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चिड़िया का दुःख 

गुड़िया रोती रोती सी 
घर के अंदर आई। 
जब रोने का कारण पूछा 
तब उसने बात बताई। 
 
गत्ते का जो बना घोंसला 
कल तक तो लटका था। 
आज सुबह जब मैंने देखा 
नीचे वो पटका था। 
 
चूज़े नहीं थे उसके अंदर 
चिड़िया गुमसुम थी। 
नहीं बोलती ची ची ची वो 
उसकी आँखें नम थीं। 
 
पापा कहाँ गए वो 
चिड़िया के सब बच्चे। 
कितने भोले कितने प्यारे 
मन के कितने सच्चे। 
 
तभी वहाँ से धम्म से कूदा 
इक भारी सा बिल्ला। 
चिड़िया चीख़ी भी चिचआई 
बैठा रहा निठ्ठल्ला। 
 
मार झपट कर इस बिल्ले ने 
उसके चूज़े खाये। 
देख बिचारी माँ की हालत 
आँखों आँसू आये। 
 
गुड़िया सुबक सुबक कर रोती 
उसको क्या समझाऊँ। 
कैसे उस बिल्ले को पकड़ूँ 
फाँसी उसे लगाऊँ। 
 
बहुत दुखी है ये मन मेरा
मेरी गुड़िया रोये। 
उस चिड़िया के दुःख को सोचो 
जिसने बच्चे खोये।

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