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छोटी सी ये दुनिया

 

इस क़िस्से के बीज तब पड़े जब उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के द्वारा नरेंद्र नगर (उत्तराखंड) में स्थापित भूकंप वेधशाला के लिए नियुक्त किए जाने वाले चार वैज्ञानिक सहायकों के पद के साक्षात्कार हेतु मार्च-अप्रैल 1971 में मैं दिल्ली से लखनऊ गया था। लखनऊ के चार बाग़ रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते वक़्त मेरी मुलाक़ात एक ऐसे हमउम्र युवक से हुई जो इसी प्रयोजन हेतु दिल्ली से आया था। 

तय हुआ कि हम अपना साक्षात्कार देने के लिए एक ही रिक्शे से सिंचाई विभाग के ऑफ़िस जाएँगे। स्टेशन से बाहर आकर हमने रिक्शा किया और अपने गंतव्य स्थल पर पहुँचे। उस युवक ने रिक्शे में मुझसे कहा कि उसके पास छुट्टा नहीं है तो फ़िलहाल मैं ख़र्च करता रहूँ और बाद में हिसाब कर लेंगे। एक अच्छी बात यह भी थी कि हम दोनों को शाम को दिल्ली के लिए जहाँ तक मुझे याद है, गोमती एक्सप्रेस से यात्रा करनी थी। 

ख़ैर, सस्ता ज़माना था। हमारा साक्षात्कार 11 बजे के लगभग ख़त्म हुआ। रिक्शे से उतर कर हमने कुछ नाश्ता भी किया था। बाद में हमने हज़रत गंज के किसी भोजनालय में दोपहर का भोजन भी किया। कुल मिलाकर, मैंने बीस-बाईस रुपये ख़र्च किए होंगे। अब पूरा याद तो नहीं लेकिन फिर उस बहुत ही दुबले-पतले युवक ने किसी काम से कहीं अन्यत्र जाने की बात कहकर मेरे से शाम को स्टेशन पर मिलने की बात कहकर विदाई ली। 

मैंने हजरत गंज में सैर-सपाटा करते हुए अपना वक़्त बिताया और स्टेशन पहुँचा। स्टेशन पर वह युवक मुझे नहीं मिला। न जाने उसका रिज़र्वेशन किस कोच में था? ख़ैर, छात्र जीवन में मित्रों पर थोड़ा-बहुत ख़र्च करना मामूली बात होती है और फिर मेरे पर तो मेरे कुछ मित्रों ने दिल खोलकर ख़र्च किया था। एक बार कॉलेज में मैथ्स एसोसिएशन के चुनाव में मैंने सचिव पद का चुनाव लड़ा था तो मेरे एक दोस्त चौधरी ने लगभग मुझे विजय दिलाने के लिए दिल खोलकर ख़र्च किया था। 

ख़ैर, मैं दिल्ली वापस आया और जून 1971 में मुझे सिंचाई विभाग से नरेंद्र नगर भूकंप वेधशाला में जॉइन करने संबंधी पत्र मिला। जुलाई में मैं नरेंद्र नगर पहुँचा और मैंने अपना कार्यभार सँभाला। 

सितंबर 1971 में मुझे डिफ़ेंस इंस्टिट्यूट ऑफ़ फिजियोलॉजी एंड अलाइड साइंसेज़, दिल्ली छावनी से वैज्ञानिक सहायक के पद हेतु साक्षात्कार पत्र मिला। संभवतः अक्टूबर 1971 में किसी दिन मैं अपने साक्षात्कार हेतु तब दिल्ली छावनी में बेस अस्पताल के बाज़ू में अवस्थित इस प्रयोगशाला में पहुँचा। उल्लेखनीय है कि सन् 1997 से यह इंस्टिट्यूट तिमारपुर, दिल्ली में है। 

बहरहाल, उस दिन इस पद के लिए साक्षात्कार हेतु जो प्रत्याशी आए थे, उनमें दिल्ली का वह युवक भी था जो मुझे लखनऊ में मिला था और जिसके पास उस दिन छुट्टा न था। संयोग यह भी रहा कि हम दोनों ने उसके बाद डिपास नामक इस प्रयोगशाला में एक साथ ज़िंदगी के लगभग सैंतीस साल बिताए। 

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