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प्रोफ़ाइल पिक की देशभक्ति

 

देशभक्ति का नया अध्याय अब सोशल मीडिया पर शुरू होता है। यहाँ न बॉर्डर पर जाकर गोली खाने की ज़रूरत है, न सड़कों पर नारे लगाने की। यहाँ बस एक क्लिक और एक प्रोफ़ाइल पिक्चर की देशभक्ति है। 

कुछ दिन पहले की बात है, एक भयानक प्राकृतिक आपदा ने कहीं किसी दूर के गाँव में तबाही मचा दी। टीवी पर दिल दहलाने वाले दृश्य दिखाए गए। लोग भूखे-प्यासे थे, घरों से बेघर थे। मेरा हाथ ख़ुद-ब-ख़ुद फ़ोन की ओर बढ़ा। मैंने अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर पर एक दुखी चेहरे वाला फ़िल्टर लगाया। कैप्शन में लिखा, “#PrayFor . . . (उस गाँव का नाम)”। मेरे तीस दोस्तों ने लाईक किया, और पाँच ने तो मेरे इमोशनल स्टेट्स की तारीफ़ भी की। एक दोस्त ने पूछा, “भाई, डोनेशन दिया क्या?” मैंने उसे चुपके से मैसेज किया, “अरे, कौन इतना झंझट करेगा? एक इमोजी डाल दो, यही काफ़ी है।”

एक दिन शहर में विरोध प्रदर्शन हुआ। कोई बड़ा मुद्दा था, जिसका मुझे ठीक से नाम भी याद नहीं था, पर सब लोग उसके बारे में बातें कर रहे थे। एक दोस्त ने मुझे बताया, “यार, आज तो बहुत ज़रूरी है अपनी आवाज़ उठाना।” मैंने अपनी आवाज़ उठाने के लिए अपने ट्विटर पर एक ब्लैक आउट पोस्ट डाला। यानी पूरी काली तस्वीर, जिस पर लिखा था, “#JusticeFor . . . ”। कुछ लोग मेरी पोस्ट को देखकर बहुत प्रभावित हुए। एक ने कहा, “वाह, क्या स्टैंड लिया है!” पर मैं जानता था कि यह स्टैंड सिर्फ़ मेरे फ़ोन की गैलरी तक ही सीमित था। मैंने न तो उस मुद्दे पर कोई किताब पढ़ी थी, न ही कोई लेख। मुझे तो बस इतना पता था कि यह ट्रेंड हो रहा है। 

पिछले महीने पर्यावरण दिवस था। मैंने अपने लैपटॉप पर एक नया वॉलपेपर लगाया, जिसमें हरी-भरी धरती थी। इंस्टाग्राम पर एक पेड़ की तस्वीर डाली, जिस पर मैंने कभी पानी नहीं डाला था। कैप्शन में लिखा, “हमें अपने ग्रह को बचाना होगा।” उस दिन मुझे पर्यावरण योद्धा के नाम से जाना गया। मैंने कई लोगों को पेड़ों के बारे में ज्ञान भी दिया, लेकिन जब मेरे घर के पास एक पेड़ कटा, तो मैं चुप रहा, क्योंकि मैं ऑफ़लाइन था। 

सच कहूँ तो, हम एक ऐसी पीढ़ी बन गए हैं, जो अपनी देशभक्ति, अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी और अपनी मानवता का प्रदर्शन बस अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर्स, ट्रेंडिंग हैशटैग्स और वर्चुअल इमोजी के माध्यम से करते हैं। 

हमारे लिए दुनिया की हर समस्या एक स्टेटस अपडेट है, और हर दुख एक लाईक पाने का मौक़ा। 

जब मैं रात में सोता हूँ, तो मुझे पता होता है कि मेरा ‘ऑनलाइन’ व्यक्तित्व कितना महान है। मैंने मानवता की रक्षा की है, पर्यावरण को बचाया है, और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी है। लेकिन सुबह जब मैं उठता हूँ और आईने में देखता हूँ, तो मुझे एक ऐसा इंसान नज़र आता है, जिसने असल में कुछ नहीं किया। पर कोई बात नहीं, अगली बार कोई आपदा आएगी, तो मैं फिर एक नया फ़िल्टर लगाऊँगा। आख़िर, प्रोफ़ाइल पिक्चर की देशभक्ति ही अब हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

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