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वो तेरी गली

 

इतना तो कोई
दुश्मन को भी नहीं सताता
जितना तुम सताती हो। 
मैं जितना भूलना चाहूँ
तुम उतनी याद आती हो। 
 
तुम्हारा मौन
मुझे ले जाता है
उदासी में। 
तुम्हारा मुस्कुराना
तुम्हारा प्यार
लगता है जैसे
मैं बैठा हूँ
काशी में। 
 
तुम्हारी रूह में मैं हूँ
भले न हो कोई रिश्ता
तुम्हारी अंजुमन
वो आँचल
वो आँखें
वो लब
सब मुझसे ही
वाबस्ता। 
 
तुम्हारा मन
तुम्हारी सोच
वो ख़ुश्बू
वो ख़त
वो बातें। 
वो नज़रें
वो चाहत
वो शर्मीली मुलाक़ातें। 
 
वो तेरा यूँ जाना
मुझे भूल जाना
वो क़समें वो वादे
वो टूटते इरादे
वो विरहा की रातें
वो तन्हा सी बातें
काश अब तो कभी
तुम मेरे पास आते
मुझे अपने आँचल में
फिर से छुपाते। 
 
जीवन कठिन हैं
और लंबी राहें
तुम्हें ढूँढ़ती हैं
मेरी भुजाएँ
तुम्हें मालूम है कि
बस तुम हो मेरी
तुम्हारी पनाहों में
ख़ुशियाँ घनेरी। 
 
नहीं दूर तुमसे
अभी पास हूँ मैं
मिटता नहीं है
वह अहसास हूँ मैं
इतना न अब मुझको
तुम यूँ सताओ। 
रूठा हूँ तुमसे
मुझे तुम मनाओ। 
 
प्रेम
नेह
दर्द
विरह
सब कुछ तो तुमसे
जब तुम हो
हमारी
फिर क्यों दूर हमसे। 
 
चलो आज फिर
हम चलें उस किनारे
दिल की वो गलियाँ
वो दिलकश नज़ारे
वो साइकिल से तेरा
घर से गुज़रना
मुझे देख कर वो
तेरा सँवरना
वो किताबों का लेना
वो ख़ुश्बू भरे ख़त। 
वो दोनों के दिल
जब हुए एक मत। 
 
चलो उम्र को
हम पीछे घुमाएँ
चलो उस गली में
हम फिर घूम आएँ। 

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