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शिक्षा की पाँच दीपशिखाएँ

 

1. काग़ज़ से आगे

रीमा हर बार परीक्षा में टॉप करती, लेकिन जब गाँव की बिछिया बाई उससे बोलना चाहती, तो वह टाल देती। 

एक दिन बिछिया ने कहा, “बिटिया, तुम पढ़ी-लिखी हो, पर अगर तुम्हारे शब्द किसी अनपढ़ को छू न सकें, तो तुम्हारी किताबें बस काग़ज़ हैं।”

उस दिन रीमा ने पहली बार गाँव की औरतों को पढ़ाना शुरू किया। 

शिक्षा वही है जो आत्मा को विनम्र बनाती है। 

2. शब्द जोतता किसान

रघु एक किसान था। खेतों में हाथ काले करता, लेकिन रात को एक टूटी लालटेन में किताब पढ़ता था। 

लोग कहते “इस उम्र में पढ़कर क्या करोगे?” 

रघु हँसकर बोला “अक्षर बोने से आत्मा फलती है, और खेत से पेट। मैं दोनों उगा रहा हूँ।”

आज उसका बेटा गाँव का पहला इंजीनियर बना, और रघु गाँव की लाइब्रेरी का पहला सदस्य। 

शिक्षा कभी देर से नहीं आती—वह जब भी आती है, जीवन को दिशा देती है। 

3. टपकती छत और शिक्षक

एक स्कूल की छत टपक रही थी। बारिश में बच्चे भीगते, मास्टर जी छाते के नीचे पढ़ाते। 

एक दिन किसी ने पूछा “सर, ये हालत देख कर पढ़ाते कैसे हो?” 

उन्होंने जवाब दिया, “अगर मैं छत की वजह से रुक गया, तो इन बच्चों के सपनों की छत कभी नहीं बन पाएगी।”

वहीं से एक लड़की बनी अफ़सर, और सबसे पहले उसने उस स्कूल की छत बनवाई। 

शिक्षा जज़्बे से दी जाती है, इमारतों से नहीं। 

4. शून्य से शुरुआत

आयशा कचरे बीनती थी, लेकिन हर दिन स्कूल की खिड़की से झाँकती। 

एक शिक्षक ने उसे देखा, पूछा “स्कूल आओगी?” 

वो बोली “मेरे पास बस्ता नहीं है।”

अगले दिन मास्टरजी ने उसे एक पुराना बस्ता दिया। 

आज आयशा उसी स्कूल में पढ़ाती है। 

उसका पहला सबक़ होता है “जहाँ इच्छा है, वहाँ शिक्षा है। 

5. डिग्री नहीं दृष्टि

रोहित एमबीए था, पर रोज़गार के लिए संघर्ष कर रहा था। 

एक दिन गाँव के बढ़ई से बोला “तुमने पढ़ाई नहीं की, फिर भी सफल हो”

बढ़ई बोला “बेटा, शिक्षा सिर्फ़ डिग्री नहीं, दृष्टि देती है। मैंने दुनिया को देखकर सीखा, तू किताबें पढ़कर। अब दोनों सीखें मिलेंगी, तो कुछ नया बनेगा।”

रोहित ने उसके साथ मिलकर फ़र्नीचर का ऑनलाइन ब्रांड शुरू किया “ज्ञान और गाथा।” 

शिक्षा जब कर्म से जुड़ती है, तभी परिणाम देती है। 

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