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तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं

क्यूँ मुझे लगता है ऐसा
जैसे 
तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
तुम्हेंं मुझसे बेपनाह नेह है। 
क्योंकि जब भी मेरी
याद तुम्हें आती है
तुम गिनने लगती हो
बाहर गमले में खिले फूलों को। 
जब भी मैं तुम्हारी यादों में मुस्कुराता हूँ। 
तुम पिंजरे के पास जाकर
गौरैया को पुचकारती हो। 
अक़्सर तुम मेरे फोटो को
एकटक देख कर। 
करती हो अनकही बातें
जो तुम कभी न कह सकी। 
बच्चों को अपने पास
बैठा कर मेरी तरह। 
कोशिश करती हो उन्हें
ज़िन्दगी के पाठ पढ़ाने की। 
तुम्हारी हर अदा में हर बात में
शामिल हो जाता हूँ मैं। 
अनजाने में तुम्हारे मुँह से
मेरे शब्द निकलते हैं। 
जब भी मंदिर में जाकर
कान्हा की मूर्ति के सामने। 
बंद आँखों में मुझे देख
सिसक लेती हो। 
लम्हा लम्हा सा बहता है
ज़िन्दगी का सफ़र। 
सब रिश्तों से आँख बचा कर
रो लेती हो। 

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