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गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1

 (श्रीमद गीता के श्लोक 01 से 10 तक का दोहानुवाद) 
 
श्री भगवानुवाच

 
धारित बल ऐश्वर्य गुण, सबका आत्म महान। 
मन अपना संशय रहित, करके मुझको जान। 1
 
तत्वज्ञान तुझसे कहूँ, इसमें है विज्ञान। 
शेष जानने नहिं बचे, जिसका इसको भान। 2
 
मुझे तत्व से जानकर, योगी करें प्रयत्न। 
लाखों में बस एक ही, होता यथा सुरत्न। 3 
 
अपरा जड़ मेरी प्रकृति, जिसके आठ प्रकार। 
अग्नि पवन जल नभ धरा, बुद्धि अहम मन धार। 4
 
है द्वितीय मेरी प्रकृति, विश्व यथा पारश्व। 
परा चेतना से बँधा, जीव रूप ये अश्व। 5 
 
रत दोनों ही प्रकृतियाँ, सभी भूत उत्पन्न। 
प्रभव प्रलय में जगत का, मैं ही मूल प्रपन्न। 6
 
मुझसे भिन्न न दूसरा, कारक करण विमृश्य। 
जगत सूत्र मुझ से बँधा, माला पुष्प सदृश्य। 7
 
मैं प्रकाश हूँ सूर्य का, जल का मैं रस तत्व। 
वेदों का ओंकार मैं, पुरुषों का पुरुषत्व। 8
 
पृथ्वी की मैं गंध हूँ, महा अग्नि का ताप। 
सभी भूत चेतन करूँ, मैं योगी तप जाप। 9
 
सब भूतों का बीज मैं, हे अर्जुन बलवान। 
योगी तप का तेज मैं, मैं ही बुद्धि विधान। 10

— क्रमशः 
 

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