अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

हे क़लमकार

क़लमकार का काम नहीं है, 
दो पैसों में बिक जाना। 
क़लमकार का काम नहीं है, 
चार शब्द लिख रुक जाना। 
 
लिखना बस लिखते ही जाना
बिन थकना बिन घबराना। 
जन जन की आवाज़ें लिखना
क़लमकार का अफ़साना। 
 
राजनीति के गलियारों में
क़लमों को बिकते देखा है। 
हरे हरे नोटों के आगे
क़लमों को झुकते देखा है। 
 
क़लम वही जो अंगारों पर
सीना चौड़ा कर लिखती। 
क़लम वही जो मज़लूमों को
न्याय दिलाते ही दिखती। 
  
क़लम वही जो दीन दुखी के
मन की बातें कहती है
क़लम वही जो दुखियारों की
पीड़ा मन भर सहती है। 
 
क़लम नहीं जो राजनीति में
गीत प्रशंसा के गाए। 
क़लम नहीं जो न्याय छोड़ कर। 
अन्यायों को अपनाए। 
 
सत्य शब्द संकल्प भाव ही
क़लमकार की थाती है। 
निडर निराभय जीवट होती
क़लमकार की छाती है। 
 
कुछ भी शब्दों में लिख देना
कविता सखे नहीं होती
ख़ून निचुड़ कर शब्द बने जब
मन के घाव सखे धोती। 
 
कविता आज फँसी है प्यारे
मंचों के चुरफंदों में। 
शील भाव शालीन खो गए
मंचों के मनचंदों में। 
 
कविता शब्दों का जाल नहीं
ना भावों की उलझन है। 
ना तुकबंदी का मिलना है
ना ही दिल की धड़कन है। 
 
हरे भरे वन पर आरी है
जलते जंगल कविता है। 
गिरते पत्तों की पीड़ा है
सूखी सूखी सरिता है। 
 
कविता रिश्तों का बौनापन
जली देह की बेटी है। 
बिकते ख़्वाबों की दुनिया में
घुटती कविता लेटी है। 
 
बेटे की आशा में आँखें
रिमझिम रिमझिम रोती हैं। 
बसा विदेश अकेला बेटा
आँखें अब ना सोती हैं। 
 
सरोकार जन जन के लिखना
ईश्वर को ही जपना है। 
जन जन के हृदयों में बसना
क़लमकार का सपना है। 
 
प्रेमचंद की भाषा लिखता
देवी के जो गीत लिखे। 
पंत निराला के भावों सा
जिसमें सच्चा ओज दिखे। 
 
भाव ओज सब सत्य समर्पित
क़लमकार मन चंदन हो। 
अभिव्यक्ति की दृढ़ता बाँधे
जीवन का अभिनंदन हो। 
 
खरी कसौटी लेखन जिसका
जन जन की अभिव्यक्ति हो। 
कालजयी हो क़लम भवानी
जन जन की सम्पत्ति हो। 
 
हो समाज को देने वाला
लेखन राष्ट्र समर्पित हो। 
नयी दिशाएँ देने वाला
हर मन जिस पर गर्वित हो। 
 
थोथे उथले भाव अधूरे
अश्लीली ताना बाना। 
सम्मानों की होड़ मची है
किसने किसको कब जाना। 
 
चबली चोर चकार सभी अब
कविताएँ मन भर लिखते। 
चार शब्द चोरी के पढ़ते
मंचों पर अब वो सजते। 
 
कम ही हैं अब लेखक जिनकी
अभिव्यक्ति हो ओजमयी। 
वो साहित्यिक नूर कहाँ अब
जिनका लेखन कालजयी। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक

कविता

गीत-नवगीत

दोहे

लघुकथा

कविता - हाइकु

नाटक

कविता-मुक्तक

वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

चिन्तन

कविता - क्षणिका

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

सामाजिक आलेख

बाल साहित्य कविता

अनूदित कविता

साहित्यिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

कहानी

एकांकी

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं