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मैं और स्व में अंतर

मैं हूँ अथवा हूँ नहीं, ये सवाल अति गूढ़। 
जिसको यह उत्तर मिला, वही ज्ञान आरूढ़॥ 
 
“मैं” मेरा अस्तित्व है, “मैं” मेरा अभिमान। 
“मैं” से जो बाहर गया, वो बन गया महान॥ 
 
अहंकार ही सृष्टि का, होता सिरजन हार। 
अहंकार “मैं” में बसे, बन कर मूक विकार॥ 
 
“मैं” के अंदर ही छुपा, जन्म मृत्यु का भेद। 
जो “मैं” से बाहर हुए, बंद हुए सब छेद॥ 
 
मन मलंग “मैं” में रमे, “मैं” ही मन का मीत। 
“मैं” को जब हम छोड़ते, मन को जाते जीत॥ 
 
मनुज स्व को पहचान ले, तब “मैं” जाता छूट। 
जो अंतस “मैं” पालते, मन से जाते टूट॥ 

“मैं” से प्रभु अति दूर हैं, “मैं” पथ कंटक शूल। 
जब “मैं” ही मुझमें रहें, मैं सब जाता भूल॥ 

मैं, मन, माया साथ हैं, स्व रहे प्रभु के पास। 
मन से मैं, माया हटे, मन बनता प्रभु दास॥ 

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