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स्वतंत्रता दिवस: गौरव, बलिदान, हमारी ज़िम्मेदारी और स्वर्णिम भविष्य की ओर भारत


(स्वतंत्रता दिवस पर आलेख) 

 

भारत का स्वतंत्रता दिवस मात्र 15 अगस्त का एक राष्ट्रीय अवकाश नहीं है, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय चेतना, आत्म-सम्मान और एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में हमारे अस्तित्व का प्रतीक है। यह वह पावन दिन है, जब सदियों की ग़ुलामी की बेड़ियाँ टूटीं और एक नए, स्वतंत्र भारत का उदय हुआ। यह दिन हमें उन लाखों-करोड़ों गुमनाम और नामचीन नायकों के त्याग, तपस्या और बलिदान का स्मरण कराता है, जिन्होंने अपने जीवन का सर्वस्व इस राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। यह दिन हमें गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेने और उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ने का संकल्प देता है। 

इतिहास की गाथा: संघर्ष और विजय

भारत की स्वतंत्रता की कहानी केवल 1947 में समाप्त नहीं होती, बल्कि यह 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से शुरू होकर एक लंबी और कठिन यात्रा का परिणाम है। 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद से ही भारत में ब्रिटिश सत्ता की नींव रखी गई, और इसके साथ ही शुरू हुआ प्रतिरोध का एक अंतहीन सिलसिला। 1857 की क्रांति, जिसे ब्रिटिश इतिहासकारों ने ‘सिपाही विद्रोह’ कहकर नकारने की कोशिश की, वास्तव में भारत की स्वतंत्रता की पहली सामूहिक ललकार थी। मंगल पांडे की शहादत, रानी लक्ष्मीबाई का शौर्य, तांत्या टोपे का अदम्य साहस और बहादुर शाह ज़फ़र का नेतृत्व—यह सब उस चिंगारी का हिस्सा थे, जिसने पूरे देश को जगाने का काम किया। 

इसके बाद के दशकों में राष्ट्रवाद की भावना और मज़बूत हुई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885) ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक संगठित मंच दिया। बाल गंगाधर तिलक का ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा, लाला लाजपत राय का ‘पंजाब केसरी’ के रूप में नेतृत्व और विपिन चंद्र पाल की ओजस्वी वाणी ने ‘गरम दल’ की नींव रखी। दूसरी ओर, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नरमपंथी नेता संवैधानिक तरीक़ों से स्वतंत्रता की माँग कर रहे थे। 

प्रथम विश्व युद्ध के बाद महात्मा गाँधी का आगमन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नया अध्याय लेकर आया। उनके अहिंसक आंदोलन, असहयोग, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता की लड़ाई को एक जन आंदोलन में बदल दिया। गाँधीजी के साथ-साथ सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरोजिनी नायडू जैसे नेताओं ने देश को एकजुट किया। इसी दौरान, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला खान जैसे क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित किया कि स्वतंत्रता पाने के लिए हर रास्ता स्वीकार्य है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ‘तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’ का नारा देकर आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना की, जिसने बाहरी दुनिया में भी भारत की आज़ादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी। 

गौरवशाली विरासत: सभ्यता का प्रकाश

भारत का गौरव उसकी 5000 वर्षों से अधिक पुरानी सभ्यता में निहित है। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर वेदों, उपनिषदों और बौद्ध-जैन दर्शन तक—हमारी भूमि ज्ञान, विज्ञान और आध्यात्मिक चिंतन का केंद्र रही है। चाणक्य के अर्थशास्त्र ने राजनीति और कूटनीति के सिद्धांत दिए, आर्यभट्ट और भास्कर ने ज्योतिष और गणित में क्रांति लाई, और चरक व सुश्रुत ने चिकित्सा विज्ञान को नई ऊँचाइयाँ दीं। भारत की यह विरासत केवल अकादमिक नहीं थी, बल्कि यह सामाजिक सहिष्णुता और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना में भी प्रकट होती थी, जिसने विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों को एक साथ पल्लवित होने का अवसर दिया। 

स्वतंत्रता के बाद, इस गौरवशाली विरासत को सँजोए रखना एक बड़ी चुनौती थी। हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे सफलतापूर्वक निभाया। उन्होंने एक ऐसा संविधान बनाया जो सभी नागरिकों को समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व की गारंटी देता है। आज भी, भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जो अपनी विविधता को अपनी सबसे बड़ी शक्ति मानता है। यह गौरव हमें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देता है। 

अमर बलिदान: राष्ट्र का ऋण

स्वतंत्रता का यह पर्व उन शहीदों के बलिदान की याद दिलाता है, जिनके ख़ून से यह भूमि सिंची गई है। जलियाँवाला बाग़ में निहत्थे लोगों पर हुई गोलीबारी, भगत सिंह की फाँसी का दृश्य, और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान लाखों लोगों का जेल जाना—यह सब हमें स्वतंत्रता की क़ीमत का एहसास कराते हैं। विभाजन की त्रासदी, जिसमें लाखों लोगों ने अपने घर, परिवार और जीवन खो दिए, उस बलिदान का एक दर्दनाक अध्याय है, जिसे हम कभी भूल नहीं सकते। 

आज, जब हम एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में खड़े हैं, तब हमें इस बलिदान को एक ऋण के रूप में स्वीकार करना चाहिए, जिसे हम अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाकर चुका सकते हैं। हमें हर उस सैनिक का सम्मान करना चाहिए जो हमारी सीमाओं की रक्षा करता है, हर उस किसान का आभार व्यक्त करना चाहिए जो हमारे लिए अन्न उगाता है, और हर उस नागरिक का सम्मान करना चाहिए जो अपने कर्त्तव्यों का पालन करता है। 

हमारे कर्त्तव्य: प्रगति का पथ

स्वतंत्रता दिवस मनाना केवल एक औपचारिकता नहीं है; यह एक प्रतिज्ञा है। एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में हमारा कर्त्तव्य है कि हम अपने समाज को बेहतर बनाने में योगदान दें। हमें भ्रष्टाचार का विरोध करना चाहिए, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना चाहिए, पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए और समाज के हर वर्ग के लिए न्याय सुनिश्चित करना चाहिए। 

आज की पीढ़ी के लिए, स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक मुक्ति नहीं है, बल्कि यह आर्थिक स्वतंत्रता, सामाजिक समानता और विचारों की स्वतंत्रता भी है। हमें अपने समाज में व्याप्त जातिवाद, सांप्रदायिकता और असमानता जैसी बुराइयों से लड़ना होगा। डिजिटल युग में, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपनी संस्कृति और मूल्यों को बनाए रखते हुए तकनीकी प्रगति का लाभ उठाएँ। 

विकास और स्वर्णिम भविष्य की योजनाएँ

स्वतंत्रता के बाद के 75 वर्षों में भारत ने एक लंबा सफ़र तय किया है। एक ग़रीब, कृषि-प्रधान देश से निकलकर आज भारत एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है। हमने हरित क्रांति के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है, और श्वेत क्रांति के माध्यम से डेयरी उत्पादन में विश्व का नेतृत्व किया है। 

वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में भारत ने असाधारण प्रगति की है। इसरो के मंगलयान और चंद्रयान मिशन ने हमें अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में स्थापित किया है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत एक वैश्विक केंद्र बन गया है, और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियान देश को विनिर्माण हब बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। ‘आत्मनिर्भर भारत’ का लक्ष्य हमें आर्थिक रूप से और अधिक स्वतंत्र बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम है। 

सरकार की अनेक योजनाएँ, जैसे ‘डिजिटल इंडिया', ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और ‘आयुष्मान भारत', देश के हर नागरिक तक विकास का लाभ पहुँचाने का प्रयास कर रही हैं। हमारी विदेश नीति ने भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है, जो विश्व शान्ति और सहयोग में विश्वास रखता है। 

प्रतिज्ञा और भविष्य का संकल्प

स्वतंत्रता दिवस पर, हमें यह प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि हम अपने देश की स्वतंत्रता और अखंडता की रक्षा करेंगे। हमें जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर विभाजन को अस्वीकार करना होगा। हमारी एकता ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जो न केवल आर्थिक रूप से मज़बूत हो, बल्कि सामाजिक रूप से भी न्यायपूर्ण, सहिष्णु और समृद्ध हो। 

यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम हर दिन अपने देश के प्रति प्रेम, निष्ठा और सेवा की भावना को जीवित रखें। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन वीरों के प्रति, जिन्होंने यह स्वतंत्रता हमें सौंपी है, और यही हमारा मार्ग होगा उस स्वर्णिम भविष्य की ओर, जिसका सपना हमारे पूर्वजों ने देखा था। 

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