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बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर: समता, न्याय और नवजागरण के प्रतीक


 (विशेष आलेख-सुशील शर्मा) 

 

भारतीय समाज की ऐतिहासिक यात्रा में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो समय की रेखाओं को मोड़कर नया इतिहास रचते हैं। डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का जीवन एक ऐसी ही प्रेरक गाथा है, जो न केवल दलित समुदाय के अधिकारों की चेतना का केंद्र रही, बल्कि समग्र भारतीय समाज के नवनिर्माण की नींव भी बनी। उनका जीवन-दर्शन सामाजिक न्याय, समानता, शिक्षा, स्वाभिमान और बौद्धिक स्वतंत्रता के उन आदर्शों से परिपूर्ण है, जो आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक हैं। 

बाबा साहब का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू (मध्यप्रदेश) में एक अत्यंत ग़रीब और समाज के सबसे पिछड़े वर्ग में हुआ था। जन्म से ही उन्होंने जातिगत भेदभाव, अपमान और सामाजिक बहिष्कार का सामना किया। लेकिन विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने शिक्षा को अपना अस्त्र बनाया और अपने आत्मबल से वह कर दिखाया, जो उस समय लगभग असंभव माना जाता था। 

वे कोलंबिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले भारतीयों में से एक थे, और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से क़ानून व अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा को उन्होंने केवल ज्ञान का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक मुक्ति का हथियार माना। 

एक कविता: 

मैंने देखा था सपना
 
मैंने देखा था सपना एक समाज का, 
जहाँ न कोई ऊँचा, न कोई नीचा हो, 
जहाँ मनुष्य सिर्फ़ मनुष्य हो, 
और इंसानियत सबसे बड़ी नीति हो। 
 
जहाँ किताबें बंद न हों दरवाज़ों पर, 
जहाँ स्कूल सबके लिए खुला हो, 
जहाँ धर्म का अर्थ हो करुणा, 
न कि किसी पर दंभ या बोझा हो। 

बाबा साहब का जीवन केवल व्यक्तिगत संघर्ष नहीं था, बल्कि वह एक सामाजिक क्रांति की मशाल थे। उन्होंने अस्पृश्यता, जातिवाद और अन्याय के विरुद्ध आजीवन संघर्ष किया। 1930 के दशक में उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ तथा ‘महाड़ सत्याग्रह’ के माध्यम से सामाजिक समानता की लड़ाई को व्यापक जनांदोलन का रूप दिया। 

वे मानते थे कि बिना सामाजिक न्याय के राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है। संविधान निर्माण में उनके योगदान को भारत कभी नहीं भूल सकता। एक संविधान निर्माता के रूप में उन्होंने भारत को एक ऐसा लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समतावादी संविधान दिया, जिसमें प्रत्येक नागरिक को बराबरी का अधिकार प्राप्त है। 

उनका यह विश्वास था कि—“क़ानून और व्यवस्था समाज की सबसे बड़ी सुरक्षा होती है, और जब समाज में न्याय नहीं होता, तब क्रांति जन्म लेती है।”

बाबा साहब ने स्त्रियों के अधिकारों को भी संविधान में विशेष महत्त्व दिया। उन्होंने शिक्षा, सम्पत्ति और विवाह में समानता की पैरवी की। वे भारत के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने स्त्री मुक्ति को सामाजिक मुक्ति का अभिन्न अंग माना। 

धर्म के क्षेत्र में भी बाबा साहब की दृष्टि मौलिक और वैज्ञानिक थी। उन्होंने 1956 में बौद्ध धर्म ग्रहण किया, और लाखों अनुयायियों को भी इस मार्ग पर चलाया। उनके लिए धर्म कोई कर्मकांड नहीं, बल्कि जीवन को नैतिकता, करुणा और समता से जोड़ने वाला मार्ग था। वे कहते थे—“मैं ऐसा धर्म अपनाऊँगा, जो मानवता को ऊपर उठाए, न कि किसी को नीचा दिखाए।”

बाबा साहब का जीवन-दर्शन निम्न बिंदुओं पर आधारित है:

  • शिक्षा: आत्मनिर्भरता और सामाजिक बदलाव का आधार

  • संगठन: शक्ति का स्रोत

  • संघर्ष: अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के बिना परिवर्तन सम्भव नहीं

  • धर्म: नैतिकता और मानवता का मार्ग

  • संविधान: समानता, स्वतंत्रता और न्याय का संवैधानिक ढाँचा

आज जब हम भारत को समतामूलक समाज की दिशा में बढ़ते हुए देखना चाहते हैं, तो बाबा साहब के विचार और योगदान हमें निरंतर प्रेरित करते हैं। 

बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर केवल एक नेता नहीं, एक विचारधारा हैं। उनका जीवन-दर्शन समाज के उस हिस्से के लिए आशा की किरण है, जो वर्षों से हाशिये पर रहा है। उनका संघर्ष हमें सिखाता है कि विषमता के अंधकार में भी आत्मबल, शिक्षा और दृढ़ निश्चय से परिवर्तन की मशाल जलाई जा सकती है। 

उनकी वाणी आज भी गूँजती है—“हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं।”

उनके जन्मदिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन। आइए, उनके दिखाए मार्ग पर चलकर हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जहाँ समता, न्याय और करुणा का प्रकाश हर जीवन को आलोकित करे। 

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