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पति का बटुआ

शुभ्रा की आदत आम पत्नियों की तरह अपने पति के बटुए तलाशने की नहीं थी, उसे जब भी पैसे चाहिए होते तो वो आनंद से माँग लेती थी किन्तु कभी उसने आनंद का बटुआ नहीं छुआ था।

आज जब शुभ्रा आनंद की पेंट धोने ले जा रही थी तो देखा उसके पेंट में बटुआ रखा हुआ है।

"बहुत भुलक्कड़ हो तुम आनंद," शुभ्रा बुदबुदाई।

उसने बटुआ निकाल कर मेज़ पर रखा, निकालते समय उसने देखा बटुआ बहुत भारी है, उसमें पैसों के साथ-साथ कुछ काग़ज़ात भी रखे हैं। पहले उत्कंठा हुई कि बटुआ देखा जाए लेकिन उसकी अंतरात्मा ने मना कर दिया और उसने मुस्कुराकर बटुआ मेज़ पर रख दिया।

कपड़े धोकर जब वह मेज़ के पास से निकली तो मेज़ को हल्का धक्का लगा और बटुआ नीचे गिरा। बटुए से आनंद की एक फोटो नीचे गिरी। उस फोटो में आनंद एक बच्चे को गोद में उठाये हुए था।

उसे आश्चर्य हुआ उनका अभी तक कोई बच्चा नहीं है फिर ये बच्चा कौन है? शुभ्रा सारा दिन उसी बच्चे के बारे में सोचती रही किसका बच्चा है? आनंद ने कभी कुछ इस बच्चे के बारे में बताया नहीं।

शाम को आनंद घर आया शुभ्रा ने नाश्ता और चाय की प्लेट मेज़ पर रख दी, "आज थके हुए से लग रहे हो," शुभ्रा ने पूछा।

"नहीं कोई विशेष बात,"आनंद ने उदासी भरे स्वर में कहा।

शुभ्रा ने वह फोटो आनंद के सामने रख दी, "यह कौन है?"

फोटो देख कर आनंद के आँखों में आँसू आ गए, "शुभ्रा इसे ब्लड कैंसर है।"

"कौन है ये बच्चा?"शुभ्रा ने फिर प्रश्न किया।

"अनाथाश्रम का बच्चा है उसे ब्लड कैंसर है, मैंने उसके इलाज की ज़िम्मेवारी ली है लेकिन डॉक्टर कह रहे हैं कुछ दिन का ही मेहमान है," आनंद ने सुबकते हुए कहा।

"मुझे क्यों नहीं बताया?"शुभ्रा ने शिकायत भरे अंदाज़ में कहा।

"इलाज का ख़र्च बहुत ज़्यादा था; मैंने सोचा तुम्हें क्यों तनाव दूँ, इसलिए बस और कोई बात नहीं थी," आनंद ने शुभ्रा की देखते हुए कहा।

"चलो!"शुभ्रा ने आनंद का हाथ खींचते हुए कहा।

"लेकिन कहाँ?" आनंद ने आश्चर्य से शुभ्रा की ओर देखा।

"इसे लेने," शुभ्रा ने बच्चे की तस्वीर की ओर इशारा किया।

"लेकिन. . .," आनंद ने कुछ कहना चाहा।

"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। हम आज ही उस बच्चे को अनाथाश्रम से लेकर आएँगे। हम ईश्वर तो नहीं हैं कि उसको ज़िंदगी दे दें लेकिन जब तक वह ज़िन्दा है, हम उसे माँ बाप का स्नेह ज़रूर दे सकते हैं," शुभ्रा ने कार की चाबी आनंद की ओर उछाली।

लौटते हुए शुभ्रा की गोद में वह नन्हा बच्चा मुस्कुरा रहा था। उसने उसी पल में अपनी सारी ज़िंदगी जी ली थी।

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