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मैं वो नहीं

विश्व महिला दिवस पर मातृशक्ति को समर्पित

 

सपने भी सहमे हैं मेरे
कल्पनाओं में क्रांति है। 
सन्नाटे के सृजन में
सब मैंने बुना
तुमने सिर्फ़ गाँठ बाँधी
और सब कुछ तुम्हारा था। 
 
शब्दों की अंतरध्वनियों
में गूँजते मेरे सवाल
तुमने कभी नहीं सुने। 
साँचे-ढले समाज की
अकम्पित निर्ममता
हब्बा से आज तक
छलती रही मुझे
और तुम बने रहे भगवान। 
 
हाँकते रहे मुझे
उनींदी भोर से सिसकती रात तक
उड़ेलते रहे
अपने अस्तित्व का ज़हर
प्यार का नाम देकर। 
हाँ तुमने गहा था मुझे
लेकिन मुझे छोड़ कर
साथ ले गए सिर्फ़ मेरी देह
उस देह से तुमने उपजा लिए
अनगिन रिश्ते
जिह्वा ललन लालसाएँ
मैं तो अभी भी बैठी हूँ
वहीं अकेली, अधूरी
अंतहीन, अनकही। 

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