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मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001


(गीत)

 

मैं दिनकर कवि का वंशज हूँ,
इतिहास बनाने आया हूँ।
रुधिर खौल कर ज्वाला हो,
वो गीत सुनाने आया हूँ।
 
1.
लोकतंत्र के प्रहरी सोते 
संसद के गलियारों में 
लुटें बेटियाँ रस्ते-रस्ते 
गली-गली चौबारों में। 
अदल - बदल कर मुखड़े अपने 
सत्ता का उपभोग करें। 
भ्रष्टाचारी रिश्वत खा कर 
ईमानों का योग करें। 
 
राजनीति की इस चौसर का 
राज बताने आया हूँ। 
 
2.
नहीं प्रेम के गीत सुनाता
मैं शहीद की बात लिखूँ। 
विरह -मिलन के गीत लिखो तुम
मैं शत्रु की घात लिखूँ। 
संगीनों के साये में जो 
प्राण निछावर करते हैं। 
सघन क्रांति का बीज लिए जो 
नहीं किसी से डरते हैं। 
 
अमर शहीदों की गाथा का 
गान सुनाने आया हूँ।
  
3.
गर्ज-गर्ज कर तुम हुंकारों 
कर्तव्यों की अनुशंसा हो। 
बाँहों में वारिधि को बाँधों 
खुली क्रांति की मंशा हो। 
उठो उठो भारत के पुत्रो 
जीवन का यशगान करो। 
भारत की पावन भूमि से 
दुष्टों का अवसान करो। 
 
हे भारत के युवा जगो अब 
रविगान सुनाने आया हूँ।
 
— क्रमशः
 

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