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कमालुद्दीन के बेटे

 

एक क़िस्सा जो कभी सुना था, वह कुछ यूँ है। आज से लगभग कोई सौ साल पुराना वाक़या है। किसी नगर में कमालुद्दीन नामक एक बढ़ई रहता था। उसके दो बेटे थे। एक दिन उसने किसी काम से अपने छोटे बेटे शकील को नगर कोतवाल के पास भेजा। वह गया लेकिन गंजे कोतवाल को देखते ही हँसने लगा। कोतवाल ने पूछा कि वह क्यों हँस रहा है तो वह बोला, “हुज़ूर! आपके गंजे सर पर अगर कोई जूती मारेगा तो वह तो फिसल जाएगी।” 

यह सुनकर कोतवाल ने उसे एक कोठरी में बंद करवा दिया। 

जब कमालुद्दीन का छोटा बेटा वापस नहीं लौटा तो उसने बड़े बेटे अनवर को भेजा। वह शहर कोतवाल के पास गया और जब उसने उनसे अपने छोटे भाई के बारे में पूछा तो कोतवाल ने सारा क़िस्सा उसे बताया। 

यह सुनकर अनवर बोला, “हज़ूर! मेरा भाई कम-अक्ल है। अगर कोई आपकी ठोढ़ी पकड़कर आपको जूती मारेगा तो वह भला कैसे फिसलेगी?”

शहर कोतवाल अनवर के मुँह से यह सुनकर सोच में डूब गये कि जो माँ-बाप ऐसी संतानों को पालते-पोसते हैं, उन पर न जाने क्या बीतती होगी? 

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