अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कृष्ण चरित्र-संघर्ष की अप्रितम गाथा

 (जन्माष्टमी पर विशेष) 

 

वर्षों से मैं सोचता हूँ कि कृष्ण को किस रूप में याद करूँ, क्या कृष्ण भगवान् हैं, क्या राजनीति के पंडित हैं, क्या समाज सुधारक हैं, क्या प्रेम की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति हैं, क्या वो योगेश्वर हैं, क्या विश्व गुरु हैं? वो राम जैसे आदर्श पुरुष तो नहीं पर राम से कम भी नहीं है। उनके चरित्र का विश्लेषण सामान्य मानवीय अभिव्यक्ति से परे है जहाँ राम का चरित्र राजनीति, उच्चवर्ग एवं राजसी परिवारों का आत्म मंथन है वहीं कृष्ण का चरित्र राजनीति, कूटनीति से लेकर समान्य मानवीय संबंधों का उच्चतम विश्लेषण है। कृष्ण का जीवन सामान्य मानवीय मूल्यों की शिक्षा से अनुप्राणित था और ‘गीता’ में उसी शिक्षा का प्रतिपादन उनके ही माध्यम से किया गया है। कंस के कारागार में अपने माता-पिता की अति विषम परिस्थितियों में श्री कृष्ण का अवतरण हुआ अतः हम कह सकते हैं कि संघर्ष कृष्ण के डीऐनए में था। 

अपने जनक की जीवटता का साक्षात्‌ प्रमाण अनुभव किया था कृष्ण ने उफनती यमुना में वासुदेव को अपनी संतान की जान बचाते हुए कृष्ण ने अनुभव किया था, अपनी सात संतानों को अपने सामने मरते हुए देखने वाली वज्र हृदया अपनी माँ देवकी से कृष्ण ने कठिन से कठिन पलों को मुस्कुराते हुए जीने की कला पाई थी। 

कृष्ण का अर्थ ही है खींचने वाला उनका चरित्र रहस्य और विस्मय युक्त दिव्यता लिए हुए है। कृष्ण एक बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक थे अर्जुन की मानसिक वेदना का निदान सिर्फ़ कृष्ण ही कर सकते थे दूसरा कोई नहीं। 

कृष्ण ने हमेशा सत्ता के मद का विरोध किया चाहे वो सत्ता कंस की हो या दुर्योधन की, उन्होंने सदा पोषित राजनीति का विरोध किया एवम एक अजेय योद्धा की भाँति सामाजिक क्रांति के प्रेणता बने। 

एक आदर्श राजनीतिज्ञ, सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ, पर्यावरण के संरक्षक, आदर्श मित्र एवम सर्वश्रेष्ठ प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए कृष्ण सदियों तक आदर्श पुरुष रहेंगे। 

इस जन्माष्टमी पर हम कृष्ण को इसलिए याद करें कि उनके चरित्र में आज के युग की सभी समस्याओं का हल छुपा है, हम उन्हें याद करें क्योंकि उन्होंने हमें सिखाया है कि युद्ध से सर्वनाश होता है उन्होंने सिखाया है कि पोषित राजनीति हमेशा हमें ग़ुलाम बनाती है उन्होंने सिखाया कि प्रेम का कोई विकल्प नहीं है। 

उन्होंने सिखाया कि प्रकृति के साथ समन्वय ही मनुष्य के अस्तित्व की जीवनी है। 

कृष्ण चरित्र संघर्ष की गाथा है जिसमें एक सामान्य मनुष्य ईश्वरत्व प्राप्त कर सकता है। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
|

दोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…

अच्छाई
|

  आम तौर पर हम किसी व्यक्ति में, वस्तु…

अनकहे शब्द
|

  अच्छे से अच्छे की कल्पना हर कोई करता…

अपना अपना स्वर्ग
|

क्या आपका भी स्वर्ग औरों के स्वर्ग से बिल्कुल…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

गीत-नवगीत

कविता

काव्य नाटक

सामाजिक आलेख

दोहे

लघुकथा

कविता - हाइकु

नाटक

कविता-मुक्तक

यात्रा वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

चिन्तन

कविता - क्षणिका

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

बाल साहित्य कविता

अनूदित कविता

साहित्यिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

कहानी

एकांकी

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं