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माँ चंद्रघंटा – नवरात्र का तृतीय स्वरूप

 

नवरात्र की तृतीया
भोर की अरुणिमा में
घंटी की गूँज की तरह उतरती है,
माँ चंद्रघंटा
जिनके मस्तक पर
चंद्रमा का अर्धचाप
सदा प्रकाशित है।
 
उनका रूप है वीरता का,
शौर्य का,
करुणा और कठोरता का अद्भुत संगम।
दस भुजाओं में
विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए,
सिंह पर आरूढ़,
वे प्रतीक हैं उस शक्ति की
जो अन्याय का नाश करती है
और भक्तों को वर देती है
निर्भीक होकर जीने का।
 
उनकी उपस्थिति से
डर भागता है,
आतंक मिटता है,
मन का संशय
शांति में रूपांतरित हो जाता है।
उनके रूप का स्मरण ही
मानव के भीतर
सिंह-सा साहस भर देता है।

आराधना में भक्त
घी का दीप प्रज्वलित करते हैं,
घंटी बजाते हैं
जिसकी ध्वनि
नकारात्मकता को भेदकर
घर-घर में पवित्र कंपन भर देती है।
 
उनके प्रिय भोग
दूध और उससे बने पदार्थ,
विशेषकर खीर।
यह मधुर प्रसाद
सिर्फ स्वाद ही नहीं,
बल्कि संतुलन और शांति का प्रतीक है।
 
आध्यात्मिक स्वरूप में
माँ चंद्रघंटा
अनाहत चक्र की अधिष्ठात्री हैं।
हृदय के द्वार पर बैठकर
वे साधक को देती हैं
साहस और प्रेम का संतुलन।
ध्यान में उनका स्मरण
भीतर की घंटियों को जागृत करता है,
जहाँ भय का स्थान
भक्ति ले लेती है,
और संदेह का स्थान
निश्छल आस्था।
 
उनकी उपासना से 
भय का नाश,
आत्मिक शक्ति की प्राप्ति,
साहस और संतुलन का उदय होता है।
भक्त को यह अनुभव होता है
कि धर्म के मार्ग पर चलने वाला
कभी अकेला नहीं होता,
उसके साथ माँ की
सिंह-सी गरिमा
सदैव चलती है।
 
आज के समय में
जब भय और असुरक्षा
मानव जीवन को घेर लेती है,
जब अन्याय, हिंसा,
और लोभ-लालसा
हर ओर अपना जाल फैलाते हैं,
तब माँ चंद्रघंटा का व्रत
और भी प्रासंगिक हो उठता है।
 
यह हमें याद दिलाता है
कि भीतर का भय
सबसे बड़ा शत्रु है,
और उसका अंत केवल
भक्ति और साहस से ही संभव है।
माँ की घंटियों की ध्वनि
आज भी गूँजती है
मानव को पुकारती है
कि अन्याय का सामना करो,
सत्य की रक्षा करो,
और अपने भीतर छिपे
सिंह को पहचानो।
 
माँ चंद्रघंटा का व्रत
आधुनिक जीवन में
भयमुक्त अस्तित्व की साधना है,
सत्य और न्याय के पक्ष में
निडर खड़े होने की प्रेरणा है।
 
उनकी कृपा से
भक्त के जीवन में
शांति, साहस और संतुलन
तीनों एक साथ उतरते हैं।
और जब माँ की घंटियाँ बजती हैं,
तो केवल आकाश ही नहीं,
भक्त का हृदय भी
कंपित हो उठता है
भय से नहीं,
बल्कि असीम आस्था से।

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