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अति विनम्रता

दशकों पुरानी बात है। उन दिनों हम सरोजिनी नगर, नई दिल्ली में सरकार की तरफ़ से आवंटित फ़्लैट में रहते थे। हमारे आवास से कुछ दूर हमारी प्रयोगशाला “डिफ़ेंस इंस्टीट्यूट ऑफ़ फिजियोलॉजी एंड एलाइड साइंसेज़ (डिपास)” में कार्यरत एक और सज्जन भी रहते थे। 

जिस दिन उनके आवास में फ़ोन लगा, उन्होंने पहला कॉल मुझे किया और बोले, “सर, आपके घर एक और फ़ोन लग गया है। वक़्त ज़रूरत आप इसे भी इस्तेमाल कर सकते हैं।” 

वे जानते थे कि ऐसा वक़्त कभी नहीं आएगा। वैसे जब भी उन्हें किसी सरकारी काम के लिए कहा तो उन्होंने कोई न कोई बहाना बनाकर उसे टाल दिया। 

बहरहाल “सर, हुक्म दो।” कहना उनका तकिया-ए-कलाम था। 

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