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वीर बाल दिवस

 

 (जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत) 
 (लघु नाटिका)
 

 

कुछ कृत्य और कार्य इतने गहन होते हैं कि वे इतिहास की दिशा ही बदल देते हैं! ऐसी ही एक शहादत है सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे पुत्रों की! युवा और मासूम लड़के, साहिबज़ादा (राजकुमार) जोरावर सिंह और साहिबज़ादा फतेह सिंह 26 दिसंबर, 1705 को शहीद हो गए, जब सरहिंद के मुग़ल गवर्नर वज़ीर खान ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। 

गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी के छोटे पुत्र, साहिबज़ादा बाबा जोरावर सिंह जी और साहिबज़ादा बाबा फतेह सिंह जी का जन्म आनंदपुर साहिब में हुआ था। दादी माता गुज़री कौर जी विशेष रूप से युवा साहिबज़ादों के क़रीब थीं। जब गुरु जी का परिवार आनंदपुर साहिब से निकाला गया, तो माता जी ने उन दोनों की ज़िम्मेदारी सँभाली थी।

 

 

प्रथम दृश्य


 (श्री आनंदपुर पुर साहिब में गुरुबानी का पाठ) 

सेवक:

गुरुजी शाही दरबार से कोई सन्देश वाहक आया है। 

गुरु गोबिंद सिंह जी:

उसे यहाँ ले आओ। 

 (सेवक जाता है औरंगज़ेब का दूत अंदर आता है गुरु गोविन्द सिंह जी को प्रणाम करता है) 

गुरु गोबिंद सिंह जी:

कहो दूत क्या संदेशा है? 

दूत:

साहबे आलम ने आपको सन्देश भेजा है। 

 

(गुरुगोबिंद सिंह का सेवक दूत से सन्देश लेकर पढ़ता है। पत्र में लिखा था कि “मैं क़ुरान की क़सम खाता हूँ, अगर आप आनंदपुर का क़िला ख़ाली कर दें, तो बिना किसी रोक-टोक के यहाँ जाने दूँगा।” 
गुरुगोबिंद के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।) 

गुरु गोबिंद सिंह जी:

तुम्हारे साहिबे आलम पर विश्वास करना कठिन है फिर भी हम एक बार विश्वास करके देखते हैं। 

 

 (दूत जाता है) 

 

औरंगज़ेब अपनी बात से मुकर जाता है और आनंदपुर साहेब पर आक्रमण कर देता है। मुग़लों और छोटी पहाड़ी रियासतों की संयुक्त सेना ने गुरु गोबिंद सिंह, उनके परिवार और अनुयायियों को आनंदपुर साहिब क़िले से बाहर निकालने के लिए कपटपूर्ण छल का इस्तेमाल किया और फिर उन्हें नष्ट करने की कोशिश की। वज़ीर खान के अधीन इन सेनाओं ने गुरु को आनंदपुर साहिब से सुरक्षित मार्ग देने का वादा किया, लेकिन जब वे बाहर आये तो भारी संख्या में उन पर हमला कर दिया। सिखों की मुख्य टुकड़ी ने चमकौर में अंतिम व्यक्ति तक लड़ाई लड़ी, जहाँ गुरु गोबिंद सिंह ने मुट्ठी भर सिखों के साथ रक्षात्मक स्थिति सँभाली। गुरु के बड़े बेटे, साहिबज़ादा अजीत सिंह और साहिबज़ादा जुझार सिंह चमकौर की लड़ाई में लड़ते हुए शहीद हो गए। घटनाओं के दुखद मोड़ में गुरु ने अपने चार बेटों और अपनी माँ को खो दिया, लेकिन अपने समर्पित अनुयायियों की बहादुरी और बलिदान से उन्हें बचा लिया गया। 

दूसरा दृश्य

 

सेवक:

अल्लाह हो अकबर, हमारी फ़तह हुई जनाब। गोविन्द सिंह के दो पुत्र मारे गए, उनकी माँ और दो छोटे बेटों को बंदी बना लिया गया है। 

वज़ीर खान:

कल उन्हें मेरे सामने पेश किया जाये। 

 (अगले दिन इन्‍हें नवाब वज़ीर खान की कचहरी में पेश किया गया) 


वज़ीर खान:

वल्लाह, कितने प्यारे बच्चे हैं। बच्चो तुम इस्लाम धर्म अपना लो, हम तुम्हें तुम्हारी इस बूढ़ी दादी माँ और तुम्हारे पिता की जान बख़्श देंगे। 

तुम्हें इतना इनाम देंगे की तुम्हारी सात पुश्तें आराम की ज़िन्दगी जियेंगी। 

जोरावर सिंह:

वज़ीर शाह हम बच्चे ज़रूर हैं लेकिन शेर के बच्चे हैं, हम किसी भी स्थिति में अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे, चाहे तुम कुछ भी कर लो। 

फ़तेह सिंह:

वाहे गुरु का खालसा वाहे गुरु की फ़तेह। 

वज़ीर शाह:

इन तीनों को सज़ा देनी पड़ेगी, ये बग़ावत कर रहे हैं इन्हें रात भर ठंडी मीनार पर रखो सुबह तक होश ठिकाने आ जायेंगे। 

 

 [वज़ीर खान ने युवा राजकुमारों को सबसे ख़राब यातना और धमकी के अधीन रखा, उसने उन्हें और उनकी दादी को एक ठंडे बुर्ज (एक ठंडी मीनार) में रखा, जो रात की ठंडी हवा को पकड़ने के लिए बनाया गया था। रात भर ठंड के मौसम में रहने के बाद भी उन युवा साहबज़ादों का दृढ़ निश्चय अटल रहा।] 

तीसरा दृश्य 

अगले दिन उन दो मासूम बच्चों को वज़ीर खान की कचहरी में प्रस्तुत किया गया। 

वज़ीर खान:

क्यों अब अक़्ल ठिकाने आई शेर के बच्चो! बोलो! इस्लाम स्वीकार करते हो? 

फ़तेह सिंह:

हरगिज़ नहीं, हम गुरुनानक के वंशज हैं मर जायेंगे पर अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे। 

जोरावर सिंह:

वज़ीर खान एक सलाह है तुम इस्लाम छोड़ कर सिख धर्म अपना लो, तुम्हारे सारे पाप धुल जायेंगे। 

वज़ीर खान:

ज़ुबान बंद कर अपनी, लगता है तुझे मौत बुला रही है। 

फ़तेह सिंह:

मौत का डर किसे दिखा रहा है, हम अपने धर्म के लिए सौ बार क़ुर्बान हैं। 

वज़ीर खान:

ये दोनों मुग़ल साम्राज्य के विरोधी हैं ये बाग़ी हैं इन्हें कल दीवार में ज़िन्दा चुनवा दिया जाए। 

 (दोनों बच्चे वाहे गुरु का खालसा वाहे गुरु की फ़तेह का नारा लगाते है) 

 

दृश्य चार

 

दोनों बच्चों को लाया जाता है। मिस्त्री दोनों बच्चों के चारों ओर दीवार चुनते हैं, जब दीवार उन के सीने तक आ जाती है तबी वज़ीर खान पुनः उनसे इस्लाम स्वीकार करने की बात कहता है। 

वज़ीर खान:

अभी भी समय है, बोलो इस्लाम स्वीकार है, जान बख़्श दी जाएगी, बहुत सारी दौलत से मालामाल कर दिए जाओगे। 

फ़तेह सिंह

तुम लाख कोशिश कर लो वज़ीर खान, हम सच्चे सिख हैं अपनी जान की परवाह नहीं हैं, हम कभी भी इस्लाम स्वीकार नहीं करेंगे। 

जोरावर सिंह:

ੴ (एकम ओंकार) सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि॥

[वही एक है। सति नामु - उसका नाम सत्य है। करता - वह सृष्टि व उसके जीवों की रचने वाला है। पुरखु - वह यह सब कुछ करने में परिपूर्ण (शक्तिमान ) है। निरभउ - उसमें किसी तरह का भय व्याप्त नहीं। निरवैरु- वह वैर से रहित है। अकाल- वह काल (मृत्यु) से परे है; अर्थात्-वह अविनाशी है। मूरति - वह अविनाशी होने के कारण उसका अस्तित्व सदैव रहता है। अजूनी - वह कोई योनि धारण नहीं करता, क्योंकि वह आवागमन के चक्कर से रहित है। सैभं - वह स्वयं से प्रकाशमान हुआ है। गुर - अंधकार (अज्ञान) में प्रकाश (ज्ञान) करने वाला (गुरु)। प्रसादि- कृपा की बख्शिश। अर्थात्-गुरु की कृपा से यह सब उपलब्ध हो सकता है।]
 

दोनों साहबज़ादे बेहोश हो जाते हैं, बच्चों के दम तोड़ने से पहले ही दीवार तोड़ दी गई और उसके बाद सबसे भयानक कृत्य किया गया! वज़ीर खान ने जल्लादों को युवा साहबज़ादो के गला काटने का आदेश दिया। शहादत की ख़बर सुनते ही उनकी दादी माता गुर्जर कौर ने भी अंतिम साँस ली। 

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