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प्रेमचंद पर दोहे

धनपत मुंशी प्रेम थे, सब उनके ही नाम। 
सूर्य सत्य साहित्य के, लमही उनका धाम। 
 
ईदगाह का बाल मन, होरी का संसार। 
गबन कफ़न सोजे वतन, हैं समाज आधार। 
 
पंच सदा निष्पक्ष हो, परमेश्वर के रूप। 
बूढ़ी काकी में लिखा, सामाजिक विद्रूप। 
 
प्रेमचंद की लेखनी, दर्पण सत्य समाज। 
प्रासंगिक थी उस समय, प्रासंगिक है आज। 
 
कालजयी लिखते कथा, उपन्यास सम्राट। 
प्रेमचंद साहित्य के, बरगद विशद विराट। 
 
देशप्रेम जनहित सरल, सास्वत सत्य सुरेख। 
आम आदमी से जुड़े, उनके सारे लेख। 
 
समय सारथी सत्य के, प्रेमचंद सदज्ञान। 
कालजयी थी लेखनी, सरस्वती अवदान। 

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