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माँ सिद्धिदात्री: भक्त की प्रार्थना

 

हे माँ सिद्धिदात्री, 
नवरात्र के नवम दिवस पर
आपके दिव्य प्राकट्य का ध्यान करता हूँ। 
देवताओं, ऋषियों और योगियों ने
आपकी कृपा से सिद्धियाँ पाईं, 
आप ही वह आदिशक्ति हैं
जिससे ब्रह्मा को सृष्टि की प्रेरणा मिली, 
विष्णु को पालन का सामर्थ्य, 
और महादेव को संहार की शक्ति। 
आपकी कृपा के बिना
त्रिलोकी का संचालन ही सम्भव नहीं। 
 
हे माँ, 
आपका रूप अपार करुणा और ज्ञान का स्रोत है। 
आप कमलासन पर विराजमान, 
चार भुजाओं से सुसज्जित
एक हाथ में चक्र, 
दूसरे में गदा, 
तीसरे में शंख, 
और चौथे में कमल पुष्प। 
आपके नेत्रों में करुणा की गहराई है, 
आपकी वाणी मौन में भी ज्ञान का संचार करती है। 
आपकी आभा से समस्त दिशाएँ आलोकित हो उठती हैं। 
 
आपका प्राकट्य
केवल शक्ति का नहीं, 
बल्कि सिद्धियों का दान है। 
आप वह माँ हैं
जो साधक को अष्टसिद्धि और नव निधि देती है, 
परन्तु साथ ही यह भी सिखाती है
कि सिद्धियाँ केवल अहंकार के लिए नहीं, 
बल्कि लोककल्याण के लिए हैं। 
 
हे माँ सिद्धिदात्री, 
आपकी आराधना में मैं
कमल और तुलसी के पुष्प अर्पित करता हूँ, 
आपके चरणों में सुगंधित धूप और दीप जलाता हूँ। 
भोग स्वरूप मैं दूध और चने का प्रसाद चढ़ाता हूँ, 
क्योंकि यह सादगी और समर्पण का प्रतीक है। 
पर जानता हूँ
सच्चा भोग वही है
जब हृदय की निष्ठा अर्पित की जाए। 
 
आपका आध्यात्मिक स्वरूप
योगियों की साधना का लक्ष्य है। 
आप सहस्रार चक्र में स्थित दिव्य शक्ति हैं, 
जहाँ पहुँचकर साधक
पूर्णता और मुक्ति का अनुभव करता है। 
आपकी उपासना ही आत्मा को ईश्वर से मिलाती है। 
 
हे माँ, 
आपकी कृपा से
भक्त भयमुक्त होता है, 
उसके भीतर ज्ञान और विवेक का दीप जलता है। 
आपका व्रत रखने वाला
सभी पापों से मुक्त होता है, 
भौतिक सुख प्राप्त करता है, 
और अंततः मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। 
 
आज के समय में, 
जब मनुष्य मोह, भोग और अशान्ति में डूबा है, 
आपकी उपासना और भी आवश्यक है। 
आप सिखाती हैं
कि सिद्धि केवल शक्ति का नाम नहीं, 
बल्कि आत्मा की पूर्णता है। 
आपकी साधना मनुष्य को सिखाती है
कि जीवन का अंतिम उद्देश्य
धन या बल नहीं, 
बल्कि आत्मा की मुक्ति है। 
 
हे माँ सिद्धिदात्री, 
मैं आपको प्रणाम करता हूँ। 
मुझे आपकी कृपा चाहिए
कि मेरे भीतर ज्ञान का दीप जले, 
मेरे जीवन से अज्ञान का अंधकार मिटे, 
और मैं लोककल्याण के मार्ग पर चल सकूँ। 
मुझे वह संतुलन प्रदान कर, 
जिससे मैं संसार के बीच रहते हुए
मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकूँ। 
 
हे माँ सिद्धिदात्री, 
आपके चरणों में यही प्रार्थना है
मुझे आप कृपामृत से सींच दो, 
मुझे सिद्धि नहीं, 
आपका स्नेह और मार्गदर्शन चाहिए। 
आपकी छाया में मेरा जीवन सार्थक हो, 
और मेरी आत्मा आपके आशीर्वाद से
अनंत शान्ति को प्राप्त करे। 

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