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बापू ने कहा था

मुझे न जाने क्यों, एक दिन अचानक याद आया कि बचपन में हम कुछ बच्चे मंगलवार के दिन अपने क़स्बे के एक मंदिर में जाते थे। वजह ईश्वर भक्ति न होकर “प्रसाद” पाना रहता था। जब भी कोई भक्त प्रसाद बाँटता था, उसका प्रसाद ख़त्म हो जाता था किन्तु हम लोभी बच्चे तब तक अपना हाथ पसारे उसे चारों तरफ़ से घेरे रखते थे जब तक वह अपनी झुँझलाहट प्रकट करते हुए वहाँ से खिसकता नहीं था। 

हमारे देश में भी पिछले 76 वर्षों से यही हो रहा है। धरती के पास जो प्रसाद था, वो ख़त्म हो चुका है या होने वाला है किन्तु लालची लोगों के पसरे हाथ सामने नज़र आ रहे हैं। जल-जंगल-ज़मीन, सभी का बेजा इस्तेमाल हो रहा है। परेशानी की बात है कि लालच पर अंकुश लगाने का संदेश अक़्सर वे लोग देते रहते हैं जो इस लूट-खसूट में मुखिया रहे हैं। उनकी ज़ुबाँ यह कहते हुए नहीं थकती कि बापू ने कहा था, “पृथ्वी हमारी ज़रूरतों को तो पूरा कर सकती है पर हमारे लालच को नहीं।” 

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