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श्रम की रोटी पर दोहे

 
श्रम की रोटी श्रेष्ठ है, रहता मन संतोष। 
ईश्वर का वरदान है, सच्चा जीवन कोष॥
 
धूप-पसीना एक कर, माटी उपजा अन्न। 
तब जाकर मिलती हमें, श्रम की रोटी धन्य॥
 
भूखे पेट न हो भजन, रोटी से सब काम। 
रोटी से जीवन चले, रोटी ही है राम॥
 
भूखे बच्चे देखते, डस्टबिन की ओर। 
आँखों में आँसू भरे, मुँह में जूठा कौर। 
 
आपा-धापी रात दिन, हर पल है संग्राम। 
श्रम की रोटी श्रेष्ठ है, जीवन का पैग़ाम॥
 
सूखी रोटी भी लगे, जैसे छप्पन भोग। 
रोटी के पीछे भगें, जग के सारे लोग। 
 
रोटी जब तक पास है, देते तब सब मान। 
रोटी गर रूठे अगर, सब रिश्ते सुनसान॥
 
संघर्षों की राह पर, गर चलता इंसान। 
श्रम की रोटी से बढ़े, जीवन में सम्मान। 
 
रोटी के भीतर छुपी, टूटे मन की आस। 
रोटी में ही है निहित, रिश्तों का विश्वास॥
 
श्रम की रोटी में छुपा, ईश्वर का वरदान। 
भूखे को रोटी खिला, यह है उत्तम दान॥

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