अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

वो तेरी गली

 

इतना तो कोई
दुश्मन को भी नहीं सताता
जितना तुम सताती हो। 
मैं जितना भूलना चाहूँ
तुम उतनी याद आती हो। 
 
तुम्हारा मौन
मुझे ले जाता है
उदासी में। 
तुम्हारा मुस्कुराना
तुम्हारा प्यार
लगता है जैसे
मैं बैठा हूँ
काशी में। 
 
तुम्हारी रूह में मैं हूँ
भले न हो कोई रिश्ता
तुम्हारी अंजुमन
वो आँचल
वो आँखें
वो लब
सब मुझसे ही
वाबस्ता। 
 
तुम्हारा मन
तुम्हारी सोच
वो ख़ुश्बू
वो ख़त
वो बातें। 
वो नज़रें
वो चाहत
वो शर्मीली मुलाक़ातें। 
 
वो तेरा यूँ जाना
मुझे भूल जाना
वो क़समें वो वादे
वो टूटते इरादे
वो विरहा की रातें
वो तन्हा सी बातें
काश अब तो कभी
तुम मेरे पास आते
मुझे अपने आँचल में
फिर से छुपाते। 
 
जीवन कठिन हैं
और लंबी राहें
तुम्हें ढूँढ़ती हैं
मेरी भुजाएँ
तुम्हें मालूम है कि
बस तुम हो मेरी
तुम्हारी पनाहों में
ख़ुशियाँ घनेरी। 
 
नहीं दूर तुमसे
अभी पास हूँ मैं
मिटता नहीं है
वह अहसास हूँ मैं
इतना न अब मुझको
तुम यूँ सताओ। 
रूठा हूँ तुमसे
मुझे तुम मनाओ। 
 
प्रेम
नेह
दर्द
विरह
सब कुछ तो तुमसे
जब तुम हो
हमारी
फिर क्यों दूर हमसे। 
 
चलो आज फिर
हम चलें उस किनारे
दिल की वो गलियाँ
वो दिलकश नज़ारे
वो साइकिल से तेरा
घर से गुज़रना
मुझे देख कर वो
तेरा सँवरना
वो किताबों का लेना
वो ख़ुश्बू भरे ख़त। 
वो दोनों के दिल
जब हुए एक मत। 
 
चलो उम्र को
हम पीछे घुमाएँ
चलो उस गली में
हम फिर घूम आएँ। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

गीत-नवगीत

कविता

काव्य नाटक

सामाजिक आलेख

दोहे

लघुकथा

कविता - हाइकु

नाटक

कविता-मुक्तक

यात्रा वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

चिन्तन

कविता - क्षणिका

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

बाल साहित्य कविता

अनूदित कविता

साहित्यिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

कहानी

एकांकी

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं