मातृभाषा
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. सुशील कुमार शर्मा15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
“योर प्रेजेंटेशन इज़ स्प्लेंडिड, आई अप्प्रेशियेट इट। वेयर आर यू फ़्रॉम मिस्टर शशि?” एक अचानक अनजान बुलंद आवाज़ से शशि चौंक गया।
शशि केलिफोर्निया में एक समारोह में प्रवासी नागरिकों में धर्म के प्रति दृष्टिकोण पर प्रमुख वक्ता के रूप में अपने विचार प्रकट करने वहाँ उपस्थित था। बहुत सारे देश के प्रवासी नागरिक वहाँ अपने विचार प्रकट कर रहे थे।
“ओ आई एम फ़्रॉम इण्डिया,”शशि ने औपचारिक रूप से उत्तर दिया।
“आई नो योर जेस्चर एंड द थॉट्स आर प्योरली इंडियं’स,” उस अनजान अधेड़ व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा। उस व्यक्ति की भाषा का लहजा शुद्ध अमेरिकन लग रहा था।
“ओ थैंक्स फॉर योर काइंड अप्रेसिअशन,”शशि ने बहुत विनम्र स्वर में कहा।
“बट आई वांट टू नो इन व्हिच स्टेट यू लिव इन इंडिया?” वह व्यक्ति शशि से बहुत औपचारिक होने की कोशिश में था।
“आई एम फ़्रॉम एम पी, मध्यप्रदेश?” शशि ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अरे आप मध्यप्रदेश से हैं वाह,” उस व्यक्ति का चेहरा चमक गया। उसने शशि का हाथ पकड़ा और लगभग खींचता हुआ एक अलग कोने में ले गया। अभी तक उनका सम्भाषण अँग्रेज़ी में चल रहा था; मध्यप्रदेश का नाम सुनते ही उनका सम्भाषण हिंदी में शुरू हो गया।
“जी मैं मध्यप्रदेश से ही हूँ?” शशि को बहुत आश्चर्य हो रहा था कि ये व्यक्ति उसमें इतना इंट्रेस्ट क्यों ले रहा है।
“अच्छा ये बताइये कि आप मध्यप्रदेश में कहाँ से हैं?” उस अधेड़ व्यक्ति के चेहरे पर एक अनोखा अपनापन था।
“जी मैं जबलपुर से हूँ,” शशि ने पुनः मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
“क्या जबलपुर से हो?” एक आश्चर्य मिश्रित चीख उस व्यक्ति के मुँह से निकली।
“जी,” शशि ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
“जबलपुर में कहाँ रहते हो,” उस व्यक्ति ने बहुत ही स्नेह पूर्वक शशि का हाथ अपने हाथ में पकड़ा।
“जी मैं वास्तव में नरसिंहपुर का रहने वाला हूँ। चूँकि नरसिंहपुर के नाम से यहाँ अमेरिका में बहुत कम लोग जानते हैं इसलिए जबलपुर कहना पड़ता है।”
“तुम . . . तुम नरसिंहपुर के हो?” उस व्यक्ति का पूरा शरीर रोमांचित था।
“लेकिन आप . . . . . . . . ” शशि का वाक्य अधूरा रह गया।
“तू जा बता नरसिंहपुर में तू कहाँ रहत हे,” वह व्यक्ति खिलखिला कर हँस रहा था।
“जी मैं गाडरवारा का रहने वाला हूँ,” शशि अभी भी आश्चर्य से उस व्यक्ति को देख रहा था।
“अरे मोरी मैया तू तो मेरे गाँव को निकरो रे!” वह शशि के गले से झूम गया वह बार-बार शशि को गले लगा रहा था।
“तो आप क गाडरवारा में रहत हो?” शशि समझ गया कि ये भी गाडरवारा के हैं।
“गाडरवारा के जोरे इमलिया के हम रहन वारे हैं भैया तोहे नै मालूम आज मोहे कित्ती ख़ुशी हो रै है। मेरो नाम डॉ. कृपाल कौरव है पिछले 40 साल से मैं इते रहत हों डाक्टरी करत हों।”
डॉ. कृपाल बहुत अभिभूत थे वह सिर्फ़ बुंदेलखंडी में ही बातें कर रहे थे, अपने परिवार से उन्होंने शशि का परिचय करवाया, शशि को ज़बरदस्ती अपने घर ले गए पूरा परिवार शशि से मिलकर बहुत ख़ुश था।
डॉ. कृपाल शशि से कह रहे थे, “यार महराज कोई अपने गाँव को अपनी भाषा को जा विदेश में मिल जात तो लगत है सूने जीवन में बहार आ गई।”
शशि मुस्कुराते हुए सोच रहा था कि व्यक्ति विश्व के किसी भी कोने में चला जाए अपनी जड़ों और अपनी भाषा को कभी नहीं भूलता।
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