माँ नर्मदा की करुण पुकार
आलेख | सामाजिक आलेख डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Feb 2021 (अंक: 174, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
(मकर संक्रांति पर विशेष )
मैं नर्मदा हूँ आप सभी की आदि माँ। मेरी उम्र करोड़ों वर्ष है मैंने अनगिनित सभ्यताओं का उत्थान एवं पतन देखा है। पुराणों में मेरे बारे में कहा गया है–
त्रिभीः सास्वतं तोयं सप्ताहेन तुयामुनम्
सद्यः पुनीति गांगेयं दर्शनादेव नार्मदम्
अर्थात सरस्वती में तीन दिन, यमुना में सात दिन तथा गंगा में एक दिन स्नान करने से मनुष्य पावन होता है लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है।
पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा॥
गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है, किन्तु नर्मदा चाहे ग्राम हो या वन सभी स्थानों पर पवित्र मानी जाती है। नर्मदा केवल दर्शन-मात्र से पापी को पवित्र कर देती है।
भगवन शंकर की पुत्री होने का मुझे सौभाग्य प्राप्त है, उन्होंने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे वरदान दिए कि मेरे दर्शन मात्र से ही सम्पूर्ण पापों का नाश हो, प्रलय के समय भी मेरे अस्तित्व बना रहे, मेरा हर पत्थर प्राणप्रतिष्ठित शिवलिंग होकर पूज्य हो और मेरे किनारों पर समस्त देवताओं का वास हो। लेकिन आज में संकट से गुज़र रही हूँ सभ्यता के विकास के साथ साथ नैतिक मूल्यों का पतन मैं देख रही हूँ। वर्तमान में लोग इतने पाप कर रहे हैं कि उनको धोते-धोते मेरा दामन दाग़दार होने लगा है। शास्त्र एवं पुराण मुझे संस्कृति, संस्कार एवं ममत्व का प्रवाह मानते हैं लेकिन इस प्रवाह में लोग इतनी गंदगी मिला रहे हैं कि उसका प्रक्षालन अब मेरे बस में नहीं रहा है। मध्यप्रदेश की तो मैं जीवन रेखा हूँ लेकिन इस जीवन रेखा को लोग मिटाने पर तुले हुए हैं। पौराणिक ग्रंथों में नदियों के किनारे मलमूत्र त्याग धार्मिक अपराध माना जाता रहा है लेकिन अब लोग शास्त्रों की बाते भी नहीं मानते हैं। मेरे उद्गम से लेकर सागर से मिलने तक क़रीब 120 नाले मल-मूत्र एवं अपशिष्ट पदार्थों को मेरे पवित्र जल में घोल रहे हैं इसका ज़िम्मेदार कौन हैं?
मेरे उद्गम से ही मुझ पर क़हर बरपाना शुरू कर दिया है 15 वीं शताब्दी के पूर्व मेरा उद्गम सूर्यकुंड जो कि वर्तमान उद्गम नर्मदा कुण्ड से ऊपर है, था लेकिन धीरे-धीरे मेरा उद्गम नीचे की और खिसकता गया। आज सूर्यकुंड गन्दा एवं उपेक्षित पड़ा है। मेरे आसपास के जंगलों को नष्ट किया जा रहा है, मेरे भाई बहिन जल के स्त्रोतों को मिटाया जा रह है, मेरे पिता मैकल की छाती को विस्फोटों से भेद जा रहा है। गाडरवारा के पास एक औद्योगिक बिजली का कारखाना लग रहा है। मेरा करोड़ों घन मीटर पानी इसमें लग रहा है। इसका प्रदूषण मेरे वक्ष स्थल को विदीर्ण करेगा लेकिन मैं चुप हूँ क्योंकि मैंने भगवान शंकर को वचन दिया था कि मैं हर परिस्थिति को सह कर अपने मानसपुत्रों की सेवा करूँगी। मनुष्य विकास के नाम पर इतना क्रूर हो सकता है– यह मैं अनुभव कर रही हूँ।
मेरे दोनों तटों पर क़रीब आठ सौ गाँव बसते हैं जिन्हें मैं बहुत स्नेह करती हूँ। मैं इनकी माँ जैसी देखभाल करती हूँ, हर मनोकामना पलक झपकते ही पूरी करती हूँ; लेकिन बदले में ये पुत्र अपना सारा अपशिष्ट मेरे निर्मल जल में मिलाते हैं। सुबह मलमूत्र का त्याग मेरे तट पर करते हैं, सारे गंदे कपड़े मुझे में ही धोते हैं। स्वयं से लेकर पशुओं, वाहनों आदि का अपशिष्ट मेरे निर्मल जल में प्रवाहित उसको गन्दा कर रहे हैं। आख़िर माँ हूँ मुझे सब सहना है लेकिन इस प्रदूषण का सबसे ज़्यादा असर मेरे जल में रहने वाले जीवों पर हो रहा है। पर्यावरण विज्ञानियों के अनुसार पहले मेरे जल में 84 प्रकार के जल जीव पाये जाते थे जो घट कर करीब 40 प्रकार के बचे हैं।
अन्य प्रकार जो मेरे जल को प्रदूषित कर रहे हैं निम्न हैं –
- घरों एवं मंदिरों के पूजन का निर्माल्य
- पॉलीथीन एवं नारियल के बूँच एवं खोल
- सड़े गले जानवरों के शव
- तट के गाँवों के निस्तार अपशिष्ट
- लाखों लोगों का मेरे अंदर आकर साबुन लगा कर जल में स्नान करना
- गंदे कपड़े धोना।
- लाखों पशुओं एवं वाहनों का अपशिष्ट
- पंचकोशी यात्राओं से उत्पन्न प्रदूषण
- तट पर लगने वाले मेलों से उत्पन्न गंदगी के कारण प्रदूषण
- तटों पर भंडारों से बचा अपशिष्ट
- शवों की भस्म एवं अस्थियों का विसर्जन
- मेरे तटों की रेत का उत्खनन
- मेरे जल में धार्मिक मूर्तियों के विसर्जन से रासायनिक पेण्ट के कारण प्रदूषण
- औद्योगिक प्रक्षेत्रों को मेरे भरण क्षेत्र से दूर स्थापित करना
इतना सारा प्रदूषण लेकर क्या कोई नदी अपना अस्तित्व बचा सकती है, शायद नहीं। हम नदियाँ कभी भी अपने लिए कुछ नहीं माँगती हैं। इस प्रदूषण से हमारा नुक़सान तो हम सह लेंगी लेकिन अपने पुत्रों का नु्क़सान देख कर मुझे रोना आ रहा है। कालिदास को मैंने देखा है; वह उसी डाल को काट रहा था जिस पर वह बैठा था। आज वही स्थिति आप सबकी है; आप लोग भी मुझे नुक़सान पहुँचाकर अपना अहित कर रहे हो। शास्त्र कहते हैं कि मैं सर्वशक्तिमान हूँ, सर्वज्ञ हूँ, सम्पूर्ण हूँ लेकिन मैं अपने पुत्रों को कैसे समझाऊँ कि कर्तव्यों का निर्वहन एवं रिश्तों की संवेदनशीलता देवत्व से भी ऊपर है। मैं अनंतकाल से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती चली आ रही हूँ। मैं चाहतीहूँ कि आप लोग भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर अपने पर्यावरण को बचाकर आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित करें। आपको ज़्यादा कुछ नहीं करना सिर्फ़ छोटे-छोटे योगदान देकर आप लोग मेरे जल को अमृत बनाने में सहयोग कर सकते हैं।
- कैसे भी करके मेरी रेत के उत्खनन को रोकना है। जो सक्षम पुत्र हैं, जनप्रतिनिधि हैं उन्हें उस ओर ध्यान देना चाहिए।
- पूजा के निर्माल्य को ज़मीन में गड्ढा बना कर खाद बनायें पूजन की खाद आपके खेतों को कई गुनी फ़सलों में बदल देगी।
- मेरे तटों पर पॉलीथीन न लेकर जाएँ अगर कोई पॉलीथीन, नारियल के खोल, बूँच रस्सियाँ या अन्य अपशिष्ट पदार्थ तट पर देखे तो उसे वहाँ से अलग ले जा कर नष्ट कर दें।
- तट के गाँवों पर शिविर लगा कर लोगों को जागरूक करें कि वो मेरे पानी में अपशिष्ट पदार्थ, कपड़े एवं वाहनों का धोना, पशुओं का नहाना, साबुन लगा कर नहाना इत्यादि प्रदूषण बढ़ाने वाले कार्यों का त्याग करें।
- पंचकोशी यात्राएँ एवं मेले लोगों की आस्थाओं से जुड़े हैं अतः इनका निषेध शास्त्र सम्मत नहीं है। लेकिन इनके आयोजकों को इस बात पर ध्यान देना होगा एवं सुनिश्चित करना होगा कि मेरे तट पर या घाटों पर इनसे कोई प्रदूषण न फैले। विशेष कर साधु समाज को आगे आना होगा।
- मेरे तट पर लाखों टन शवों की भस्म मेरे जल में प्रवाहित की जाती है जिससे बड़ी मात्र में प्रदूषण जल में फैलता है। मेरे सभी पुत्रों को शपथ लेनी होगी कि इस बारे में जागरूकता अभियान चलायें कि शवों की भस्म मेरी धारा में प्रवाहित न करके बाहर मेरे जल में घोल कर खेतों में खाद्य के रूप में सिंचित की जावे। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि शव की भस्म में ज़मीन के उर्वरा हेतु सभी तत्व मौजूद हैं। अगर एक शव की भस्म एक एकड़ में डाली जाती है तो दस साल तक उस ज़मीन में खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती है।
- मेरी धारा में धार्मिक मूर्तियों एवं अन्य अपशिष्टों जिनमें रासायनिक लेपों का इस्तेमाल हुआ हो, का विसर्जन वर्जित किया जावे एवं अलग कुण्ड बनाकर विसर्जन हो।
मुझे अपने से ज़्यादा अपनी पुत्रियों की चिंता रहती है। मेरी क़रीब उन्नीस मानस पुत्रियाँ हैं जो सहायक नदियों के रूप में मुझे प्राप्त हैं। जिनमें (दक्षिण तटीय सहायक नदियाँ) हिरदन, तिन्दोनी, बारना, कोलार, मान, उरी, हथनी,ओरसांग (वाम तटीय सहायक नदियाँ) बरनर, बन्जर, शेर, शक्कर, दुधी, तवा, गंजाल, छोटा तवा, कुन्दी, गोई, करजन हैं। मेरी प्रिय पुत्री शक्कर, दुधी मरणासन्न स्थिति में हैं। मेरी अधिकांश पुत्रियों के शरीरों को नोचा जा रहा है; उनके जल का अतिरिक्त दोहन किया जा रहा है; उन्हें प्रदूषित किया जा रहा है; लेकिन मैं मौन हूँ। किसे दंड दूँ, अपने प्यारे पुत्रों को या स्वयं को। मुझे भी ग़ुस्सा करना आता है, दंड देना आता है, किन्तु मैं माँ हूँ। मैं तो तुम्हे माफ़ कर दूँगी किन्तु मेरी माँ प्रकृति के कोप से मैं भी तुम्हे नहीं बचा पाऊँगी। जिस दिन उनके सब्र का बाँध टूटेगा तो चारों और प्रलय होगा।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
सामाजिक आलेख | डॉ. सत्यवान सौरभ(बुद्ध का अभ्यास कहता है चरम तरीक़ों से बचें…
अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
सामाजिक आलेख | डॉ. सुशील कुमार शर्मावैज्ञानिक दृष्टिकोण कल्पनाशीलता एवं अंतर्ज्ञान…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीत-नवगीत
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
कविता
- अनुत्तरित प्रश्न
- आकाशगंगा
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जैसे
- ठण्ड
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- पत्ते से बिछे लोग
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- यज्ञ
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के नज़दीक
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- स्वप्न से तुम
- हर बार लिखूँगा
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे क़लमकार
काव्य नाटक
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
दोहे
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- गणपति
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- टेसू
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रेम
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- होली
लघुकथा
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शेष शुभ
- हर चीज़ फ़्री
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- होली पर कुण्डलिया
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं