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बड़े न बोलें बोल 

 

सरकारी सेवा के उस समय काल का तो मैं उल्लेख नहीं करूँगा लेकिन तब संस्थान के प्रशासन विभाग, भंडार विभाग सहित लगभग दर्जन भर विभागों का मैं “विभाग प्रमुख (Departmental Head)” था। एक दिन मुझे संस्थान के तत्कालीन मुखिया ने कहा कि हमें संस्थान के लिए कुछ महीनों के लिए एक प्राइवेट टैक्सी किराए पर लेनी है और मैं उसके लिए कार्रवाई शुरू कर दूँ। 

इसी सिलसिले में एक दिन जब हम टैक्सी के लिए आई निविदाओं (tenders) पर चर्चा कर रहे थे तो वे मेरे किसी सुझाव पर तंज़ कसते हुए मुझ से बोले, “तुम्हें कारों का उतना तजुर्बा नहीं है जितना मुझे है। मैं तो कई तरह की कारों की सवारी कर चुका हूं।” 

मैंने चुप रहना बेहतर समझा क्योंकि मूर्खतापूर्ण बातों को लेकर मैं कभी भी नहीं उलझता। 

बहरहाल, अब न वे सेवा में हैं और न मैं। पिछले 14 वर्षों में मैंने जिन महँगी कारों में हज़ारों मील की यात्राएँ की हैं, उनमें यात्रा करना तो दूर की बात है, उस अंहकारी इंसान ने उनके नाम भी न सुने होंगे। 

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