल उतराई वाला जलावतरण यानी (डचेस फ़ॉल) यहाँ के मुख्य प्रपातों में एक हैं। जस्टिस विवियन बोस की पत्नी इरिन बोस द्वारा खोजा गया इरिन पूल, डचेस फाल से ढाई किलोमीटर दूर तैरने के लिए बेहतरीन सुंदर कुंड (सांडर्स पूल), त्रिधारा (पिकर्डिली सर्कस), देनवा धारा पर वनश्री विहार (पेनसी पूल) व संगम (फुलर्स खुड) प्रमुख हैं। और अंत में सतपुड़ा की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ से सूर्यास्त का नज़ारा देखकर हमारी सतपुड़ा की रानी से मुलाक़ात संपन्न हुई किन्तु उस मुलाक़ात की स्मृतियाँ आज भी हमारे मन में गहरी अंकित हैं। 

निर्मल रूप
सतपुड़ा की रानी
शिव सानिध्य। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

हाँ धरती हूँ मैं
|

प्रकृति विलाप  मैं वही धरती हूँ जिसके…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक

कविता

गीत-नवगीत

दोहे

लघुकथा

कविता - हाइकु

नाटक

कविता-मुक्तक

वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

चिन्तन

कविता - क्षणिका

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

सामाजिक आलेख

बाल साहित्य कविता

अनूदित कविता

साहित्यिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

कहानी

एकांकी

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं