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माँ कालरात्रि: माँ भगवती का सप्तम प्राकट्य स्वरूप

 

शारदीय नवरात्र की साधना का सातवाँ दिवस, 
आज प्रकट होती हैं माँ कालरात्रि, 
दिग्विजयी, प्रचंड, 
जिनकी छवि से भय मिटता है
और जिनका स्मरण ही साधक के लिए
मुक्ति का द्वार खोल देता है। 
 
उनका रूप
अत्यंत उग्र, श्यामवर्ण, 
विकट जटाजूट से अलंकृत, 
गले में लटकते मुण्डमाल, 
तीखे दाँत और दहकती दृष्टि, 
किन्तु भीतर अनंत करुणा, 
जो भक्त के लिए
माँ के वात्सल्य में बदल जाती है। 
 
सिंहवाहिनी या गदायुक्त रूप में
वे जगत को संदेश देती हैं
कि विनाश भी एक सृजन है, 
अंधकार भी प्रकाश का जन्मदाता है। 
माँ कालरात्रि
भय को नष्ट करती हैं, 
संसार को दिखाती हैं
कि मृत्यु के पार भी जीवन है, 
और अंत ही एक नए आरंभ का संकेत है। 
 
उनकी आराधना में भक्त
गुड़ और जौ का भोग लगाते हैं। 
यह भोग प्रतीक है
सरलता और धरती की गंध का, 
जो हमें याद दिलाता है
कि जीवन का सत्य भव्यता में नहीं, 
बल्कि सादगी में छिपा है। 
 
आध्यात्मिक स्वरूप में
माँ कालरात्रि ही हैं
कुण्डलिनी की जागृति, 
भ्रम और अज्ञान के विनाश की शक्ति। 
साधक जब उनका ध्यान करता है
तो भीतर के अंधकार से टकराने का सामर्थ्य पाता है। 
वे सिखाती हैं
भय को बाहर मत खोजो, 
भय भीतर है। 
उसे जला दो, 
तो संसार का हर संकट 
क्षीण हो जाएगा। 
 
माँ की उपासना का फल है
भय का पूर्ण विनाश, 
आत्मा का उत्थान, 
और मुक्ति की झलक। 
कहा गया है कि
माँ कालरात्रि की कृपा से
भक्त अग्नि, जल और शस्त्र तक से निर्भय रहता है। 
उनके व्रत का पुण्य
साधक को अनंत शान्ति और
मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। 
 
वर्तमान समय में, 
जब भय का साम्राज्य
अनेक रूपों में मनुष्य को जकड़े हुए है
बीमारी का भय, 
असुरक्षा का भय, 
भविष्य का भय, 
और असफलता का भय
माँ कालरात्रि की साधना
अत्यंत प्रासंगिक है। 
आज उनकी उपासना हमें सिखाती है
कि जीवन का सबसे बड़ा शत्रु बाहरी नहीं, 
भीतर का भय है। 
यदि हम माँ का स्मरण कर
अपने भीतर साहस जगाएँ, 
तो कोई विपत्ति हमें डिगा नहीं सकती। 
 
हे माँ कालरात्रि, 
आपके चरणों में विनम्र प्रणति। 
हमें वह शक्ति प्रदान कर
कि हम अंधकार से न डरें, 
बल्कि अंधकार को ही प्रकाश का मार्ग बनाएँ। 
आपकी कृपा से
हमारा मन निर्भीक हो, 
हमारी आत्मा मुक्त हो, 
और हमारा जीवन
धर्म और सत्य की ज्योति से
आलोकित हो। 

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