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यादों के ख़जाने से

हिंदी के बहुत कम साहित्यकारों (विज्ञान लेखकों को छोड़कर) से मुझे रूबरू होने के अवसर मिले लेकिन जिनसे मिलने का मौक़ा मिला, उनमें स्वर्गीय गिरिराज किशोर जी एक थे। 

दो वर्ष पहले 9 फरवरी 2020 के दिन हिंदी के यशस्वी कथाकार श्री गिरिराज किशोर जी का निधन हुआ था। सही वर्ष तो याद नहीं लेकिन लगभग तीन दशक पहले की बात है। तब नेशनल बुक ट्रस्ट में निदेशक श्री अरविन्द कुमार थे और आज के ‘राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान‘ और तबक़े ‘पी आई डी‘ के निदेशक श्री बाल फोंडके थे। आईआईटी कानपुर में विज्ञान परिषद् प्रयाग, और नेशनल बुक ट्रस्ट के सहयोग से हिंदी विज्ञान लेखन पर केंद्रित एक पाँच दिवसीय कार्यशाला थी। उस दौरान श्री गिरिराज जी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में ’रचनात्मक लेखन केन्द्र’ के अध्यक्ष थे। मैं जिस वक़्त आईआईटी कानपुर पहुँचा तो रात का खाना सभी प्रतिभागी खा चुके थे। मुझे भोजन श्री गिरिराज किशोर के घर पर परोसा गया। 

मैं भला उनके उस स्नेहिल आतिथ्य को कैसे भूल सकता हूँ? आत्मीयता से भरे ऐसे क्षणों को कोई भी नहीं भूल सकता। साथ ही कार्यशाला के दौरान उनसे जब भी मुलाक़ात हुई, कुछ न कुछ सीखने-समझने को मिला। 

मैं रचनाधर्मिता से कहीं अधिक महत्त्व मनुष्य में मौजूद स्नेह को देता हूँ और मेरा अनुभव कहता है कि गिरिराज किशोर जी उस स्नेह से पूरे तरह से प्लावित थे। ईश्वर हमारे सभी रचनाकारों को ऐसे ही मानवीय गुणों से लबालब भरता रहे—इस कामना और भावना के साथ मैं उनको उनकी इस पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। 

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