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मृगतृष्णा

पुरुष के लिए प्रेम
नदी में एक लंबी छलाँग
सरसराता तैरना है।
ख़ुद को सरोबोर कर
लम्बी बाँहों से
स्त्री के शरीर को तैरते हुए
पार कर जाना है।
पुरुष प्रेम में डूबता है
पुरुष की प्रेम कहानी में
समाज होगा शरीर होगा
रिश्ते होंगे, ज़मीर होगा 
पर स्त्री नहीं होगी
वो स्त्री जो विदेह हो।
स्त्री के लिए प्रेम
एक मृगतृष्णा
जिसे वो खोजती है
पहली रात से ही
सुबह शाम हर पल
हर दिन सुबह उठ कर
रिश्ते के गलियारों में उगे
पौधों को पानी 
देते हुए सपनों में।
स्त्री प्रेम को जीती है
वह प्रेम में डूबती नहीं है
वरन प्रेम की सहस्त्र धारा से
सदानीरा बनी रहती है
पर नहीं पी सकती 
उसका एक बूँद पानी।
स्त्री की प्रेम कहानी में
कुछ नहीं होता एक कोरा काग़ज़
जिस पर लिखा होता है
मृगतृष्णा।

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