नाम के आगे डॉ. लिखना ज़रूरी तो नहीं
संस्मरण | स्मृति लेख डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Jun 2022 (अंक: 206, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
कल आशु भाई (आशुतोष राना) से सम्मानों के ऊपर लम्बी चर्चा हुई मैंने उनसे पूछा, “आशु भाई अपने नाम के आगे लोग डॉ., आचार्य, सर, इत्यादि क्यों लिखते हैं?
आशु भाई ने कहा ये सब उपाधियाँ हैं। लोग अक़्सर अपने नाम और व्यक्तित्व की महत्ता प्रदर्शित करने के लिए इनका प्रयोग करते हैं हालाँकि इनका कोई ख़ास महत्त्व नहीं होता। आपका व्यवहार और देश समाज और व्यक्ति के प्रति कर्तव्य ही आपकी पहचान होते हैं।
जब मैंने उनसे कहा कि आप इन सब सम्मानों से बड़े हैं तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा, “प्रिय सुशील भाई मैं दद्दा जी का शिष्य हूँ और उनकी बातें अपने आचरण में लाने का प्रयास करता हूँ। मुझे सम्मानित होने में नहीं बल्कि सम्मान देने में प्रसन्नता होती है।”
इस संदर्भ में उन्होंने अपना पूज्य दद्दा जी संस्मरण सुनाया।
पूजनीय दद्दा जी का सत्संग चल रहा था दद्दाजी ने मेरी ओर स्नेहिल दृष्टि से देखा फिर कहा, “तुम्हें मालूम है आधि, व्याधि और उपाधि क्या होतीं हैं?” दद्दाजी की नज़रें मेरे चेहरे पर जमीं थीं।
“जी आपके श्रीमुख से हम सब सुनना चाहते हैं,” मैंने दद्दा के चरण पकड़ते हुए कहा।
“आधि का अर्थ होता है नकारात्मक विचार जो मन को बीमार करते हैं ये मानसिक कष्ट देती है,” दद्दाजी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“व्याधि कफ वात और पित्त से उपजा कष्ट है जो शरीर को पीड़ित करता है,” दद्दा थोड़ी देर के लिए शांत होकर कोई पुस्तक देखने लगे।
हम सब व्यग्रता से उपाधि के बारे में दद्दा के विचार जानना चाहते थे। मैंने व्यग्रता से पूछा, “और उपाधि?”
“उपाधि मतलब श्रेष्ठता सम्मान पाने की भावना, मनुष्य सदा ही इस दौड़ में लगा रहता है इससे उसे मानसिक और शारीरिक दोनों कष्ट होते हैं।
आधि, व्याधि के कष्ट सहन हो जाते हैं परन्तु उपाधि का भार सहना मन और शरीर दोनों को अति कष्टकारक होता है। अतः इनसे मुक्त रहो तो ही ज़्यादा अच्छा है,” इतना कहकर दद्दा फिर से वो किताब पढ़ने लगे।
मैं भी आज अपनी सब उपाधि पूज्य दद्दा के चरणों में अर्पित करता हूँ। आज से मैं अपने नाम के आगे कोई उपाधि नहीं लिखूँगा।
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