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आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और गूगल के वर्तमान संदर्भ में गुरु की प्रासंगिकता

 

(गुरु पूर्णिमा पर आलेख-सुशील शर्मा) 

 

आज के डिजिटल युग में, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और गूगल जैसे प्लैटफ़ॉर्म सूचना के अथाह सागर तक हमारी पहुँच को असीमित बना चुके हैं, “गुरु” की पारंपरिक अवधारणा पर पुनर्विचार करना आवश्यक हो गया है। क्या एक क्लिक पर उपलब्ध ज्ञान के इस दौर में गुरु की महत्ता कम हो गई है, या उसका स्वरूप और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है? इस आलेख में हम इसी प्रश्न की समालोचना करेंगे। 

ज्ञान का लोकतंत्रीकरण:

AI और गूगल का प्रभाव

इसमें कोई संदेह नहीं कि AI और गूगल ने ज्ञान के लोकतंत्रीकरण में अभूतपूर्व भूमिका निभाई है। कोई भी व्यक्ति, कहीं से भी, किसी भी विषय पर तत्काल जानकारी प्राप्त कर सकता है। गूगल सर्च इंजन हमें लाखों वेबसाइटों, लेखों और शोध पत्रों तक पहुँचाता है, जबकि AI-संचालित चैटबॉट्स और शिक्षण उपकरण जटिल अवधारणाओं को सरल शब्दों में समझाने, प्रश्नों के उत्तर देने और व्यक्तिगत सीखने के अनुभव प्रदान करने में सक्षम हैं। 

तत्काल सूचना तक पहुँच: अब हमें किसी तथ्य या परिभाषा के लिए किसी व्यक्ति का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। बस एक खोज प्रश्न टाइप करें, और जानकारी आपकी उँगलियों पर होती है। 

व्यक्तिगत सीखने के मार्ग: AI-आधारित प्लैटफ़ॉर्म छात्रों की सीखने की गति, शैली और कमियों का विश्लेषण करके अनुकूलित सामग्री और अभ्यास प्रदान करते हैं, जिससे सीखने की प्रक्रिया अधिक कुशल और व्यक्तिगत बन जाती है। 

प्रशासनिक कार्यों का स्वचालन: शिक्षकों के लिए, AI प्रशासनिक कार्यों जैसे ग्रेडिंग, उपस्थिति और सामग्री निर्माण को स्वचालित करके समय बचाता है, जिससे वे छात्रों के साथ अधिक व्यक्तिगत रूप से जुड़ सकते हैं। 

इस संदर्भ में, ऐसा प्रतीत हो सकता है कि ज्ञान हस्तांतरण का पारंपरिक “गुरु” का कार्य अब मशीनों द्वारा अधिक प्रभावी ढंग से किया जा रहा है। यदि जानकारी सर्वसुलभ है, तो फिर गुरु की आवश्यकता क्यों? 

गुरु की निरंतर महत्ता: समालोचनात्मक दृष्टिकोण

हालाँकि AI और गूगल सूचना तक पहुँच को क्रांतिकारी बनाते हैं, वे गुरु की भूमिका को अप्रचलित नहीं बनाते, बल्कि उसे पुनः परिभाषित करते हैं। गुरु की महत्ता अब केवल जानकारी प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके कहीं गहरे आयाम हैं:

1. ज्ञान का क्यूरेशन और संदर्भ:

डिजिटल युग में सूचना की अतिभारिता (information overload) एक बड़ी चुनौती है। लाखों वेबपेजों में से प्रामाणिक, विश्वसनीय और प्रासंगिक जानकारी को पहचानना मुश्किल हो सकता है। यहीं पर गुरु की भूमिका एक क्यूरेटर और संपादक के रूप में महत्त्वपूर्ण हो जाती है। एक गुरु सिर्फ़ जानकारी नहीं देता, बल्कि उसे फ़िल्टर करता है, उसका संदर्भ समझाता है, और यह बताता है कि कौन सी जानकारी महत्त्वपूर्ण है और क्यों। वे जानकारी को ज्ञान और अंतर्दृष्टि में बदलने में मदद करते हैं। 

2. अनुभवजन्य ज्ञान और विवेक:

AI और गूगल के पास भारी मात्रा में डेटा हो सकता है, लेकिन उनके पास अनुभवजन्य ज्ञान (experiential knowledge) या विवेक (wisdom) नहीं होता। गुरु केवल किताबों से पढ़ी बातें नहीं सिखाते, बल्कि जीवन के अनुभवों, नैतिक मूल्यों और व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि को साझा करते हैं। वे छात्रों को सिखाते हैं कि ज्ञान का उपयोग कैसे करें, न कि केवल उसे कैसे प्राप्त करें। चरित्र निर्माण, नैतिक विकास और भावनात्मक बुद्धिमत्ता जैसे पहलू AI द्वारा सिखाए नहीं जा सकते, क्योंकि उनके लिए मानवीय संपर्क और अनुभव की आवश्यकता होती है। 

3. मार्गदर्शन और परामर्श:

एक गुरु केवल शिक्षक नहीं होता, बल्कि एक मार्गदर्शक, संरक्षक और परामर्शदाता भी होता है। वे छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं, क्षमताओं और चुनौतियों को समझते हैं। वे सिर्फ़ अकादमिक मार्गदर्शन नहीं देते, बल्कि करियर पथ, जीवन के लक्ष्यों और व्यक्तिगत विकास में सहायता करते हैं। AI, हालाँकि व्यक्तिगत सुझाव दे सकता है, मानवीय सहानुभूति, प्रेरणा और भावनात्मक समर्थन प्रदान नहीं कर सकता जो एक गुरु देता है। 

4. मानवीय सम्बन्ध और प्रेरणा:

सीखने की प्रक्रिया में मानवीय सम्बन्ध अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। एक गुरु-शिष्य सम्बन्ध विश्वास, सम्मान और प्रेरणा पर आधारित होता है। गुरु छात्रों को प्रेरित करते हैं, उनकी क्षमताओं पर विश्वास करते हैं, और उन्हें चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। AI या गूगल, चाहे कितने भी उन्नत क्यों न हों, इस भावनात्मक जुड़ाव और व्यक्तिगत प्रेरणा को उत्पन्न नहीं कर सकते। 

5. आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान:

जबकि AI सीधे उत्तर प्रदान कर सकता है, एक गुरु छात्रों को आलोचनात्मक सोच (critical thinking) विकसित करने, समस्याओं को हल करने और स्वयं के निष्कर्षों तक पहुँचने में मदद करता है। वे प्रश्न पूछने, विश्लेषण करने और विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे छात्रों की सोचने की क्षमता विकसित होती है। 

हालाँकि गुरु की महत्ता बनी हुई है, पारंपरिक गुरु प्रणाली में कुछ ऐसे पहलू रहे हैं जिनकी आलोचना आवश्यक है:

अधिकारवाद और अंध-भक्ति: 

कुछ पारंपरिक गुरु प्रणालियों में गुरु का अत्यधिक अधिकार और अंध-भक्ति को बढ़ावा दिया गया है, जिससे शिष्य की स्वतंत्र सोच और आलोचनात्मक क्षमता का दमन हो सकता है। आधुनिक संदर्भ में, गुरु को ज्ञान का स्रोत तो होना चाहिए, लेकिन एक तानाशाह नहीं। 

पहुँच की कमी:

ऐतिहासिक रूप से, गुरुकुल प्रणाली या व्यक्तिगत गुरुओं तक पहुँच सीमित थी, अक्सर यह विशिष्ट सामाजिक या आर्थिक वर्गों तक ही सीमित रहती थी। आज के युग में शिक्षा सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। 

तकनीकी एकीकरण का अभाव:

कुछ पारंपरिक प्रणालियाँ आधुनिक तकनीकी उपकरणों और डिजिटल शिक्षण प्लेटफार्मों को एकीकृत करने में हिचकती हैं, जिससे वे आज के तकनीकी-संचालित विश्व में कम प्रासंगिक हो सकती हैं। 

भविष्य का गुरु: एक सहयोगात्मक मॉडल

AI और गूगल के युग में गुरु की भूमिका पुनर्परिभाषित होकर एक सहयोगात्मक मॉडल के रूप में उभरती है। गुरु अब केवल सूचना का प्राथमिक स्रोत नहीं हैं, बल्कि गुरु हमारे ज्ञान के क्यूरेटर और फ़िल्टर हैं, छात्रों को विशाल जानकारी में से प्रासंगिक और विश्वसनीय सामग्री चुनने में मदद करते हैं। 

गुरु हमें नैतिक मार्गदर्शन, जीवन कौशल और व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं जो AI नहीं कर सकता। 

प्रेरणा और भावनात्मक समर्थन: 

छात्रों को चुनौतियों का सामना करने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने के लिए प्रेरित करते हैं। 

आलोचनात्मक सोच के प्रमोटर:

छात्रों को AI द्वारा प्रदान की गई जानकारी का विश्लेषण करने और स्वयं के निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए सशक्त करते हैं। 

संक्षेप में, AI और गूगल हमें ज्ञान तक पहुँच प्रदान करते हैं, लेकिन गुरु हमें उस ज्ञान का अर्थ समझने, उसे आत्मसात करने और उसे जीवन में लागू करने में मदद करते हैं। वे हमें केवल जानकारी का उपभोग करना नहीं सिखाते, बल्कि उसे विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना सिखाते हैं। इस प्रकार, गुरु की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है, बल्कि उनके कार्य का दायरा अधिक गहरा और मानवीय हो गया है, जहाँ वे ज्ञान के साथ-साथ नैतिक और भावनात्मक विकास के पथ प्रदर्शक बन गए हैं। 

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