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विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम

“पृथ्वी हर मनुष्य की हर  ज़रूरत को पूरा कर सकती है, लेकिन हर व्यक्ति के लालच को नहीं।”- महात्मा गाँधी

 

पर्यावरण एक व्यापक शब्द है। यह उन संपूर्ण शक्तियों, परिस्थितियों एवं वस्तुओं का योग है, जो मानव जगत को परावृत्त करती हैं तथा उनके क्रियाकलापों को अनुशासित करती हैं। शुक्ल यजुर्वेद में ऋषि प्रार्थना करता है, ‘द्योः शांतिरंतरिक्षं...’ (शुक्ल यजुर्वेद, 36/17)। इसलिए वैदिक काल से आज तक चिंतकों और मनीषियों द्वारा समय-समय पर पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता को अभिव्यक्त कर मानव-जाति को सचेष्ट करने के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया गया है।

सर्वप्रथम डॉ. रघुवीर ने तकनीकी शब्द कोष निर्माण के समय ‘इन्वायरमेंट’ (फ्रेंच भौतिक शब्द) के लिए ‘पर्यावरण’ शब्द का प्रयोग किया है। वे ही इसके प्रथम ‘शब्द प्रयोक्ता है (कंप्रिहेंसिव इंग्लिश-हिंदी डिक्शनरी, डॉ. रघुवीर, पृ. 589)। वास्तव में पर्यावरण या इन्वायरमेंट शब्द अत्यधिक प्राचीन शब्द नहीं है। जर्मन जीव वैज्ञानिक अर्नेस्ट हीकल द्वारा ‘इकॉलाजी’ शब्द का प्रयोग सन् 1869 में किया गया, जो ग्रीक भाषा के ओइकोस (गृह या वासस्थान) शब्द से उद्धृत है।

बिगड़ता पारिस्थितिकी तंत्र

पृथ्वी का पारिस्थिति तंत्र बहुत नाज़ुक स्थिति में पहुँच चुका है, जब एक पारिस्थितिकी तंत्र स्थिर और स्वस्थ होता है, तो उसे एक स्थायी वातावरण कहा जाता है। इसका मतलब है कि यह ख़ुद को बनाए रखने और प्रजनन करने में सक्षम है। सतत पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता होती है। वहाँ विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ और जीव रहते हैं और योगदान करते हैं।

पारिस्थितिक तंत्र का विनाश ख़तरनाक दर से हो रहा है। फ़ोर्ब्स द्वारा फरवरी 2020 में प्रकाशित एक शोध अध्ययन के अनुसार, अगले 20 वर्षों में, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सभी प्रवाल भित्तियों का लगभग 70% से 90% ग़ायब हो जाएगा। यह समुद्र के पानी के गर्म होने, समुद्र की अम्लता और प्रदूषण के कारण है। विश्व स्वास्थ संगठन ने हाल ही में जारी अपनी रिर्पोट में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के भावी परिदृश्य के रूप में बढ़ते तापमान के साथ बढ़ते प्रदूषण से बीमारियों विशेषतः हार्ट अटैक, मलेरिया, डेंगू, हैजा, एलर्जी तथा त्वचिय रोगों में वृद्धि के संकेत देकर विश्व की सरकारों को अपने स्वास्थ्य बजट में कम से कम 20 प्रतिशत वृद्धि करने की सलाह दी है।

विभिन्न देशों के विदेश मंत्रालयों तथा सैन्य मुख्यालयों द्वारा जारी सूचनाओं में वैश्विक तापमान वृद्धि से विश्व के देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा पर ख़तरे के मँडराने का संकेत दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव (बान की मून) ने इसी वर्ष अपने प्रमुख भाषण में वैश्विक तापमान वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे ‘युद्ध’ से भी अधिक ख़तरनाक बताया है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के भविष्य दर्शन के क्रम में यह स्पष्ट है कि पर्यावरण के प्रमुख जीवी घटकों हेतु अजीवीय घटकों वायु, जल और मृदा हेतु प्रमुख जनक वनों को तुरंत प्रभाव से काटे जाने से संपूर्ण संवैधानिक शक्ति के साथ मानवीय हित के लिए रोका जाए, ताकि बदलती जलवायु पर थोड़ा ही सही अंकुश तो लगाया जा सके।

वनों की कटाई अवैध कटाई और मानव की आवश्यकता और प्रगति के कारण होती है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, “2015 और 2020 के बीच, वनों की कटाई की दर प्रति वर्ष 10 मिलियन हेक्टेयर अनुमानित थी, जो 1990 के दशक में प्रति वर्ष 16 मिलियन हेक्टेयर से कम थी। 1990 के बाद से दुनिया भर में प्राथमिक वन के क्षेत्र में 80 मिलियन हेक्टेयर से अधिक की कमी आई है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 के अनुसार, 10 लाख प्रजातियों (10 लाख जानवरों, पौधों और कीड़ों) के विलुप्त होने का ख़तरा है।

पर्यावास का नुक़सान हमारी पशु प्रजातियों को ख़तरे में डाल रहा है। शीर्ष शिकारियों जैसे कि शेर, बाघ तेंदुआ और यहाँ तक कि राजसी पर्वत गोरिल्ला सभी को निवास स्थान के नुक़सान का ख़तरा है।
आईयूसीएन द्वारा मूल्यांकन की गई कुल 1,28,918 प्रजातियों में से:

  • 902 'विलुप्त' हैं।

  • 80 'जंगली विलुप्त' हैं।

  • 7,762 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' हैं।

  • 13,285 'लुप्तप्राय' हैं।

  • 14,718 'कमजोर' हैं।

  • 7,644 'ख़तरे के करीब' हैं।

  • 66,469 'चिंतातुर स्थिति में हैं।

मनुष्य पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करने पर तुला है। मानव प्रजाति की जीवन शैली काफ़ी आत्म-विनाशकारी है, कम से कम कहने के लिए क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधनों के आपराधिक अति प्रयोग के साथ-साथ प्रदूषण पैदा करती है। सड़कों का निर्माण, जानवरों का शिकार, पेड़ों की धरती को साफ़ करना जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश को तेज़ करने वाले कुछ कारक हैं। जिस दर से संसाधनों का उपभोग किया जा रहा है, हो सकता है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ न बचे।

वर्तमान स्थितियों के लिए मुख्य रूप से हमारी कथनी और करनी का कर्म ही ज़िम्मेदार है। एक ओर हम पेड़ों की पूजा करते हैं तो वहीं उन्हें काटने से ज़रा भी नहीं हिचकते। हमारी संस्कृति में नदियों को माँ कहा गया है, परंतु उन्हीं माँ स्वरूपा गंगा-जमुना, महानदी की हालत किसी से छिपी नहीं है। इनमें हम शहर का सारा जल-मल, कूड़ा-कचरा, हार फूल यहाँ तक कि शवों को भी बहा देते हैं। नतीजतन अब देश की सारी प्रमुख नदियाँ गंदे नालों में बदल चुकी हैं। पेड़ों को पूजने के साथ उनकी रक्षा का संकल्प भी हमें उठाना होगा।

भारत आज दुनिया के सामने तीन परस्पर जुड़े पर्यावरणीय संकटों का मुकाबला करने के वैश्विक प्रयासों का अभिन्न अंग है, अर्थात् जलवायु परिवर्तन, प्रकृति और जैव विविधता हानि, और प्रदूषण व अपशिष्ट स्तर। भारत में ये संकट वायु और जल प्रदूषण, महामारी और क्षरणकारी भूमि-उपयोग प्रथाओं, मरुस्थलीकरण और चरम मौसम की घटनाओं के कारण होते हैं। हाल के एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने के मामले में भारत  उच्च  स्थान पर है।

इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस पर, हम औपचारिक रूप से पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक की शुरुआत भी कर रहे हैं। भारत  के साथ, और विश्व पर्यावरण दिवस मंच के माध्यम से, हम प्रकृति और लोगों के पारस्परिक लाभ की मान्यता में, दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए एक वैश्विक आह्वान करते हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस और संयुक्त राष्ट्र संघ

विश्व पर्यावरण दिवस प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है। यह हमारे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए दुनिया भर में जागरूकता और कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का विचार है।  विश्व पर्यावरण दिवस वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मनाया गया था लेकिन विश्व स्तर पर इसके मनाने की शुरुआत 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी। जहाँ इस दिन पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था और इसमें 119 देशों ने भाग लिया था। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन किया गया था साथ ही प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। यहाँ हम विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में कुछ रोचक तथ्य दे रहे हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1972 में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पहले दिन नामित किया गया था, जो मानव अंतःक्रियाओं और पर्यावरण के एकीकरण पर बातचीत के परिणामस्वरूप हुआ था। 

फिर 1974 में, पहला विश्व पर्यावरण दिवस "केवल एक पृथ्वी" विषय के साथ आयोजित किया गया था।

प्रारंभ में, इसे समुद्री प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से उभरते पर्यावरणीय मुद्दों पर सतत उपभोग और वन्यजीव अपराध के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक प्रमुख अभियान के रूप में शुरू किया गया था।

इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को पृथ्वी की देखभाल करने या परिवर्तन का एजेंट बनने के लिए प्रोत्साहित करना है।

विश्व पर्यावरण दिवस सार्वजनिक पहुँच के लिए एक वैश्विक मंच बन गया है, जिसमें सालाना 143 से अधिक देशों की भागीदारी होती है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी)

यूएनईपी एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण प्राधिकरण है जो वैश्विक पर्यावरण एजेंडा स्थापित करने और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास कार्यक्रम के पर्यावरणीय आयाम के कुशल कार्यान्वयन को बढ़ावा देने में लगा हुआ है।

1960  और 1970 के दशक में बढ़ते प्रदूषण के स्तर ने अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), आदि की पसंद के साथ पर्यावरण संबंधी चिंताओं के लिए कानूनों और विनियमों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया।

इन चिंताओं को 1972 में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है) में संबोधित किया गया था। सम्मेलन ने स्टॉकहोम घोषणा (मानव पर्यावरण पर घोषणा) को अपनाने का नेतृत्व किया। सम्मेलन के परिणामस्वरूप इन चिंताओं के लिए एक प्रबंधन निकाय का गठन भी हुआ, जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम कहा गया।

नैरोबी में मुख्यालय, UNEP का नेतृत्व एक कार्यकारी निदेशक करता है।

कार्यक्रम की शुरुआत से ही भारत का यूएनईपी के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है। भारत में यूएनईपी की कई परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं, साथ ही चल रही परियोजनाएँ भी हैं।

  1. भारत में UNEP की उपस्थिति 2016 में नई दिल्ली में एक कार्यालय के साथ शुरू हुई।

  2. UNEP के साथ भारत की बातचीत के लिए नोडल एजेंसी भारत सरकार का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय है।

  3. UNEP में भारत के स्थायी प्रतिनिधि केन्या के लिए भारत के उच्चायुक्त हैं।

  4. UNEP में भारत का वार्षिक वित्तीय योगदान USD 100,000 का है।

  5. UNEP ने पर्यावरण क्षेत्र में भारत की पहल को मान्यता दी है।

यूएनईपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'पॉलिसी लीडरशिप' श्रेणी में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ 'चैंपियंस ऑफ द अर्थ' पुरस्कार से सम्मानित किया। 2019 में, भारत जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC) में शामिल हो गया, जिसका सचिवालय UNEP द्वारा होस्ट किया गया है।

भारत राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं और अनुभवों पर सीसीएसी देशों के साथ काम करने की योजना बना रहा है।

हमारे कुछ पर्यावरणीय कर्तव्य

  1. पर्यावरण, स्वास्थ्य और सुरक्षा कानूनों और विनियमों, विश्वविद्यालय नीति और स्वीकृत सुरक्षित कार्य प्रथाओं का पालन करें।

  2. पर्यावरण, स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबंधित संकेतों, पोस्टरों, चेतावनी संकेतों और लिखित निर्देशों का निरीक्षण कर पालन करें।

  3. आपातकालीन योजना, आपातकालीन सभा क्षेत्र और उनके भवन के आपातकालीन समन्वयकों से परिचित हों और आपातकालीन अभ्यासों में भाग लें।

  4. कार्य और कार्य क्षेत्र से जुड़े संभावित ख़तरों के बारे में जानें; जानें कि इन ख़तरों की जानकारी उनकी समीक्षा के लिए कहाँ रखी गई है, और ज़रूरत पड़ने पर इस जानकारी का उपयोग करें।

  5. यदि कार्य में ख़तरनाक सामग्री शामिल है, तो प्रदर्शन किए गए कार्य पर लागू सुरक्षित संचालन प्रक्रियाओं और सामग्री सुरक्षा डेटा शीट (एमएसडीएस) मार्गदर्शन का पालन करें।

  6. प्रक्रियाओं का पालन करें और विशेष सामग्री (जैसे कार्सिनोजेन्स या बायोहाज़र्ड) के उपयोग के लिए सावधानियों का पालन करें, जैसा कि उपयोग प्राधिकरण या अन्य संचालन प्रक्रियाओं में विस्तृत है।

  7. अपने काम के लिए उपयुक्त व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और इंजीनियरिंग नियंत्रण (जैसे, धुआँ हुड) का उपयोग करें।

  8. यदि हम उचित रूप से मानते हैं कि काम को जारी रखना स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए एक आसन्न ख़तरा है, तो अपने काम को कम करें या रोकें, और काम पर अधिकार की श्रृंखला में एक पर्यवेक्षक को तुरंत सूचित करें।

  9. जितनी जल्दी हो सके सभी असुरक्षित स्थितियों की रिपोर्ट उनके पर्यवेक्षक या सुरक्षा समिति को दें।

  10. सहकर्मियों को दोषपूर्ण उपकरण और अन्य ख़तरों के बारे में चेतावनी दें।

  11. कार्य स्थिति पर लागू स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रशिक्षण में भाग लें।

पर्यावरण तथा प्राणियों की रक्षा पृथ्वी में हरियाली के माध्यम से होती है एवं द्वितीय यह कि भूमि भी पेड़-पौधों की हरितिमा से सुरक्षित रहती है। इसलिए भूमि को प्रदूषण से बचाए रखने के लिए न केवल हरियाली के प्रभाव को समझना होगा, अपितु सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाकर, धरती पर हरियाली का हर संभव प्रयास करना होगा।

प्रयत्न करे कि सोम लता आदि औषधियाँ उत्पन्न करने वाले पर्वत, जल, वायु, मेघ, अग्नि आदि सब पदार्थों को शुद्ध रखकर सुखदायक हों। हमें अपने वनों को समृद्ध करना है तो निम्न उपाय अपनाने होंगे:

  1. वनों के पुराने एवं क्षतिग्रस्त पौधों को काटकर नए पौधों या वृक्षों को लगाना।
  2. नए वनों को लगाना या वनारोपण अथवा वृक्षारोपण।
  3. आनुवंशिकी के आधार पर ऐसे वृक्षों को तैयार करना, जिससे वन संपदा का उत्पादन बढ़े।
  4. पहाड़ एवं परती ज़मीन पर वनों को लगाना।
  5. सुरक्षित वनों में पालतू जानवरों के प्रवेश पर रोक लगाना।
  6. वनों को आग से बचाना।
  7. जले वनों की ख़ाली परती भूमि पर नए वन लगाना।
  8. रोग-प्रतिरोधी तथा कीट-प्रतिरोधी वन वृक्षों को तैयार करना।
  9. वनों में कवकनाशकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग करना।
  10. वन-कटाई पर प्रतिबंध लगाना।
  11. आम जनता में जागरूकता पैदा करना, जिससे वह वनों के संरक्षण पर स्वरफूर्त ध्यान दें।
  12. वन तथा वन्यजीवों के संरक्षण के कार्य को जन-आंदोलन का रूप देना।
  13. सामाजिक वानिकी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  14. शहरी क्षेत्रों में सड़कों के किनारे, चौराहों तथा व्यक्तिगत भूमि पर पादप रोपण को प्रोत्साहित करना।

प्रकृति के द्वारा उपहार स्वरूप दिये गये वास्तविक रूप में अपने ग्रह को बचाने के लिये हमें पर्यावरणी उत्सव का समर्थन करना चाहिए। इस उत्सव के दौरान सभी आयु वर्ग के लोग सक्रियता से शामिल हों ये बाध्यकारक होना चाहिए। बहुत सारी गतिविधियों के द्वारा जैसे स्वच्छता अभियान, कला प्रदर्शनी, पेड़ लगाने के लिये लोगों को प्रोत्साहित करना, नृत्य क्रियाकलाप, कूड़े का पुनर्चक्रण, फ़िल्म महोत्सव, सामुदायिक कार्यक्रम, निबंध लेखन, पोस्टर प्रतियोगिया, सोशल मीडिया अभियान और भी बहुत सारी गतिविधियाँ जिनमें ख़ासतौर से आज के दौर के युवा बड़ी संख्या में भाग लेते हों का आयोजन करना चाहिए।

COVID-19 महामारी ने दुनिया भर में मानव जीवन की नाटकीय क्षति की है और सार्वजनिक स्वास्थ्य, खाद्य प्रणालियों और काम की दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती पेश की है। महामारी के कारण होने वाला आर्थिक और सामाजिक व्यवधान विनाशकारी है: लाखों लोगों के अत्यधिक ग़रीबी में गिरने का ख़तरा है, जबकि कुपोषित लोगों की संख्या, जो वर्तमान में लगभग 690 मिलियन अनुमानित है, अंत तक 132 मिलियन तक बढ़ सकती है।

लाखों उद्यमों के अस्तित्व पर ख़तरा मँडरा रहा है। दुनिया के 3.3 बिलियन वैश्विक कार्यबल में से लगभग आधे को अपनी आजीविका खोने का ख़तरा है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था कार्यकर्ता विशेष रूप से कमज़ोर होते हैं क्योंकि बहुसंख्यक सामाजिक सुरक्षा और गुणवत्ता स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच की कमी रखते हैं और उत्पादक संपत्तियों तक पहुँच खो चुके हैं। तालाबंदी के दौरान आय अर्जित करने के साधन के बिना, कई अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने में असमर्थ हैं। अधिकांश के लिए, कोई आय का मतलब कोई भोजन नहीं है, या, कम से कम, कम भोजन और कम पौष्टिक भोजन।

इस वर्ष 2021 में विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन पाकिस्तान में होगा इस बार इस दिन को मनाने के लिए वर्ष  2021 की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र बहाली" (Ecosystem Restoration) निर्धारित की गयी है। इस दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रम इसी थीम पर आधारित होंगे। पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर पेड़-पौधे लगाना, बाग़ों को तैयार करना और उनको संरक्षित करना, नदियों की सफ़ाई करना जैसे कई तरीक़ों से काम किया जा सकता है. वर्ष 2020 के लिए विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "जैव विविधता" (Biodiversity) इस दौरान कई अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ संयुक्त तथा टिकाऊ विकास के लिये जो प्रतिबद्धता दिखाती है, वर्तमान समय में इस प्रतिबद्धता को सचमुच दिखाने की ज़रूरत है। विभिन्न परियोजनाओं  में विस्थापन के दौरान जो ख़तरे पैदा होते हैं, उन्हें पहले से पहचानकर समाधान के समुचित प्रयास ज़रूरी है। प्रभावित लोगों से चर्चाएँ की जानी चाहियें, जिससे उनका विश्वास तथा भागीदारी बढ़े। अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं ने अनुदान की शर्तों में पर्यावरणीय तथा सामाजिकता के जो मानक दर्शाये हैं, उन पर अमल तथा निगरानी सख़्ती से होना ज़रूरी है। समय आ चुका है कि  अब हमें अपने पर्यावरण को लेकर ज़्यादा सजग  होना होगा। और पिछले कई दशकों में विलुप्त हुए 8 लाख से भी अधिक पेड़-पौधे और जानवरों की प्रजातियाँ, जो विलुप्तता के कगार पर हैं, को बचाना होगा। पाँच जून को देश में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाएगा। जगह-जगह पौधारोपण होगा, इनके संरक्षण का संकल्प लिया जाएगा, लेकिन यह संकल्प केवल एक ही दिन के लिए नहीं मनाना होगा। प्रत्येक दिन ही पर्यावरण दिवस के रूप में मनाएँगे, तभी हम पर्यावरण को सुरक्षित रख पाएँगे।

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टिप्पणियाँ

गीता सिन्हा 'गीतांजलि' 2021/06/17 11:33 AM

हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीय डॉक्टर सुशील शर्मा जी।

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