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गुड़ जैसे मीठे बोल


 
लगभग 33-34 वर्ष पुराना वाक़या है। उन दिनों जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में आकाशवाणी का राष्ट्रीय प्रसारण सेवा केंद्र भी था। तब प्रख्यात कवि और समीक्षक श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी इस केंद्र में थे। एक दिन मैं अपनी किसी विज्ञान वार्ता की रिकॉर्डिंग के सिलसिले में उनके पास बैठा था कि तभी वहाँ कथाकार श्री महेश दर्पण जी आए। वाजपेयी जी ने उनसे मेरा परिचय कराते हुए कहा, “आप सुभाष लखेड़ा है और . . .” 

अभी वाजपेयी जी अपनी बात पूरी कर पाते कि महेश जी जो उन दिनों नवभारत टाइम्स में सेवारत थे, मुस्कुराते हुए बोले, “जानता हूँ, बहुत चर्चित नाम है।” 

सच तो यह था कि वे मुझे नहीं जानते थे और न ही उन्होंने मेरा नाम सुना होगा लेकिन उस दिन उनके गुड़ जैसे मीठे बोल मुझे अच्छे लगे थे। 

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