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ब्राह्मणत्व की ज्योति

 

1.
ब्रह्म के पथ पर जो चलता है। 
ज्ञान दीप सा जो जलता है। 
शांत, सरल, सहिष्णु, विवेकी, 
धर्म हेतु जो हिम सा गलता है। 
 
वेद ऋचाओं का स्वर बनकर, 
ज्ञान फैलता मंत्रों को गाकर
वह ब्राह्मण है, सृष्टि का दीपक
अन्याय से लड़ता है संघर्ष चुन कर। 
 
ज्ञान देकर भी जो पीड़ा सहता है
नहीं अहंकारों में ब्राह्मण बहता है। 
सत्य-मार्ग का पथिक सनातन है
राष्ट्र समर्पित जिसका जीवन है। 
 
2.
वेदों की वीणा के झंकृत स्वर, 
यज्ञों की अग्नि में तप कर। 
श्लोकों की धारा, मंत्रों का आवहान। 
ब्रह्मस्वरूप वह ज्ञान अवगाहन। 
 
सृष्टि के सूरज की पहली किरण, 
संस्कारों की धरती पर गुणों का आवरण। 
जगत का वह प्रथम पुरोहित है, 
जिसकी वाणी में सत्य आरोहित है। 
 
वर्तमान में भी जो प्रासंगिक है। 
संस्कारों का जो आनुषंगिक है। 
मानवता का जो दीप जलाता है, 
ब्राह्मण दाधीच सा स्वयं को मिटाता है। 

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