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त्रिवेणी संगम

 

(मित्रता पर एक संवेदनशील कहानी - सुशील शर्मा)

 

गाडरवारा की शांत सुबह, शक्कर नदी के किनारे, तीन अलग-अलग दिशाओं से आकर मिलती थीं तीन जीवनधाराएँ  रिया, शेखर और आकांक्षा।

रिया, एक छोटे से किसान परिवार की बेटी, जिसकी आँखों में बड़े सपने पलते थे। शेखर, क़स्बे के डॉक्टर का बेटा, शांत और गंभीर स्वभाव का, किताबों में डूबा रहने वाला। और आकांक्षा, शहर से आई एक चंचल और उत्साही लड़की, जिसके पिता का यहाँ ट्रांसफर हुआ था। उनकी मित्रता की शुरुआत स्कूल के गलियारों में हुई, जहाँ रिया की दृढ़ता ने शेखर के शर्मीलेपन को तोड़ा और आकांक्षा की बेफ़िक्री ने दोनों के जीवन में रंग भरा। रिया, हमेशा अपनी सहेली और दोस्त के लिए खड़ी रहती, चाहे बात स्कूल के किसी झगड़े की हो या घर की मुश्किलों की। शेखर, अपनी तार्किक बुद्धि और शांत स्वभाव से दोनों को सही राह दिखाता। और आकांक्षा, अपनी शरारतों और नए विचारों से उनके जीवन को हमेशा उत्साहित रखती।

उनकी दोस्ती का रोमांच तब गहरा हुआ जब उन्होंने साथ मिलकर नर्मदा किनारे एक पुरानी बावड़ी को साफ़ करने का बीड़ा उठाया। बावड़ी, जो कभी गाँव की प्यास बुझाती थी, अब कचरे से भरी और वीरान हो चुकी थी। रिया के मज़बूत हाथों ने मिट्टी हटाई, शेखर ने तकनीकी समझ से पानी निकालने का तरीक़ा ढूँढ़ा और आकांक्षा ने गाँव वालों को प्रेरित किया। महीनों की मेहनत के बाद, बावड़ी फिर से जीवित हो उठी, और उनकी दोस्ती, इस साझा प्रयास की गहराई में और मज़बूत हो गई। 

उनके व्यवहारिक आचरण का सबसे बड़ा उदाहरण तब मिला जब शेखर के पिता का अचानक निधन हो गया। शेखर टूट गया था, भविष्य अंधकारमय लग रहा था। उस मुश्किल घड़ी में रिया और आकांक्षा चट्टान की तरह उसके साथ खड़ी रही। रिया ने उसके घर के कामों में हाथ बँटाया, आकांक्षा ने उसे भावनात्मक सहारा दिया और दोनों ने मिलकर उसे पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया। शेखर जानता था कि इन दोनों के बिना वह इस मुश्किल से कभी नहीं उबर पाता।

समय की धारा आगे बढ़ी और तीनों अपने सपनों को पूरा करने के लिए अलग-अलग शहरों में चले गए। रिया ने कृषि विज्ञान की पढ़ाई की, शेखर ने मेडिकल की और आकांक्षा ने मीडिया में अपना करियर बनाया। शुरूआत में, फोन कॉल्स और मैसेजेस का सिलसिला चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे दूरियाँ बढ़ने लगीं। जीवन की भागदौड़, नई जिम्मेदारियाँ, और बदलते परिवेश ने उनके बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी कर दी।

आकांक्षा का जीवन शहर की चकाचौंध में खो गया। वह एक सफल पत्रकार बन गई थी, जिसके पास वक़्त की कमी और दोस्तों के लिए जगह कम थी। उसके रिश्तों में ठहराव नहीं था।

एक दिन उसका फोन आया, उसकी आवाज़ में वो पुरानी चंचलता नहीं, बल्कि एक गहरी उदासी थी।

”रिया, शेखर . . . मैं अकेली हूँ।” उसकी शादी टूट चुकी थी। उसने जिस आधुनिक और सफल जीवन का सपना देखा था, वह खोखला साबित हुआ। उसका पति, जो उसकी सफलता से जलने लगा था, उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करता था। आकांक्षा ने सबकुछ छोड़ दिया, ख़ुद को अपने अपार्टमेंट में क़ैद कर लिया और दुनिया से कट गई। 

उधर, शेखर अपने क्लिनिक में सफल हो चुका था, लेकिन उसका जीवन नीरस और मशीनी हो गया था। उसकी शादी भी हुई, पर उसमें प्यार की गर्माहट नहीं थी। उसकी पत्नी, जिसे वह प्यार नहीं करता था, सिर्फ़ एक सामाजिक ज़िम्मेदारी थी। वह अपने काम में इतना डूब गया था कि उसे अपने अंदर के ख़ालीपन का एहसास ही नहीं होता था। एक शाम, उसका एक मरीज़ आया जिसने आत्महत्या का प्रयास किया था। शेखर ने उसे बचा लिया, पर उस घटना ने उसे अंदर तक झकझोर दिया। उसने पहली बार अपनी ज़िंदगी में प्यार और लगाव की कमी को महसूस किया। 

रिया, अपने गाँव में रहकर जैविक खेती का सफल मॉडल स्थापित कर चुकी थी। उसने अपने पिता के छोटे से खेत को एक बड़े उद्यम में बदल दिया था। लेकिन उसका मन शांत नहीं था। उसके माता-पिता चाहते थे कि वह शादी कर ले, पर उसका दिल किसी को स्वीकार नहीं कर पाता था। वह अपनी ज़मीन से प्यार करती थी, पर उसे किसी अपने की कमी हमेशा खलती थी। एक दिन, उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। उसी समय, उसे आकांक्षा की उदासी और शेखर की बेरुख़ी का एहसास हुआ। उसने महसूस किया कि वह अपने दोस्तों के लिए उतनी मौजूद नहीं थी, जितनी वे उसके लिए थे। 

रिया ने तुरंत आकांक्षा और शेखर को फोन लगाया। उनकी आवाज़ में उदासी और दूरी साफ़ झलक रही थी। रिया ने उन्हें गाडरवारा आने के लिए कहा। “हम सब एक साथ मिलकर फिर से उसी नर्मदा किनारे बैठेंगे, जहाँ से हमारी कहानी शुरू हुई थी।”

आकांक्षा हिचकिचाई, “मैं इस हालत में किसी से नहीं मिलना चाहती।”

शेखर ने कहा, “मेरे पास वक़्त नहीं है।”

रिया ने हार नहीं मानी। वह जानती थी कि उनकी दोस्ती ही उन्हें इस अँधेरे से निकाल सकती है। वह आकांक्षा के घर गई, उसे समझाया और जबरन अपने साथ गाडरवारा ले आई। शेखर को भी उसने एक कड़ा संदेश भेजा: “तुम्हारे मरीज़ों को तुम्हारी ज़रूरत है, पर हमें भी है। तुम्हारी असली दवा तुम्हारा अपना दिल है, जो तुम बंद कर चुके हो।”

गाडरवारा में फिर से तीनों मिले। सालों बाद, उस शक्कर नदी के किनारे, जहाँ उन्होंने बचपन में अपनी दोस्ती की क़समें खाई थीं। लेकिन इस बार उनके चेहरे पर वो पुरानी मासूमियत नहीं, बल्कि जीवन के संघर्षों की गहरी रेखाएँ थीं। आकांक्षा ने अपनी टूटी शादी का दर्द बयान किया। शेखर ने अपने ख़ालीपन का राज़ खोला। रिया ने अपने अकेलेपन की कहानी सुनाई। 

उन्होंने फिर से वो पुरानी बावड़ी देखी, जो अब भी स्वच्छ और पानी से भरी हुई थी। रिया ने कहा, “देखो, यह बावड़ी हमने साफ़ की थी। हमारे रिश्ते भी इस बावड़ी की तरह हैं। उन पर भी वक़्त की धूल जम गई है, लेकिन उनकी बुनियाद मज़बूत है। हमें फिर से एक साथ मिलकर इन्हें साफ़ करना होगा।”

धीरे-धीरे, उनकी मित्रता ने फिर से अपनी मिठास घोलनी शुरू की। वे घंटों नर्मदा के किनारे बैठकर बातें करते। आकांक्षा ने रिया की खेती में मदद की, और पहली बार उसे लगा कि जीवन में सफलता सिर्फ़ पैसे और शोहरत में नहीं होती। शेखर ने आकांक्षा की काउंसलिंग की, और उसे समझाया कि उसकी ख़ुशी किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं करती। रिया ने दोनों को सिखाया कि जीवन के संघर्षों का सामना अकेले नहीं, बल्कि दोस्तों के साथ मिलकर किया जाता है। 

आकांक्षा ने गाडरवारा में ही एक छोटा सा एनजीओ शुरू किया, जहाँ वह गाँव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना सिखाती थी। शेखर ने अपने क्लिनिक का विस्तार किया, और अब वह केवल मरीज़ों का इलाज ही नहीं करता था, बल्कि उनकी समस्याओं को भी सुनता था। रिया ने अपनी खेती में और भी सुधार किए, और अब वह अकेली नहीं थी उसके दोस्त हमेशा उसके साथ थे। 

जब आकांक्षा ने अपनी ज़िंदगी में फिर से प्यार को स्वीकार करने का साहस दिखाया और शेखर ने अपनी पत्नी को तलाक़ देकर एक नए रिश्ते की शुरूआत की, तो उनकी ख़ुशी में सबसे ज़्यादा ख़ुश रिया थी। उन दोनों ने रिया की शादी के लिए एक लड़का ढूँढ़ा, जो उसे अपनी ज़मीन और अपने सपनों से दूर नहीं करेगा। 

उनकी दोस्ती, समय की कसौटी पर खरी उतरी थी। उन्होंने सीखा था कि जीवन में रिश्ते टूटते भी हैं और जुड़ते भी हैं। लेकिन सच्ची मित्रता वह धागा है, जो हर टूटे हुए रिश्ते को जोड़ता है। उनके जीवन के संघर्षों ने उन्हें मज़बूत बनाया था, और अंत में, उनकी मित्रता का मीठापन ही उनके जीवन की सबसे बड़ी जीत थी। गाडरवारा की वह शक्कर नदी, आज भी उन तीन दोस्तों की कहानी कहती है त्रिवेणी संगम की कहानी, जो हमेशा साथ रहती है, चाहे कितनी भी दूरियाँ आ जाएँ। 

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