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रश्मि-पथ: एक आधुनिक यति की शाश्वत यात्रा

 

यह खंडकाव्य नरेंद्र मोदी जी के जीवन को एक आधुनिक यति (योगी) की यात्रा के रूप में रेखांकित करता है, प्रत्येक सर्ग नरेंद्र मोदी के जीवन के महत्त्वपूर्ण चरण, उनके संघर्षों, उपलब्धियों और आंतरिक प्रेरणाओं को उजागर करता है। 

प्रथम सर्ग:
उदय–वड़नगर का बाल रवि

 

यह सर्ग नरेंद्र मोदी के प्रारंभिक जीवन, उनकी जन्मभूमि वड़नगर की गलियों और रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने के उनके अनुभवों पर केंद्रित है। इसमें उनकी साधारण पृष्ठभूमि, बचपन की जिज्ञासा, अदम्य इच्छाशक्ति और राष्ट्र सेवा के प्रति प्रारंभिक झुकाव का चित्रण किया गया है। 
 
वड़नगर की धूल में, 
एक बालक था खेलता। 
उसकी ज़हीन आँखों में, 
सपना था कोई मेलता। 
 
रेलवे की पटरी पर, 
चाय की केतली लिए। 
हर मुसाफ़िर से मिलता, 
मुख में हँसी लिए। 
 
निर्धनता का था अँधियारा, 
पर मन में था प्रकाश, 
ज्ञान की थी भूख गहरी, 
मिटाने को हर प्यास। 
 
साधुओं का था सत्संग, 
गुरुओं का आशीर्वाद, 
धर्म-कर्म का पाठ पढ़ा, 
मन में जागा संवाद। 
 
ईश-भक्ति का था अंकुर, 
राष्ट्रप्रेम का बीज। 
अंकुरित हुआ जीवन, 
हर सुख-दुःख की रीझ। 
 
द्वितीय सर्ग:
तप–हिमालय का आह्वान और संघ की दीक्षा

 
यह सर्ग उनके युवावस्था में घर छोड़कर निकलने, हिमालय की यात्रा, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर संगठन कार्य में उनके समर्पण को दर्शाता है। यह उनके विचारों के निर्माण, व्यक्तित्व के विकास और त्याग व साधना के काल को चित्रित करता है। 
 
छोड़ा घर-परिवार तब, 
जब थी यौवन की पीक। 
हिमालय की कंदराओं में, 
खोजी जीवन की लीक। 
 
एकांत में किया चिंतन, 
आत्मज्ञान का ध्यान। 
सत्य की खोज में भटके, 
पाया धर्म का मान। 
 
संघ की पावन भूमि पर, 
ली निष्ठा की शपथ। 
देश प्रेम का दीपक जला, 
लिया त्याग का पथ। 
 
घर-घर अलख जगाई, 
जन-जागरण का काम। 
सेवा का था व्रत साधा, 
त्यागा सुख-विश्राम। 
 
संगठन की शक्ति जानी, 
अनुशासन का बल। 
हर स्वयंसेवक में देखा, 
व्यक्ति एक अटल। 
 
देश के लिए जीने की, 
मन में थी ठानी। 
कर्मयोग की राह चुनी, 
बन गए राज-ज्ञानी। 
 
तृतीय सर्ग:
संग्राम–गुजरात का कुरुक्षेत्र और विकास का संकल्प

 
यह सर्ग गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल, गोधरा कांड के बाद की चुनौतियों, और गुजरात के विकास मॉडल को स्थापित करने के उनके अथक प्रयासों को चित्रित करता है। इसमें विरोधियों के हमलों, संघर्षों के बीच उनके धैर्य और अडिग नेतृत्व का वर्णन है। 
 
गुजरात की धरती पर, 
ली शासन की कमान। 
विकास का था मंत्र मुख पर, 
जनसेवा का गान। 
 
आई विपदा घोर जब, 
अग्नि ने किया तांडव। 
अडिग खड़े थे पर्वत से, 
ना छोड़ा जन मांडव। 
 
विरोधियों के बाण सहकर, 
पकड़ा धीर का दामन। 
झूठे आरोपों से लड़े, 
जनशक्ति आवहान। 
 
ज्योतिग्राम की रोशनी, 
हर गाँव में जब फैली। 
जल-संसाधन का प्रबंधन, 
अद्भुत काम की शैली। 
 
नया गुजरात का था सपना, 
हर घर में ख़ुशहाली। 
उद्योगों का था विस्तार, 
समृद्धि की डाली। 
 
हर चुनौती का सामना, 
किया दृढ़ संकल्प से। 
गुजरात का उदय हुआ, 
उनके अटल कल्प से। 
 
चतुर्थ सर्ग:

दिल्ली-गमन–राष्ट्र का आह्वान और नवयुग का सूत्रपात
 
यह सर्ग उनके प्रधानमंत्री पद के लिए विशाल अभियान, लोकसभा चुनाव में भारी जीत, और केंद्र में आकर राष्ट्र निर्माण के उनके विजन को दर्शाता है। 

इसमें उनके “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” के नारे और जन-कल्याणकारी योजनाओं जैसे जन धन, स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया का उल्लेख है। 
 
दिल्ली के सिंहासन से, 
रूठी थी जनता सारी। 
जन-जन की पुकार उठी, 
अब मोदी की बारी। 
 
हर घर से आवाज़ आई, 
‘मोदी-मोदी’ नाम, 
विजय का शंखनाद हुआ, 
त्याग कर विश्राम। 
 
लाल क़िले से गूँजी वाणी, 
नव भारत का स्वप्न। 
उठा राष्ट्र का गौरव फिर, 
शुरू विकास का लग्न। 
 
जन-धन से जोड़े बैंक, 
ग़रीबों को दिया मान। 
हर गली-चौराहा चमका, 
स्वच्छता का था अभियान। 
 
मेक इन इंडिया का नारा, 
उद्योगों को दिया बल। 
युवाओं को मिली शक्ति, 
विकास का हर पल। 
 
सबका साथ सबका विश्वास था
साथ है सबका विकास। 
जन-जन की आत्मशक्ति, 
नव युग का था आकाश। 
 
पंचम सर्ग:
विश्व-गुरु की ओर भारत का बढ़ता क़दम

 
यह सर्ग अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की बढ़ती साख, विदेश नीति में उनके नवाचार, और विभिन्न वैश्विक चुनौतियों पर भारत के दृढ़ रुख़ को दर्शाता है। इसमें योग, आयुष्मान भारत, डिजिटल इंडिया, और आत्मनिर्भर भारत जैसे उनके प्रमुख अभियानों का भी ज़िक्र है। 
 
वसुधैव कुटुम्बकम् का, 
दिया जगत को ज्ञान। 
योग से जोड़ा विश्व को, 
बढ़ाया भारत मान। 
 
कूटनीति का नया पथ, 
हर देश से बनाया नाता। 
विश्व-पटल पर गूँजी, 
भारत की जय-गाथा। 
 
आयुष्मान से मिला सहारा, 
हर रोगी को दान। 
डिजिटल क्रांति लाई, 
जीवन में विज्ञान। 
 
आत्मनिर्भर भारत का, 
मंत्र दिया संसार में। 
अपनी शक्ति पहचानने का, 
मंत्र था हर विचार में। 
 
विपदाओं में धीर धरे, 
डटे रहे अटल। 
विश्व-पटल पर चमका, 
भारत का निज बल। 
 
शांतिदूत बन उभरे, 
लिया हर चुनौती का भार, 
नव भारत का निर्माण, 
खुले विकास के द्वार। 

 

 
समाप्त

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