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गुरु पर दोहे – 02

 

गुरु निर्मित करते हमें, गढ़ते हैं व्यक्तित्व। 
मात-पिता से तन रहे, गुरु देते अस्तित्व। 
 
अंतस यात्रा के लिए, गुरु करते तैयार। 
पात्र शिष्य को गुरु करें, देते सद आचार। 
 
अविरल गुरु वाणी सदा, आत्मबोध आधार। 
दिव्य चेतना युक्त है, सतगुरु का व्यवहार। 
 
भौतिकता से दूर कर, गुरु देता अध्यात्म। 
सांसारिक बाधा हरे, गुरु जोड़े परमात्म। 
 
अहंकार का नाश कर, आत्म बोध संधान। 
अंतस कूड़ा साफ़ कर, देता नया विधान। 
 
अनजाने हैं पथ कठिन, गुरु है पत्थर मील। 
अंधकार में दीप सम, गुरु तन प्राण सुशील। 
 
गुरु देते विश्वास मन, हरते सब अज्ञान। 
गुरु की महिमा है अतुल, कैसे करूँ बखान। 

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