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सुशील कुमार शर्मा – क्षणिकाएँ : बारिश

 

1.
पहली बूँद गिरी
और मिट्टी मुस्काई 
जैसे शिशु मुस्काता है
माँ के स्पर्श से। 
2.
छत पर बजती बूँदें
जैसे माँ की थाली, 
बचपन लौट आता है
हर बरसात में। 
3.
भीगती सड़कों पर
चलते लोग जैसे विचार, 
कुछ धुले हुए, 
कुछ अब भी धुँधले। 
4.
काग़ज़ की नाव
बच्चों के हाथ में, 
जैसे किसी ने सपनों को
पकड़ लिया हो हाथ में। 
5.
वर्षा आई 
धूप की स्मृति बहा ले गई, 
पर दिल के किसी कोने में
इंद्रधनुष बचा रह गया। 
6.
काँच की खिड़की पर
ठिठकती बूँदें 
जैसे कोई पत्र
बिना शब्दों के 
भेजा गया हो। 
7.
बिना छतरी के
जो भीगने दे ख़ुद को, 
वो जुड़ा है ज़मीन 
और आसमान से। 
8.
पेड़ भीगते हैं
पर शिकायत नहीं करते 
सहना जानते हैं
जड़ों से जुड़े जो होते हैं। 
9.
हर बूँद के साथ
कुछ धूल बह जाती है, 
जैसे भीतर की थकान
धुल रही हो धीरे-धीरे। 
10.
बरसात आई
तुम याद आए 
जैसे सूखे मन पर
किसी ने नाम लिखा हो। 

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