उठो उठो तुम हे रणचंडी
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत डॉ. सुशील कुमार शर्मा15 Dec 2019 (अंक: 146, द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)
(डॉ. प्रियंका रेड्डी को समर्पित)
आँखों में भर कर अँगारे
मन प्रतिशोध की ज्वाला हो।
आज प्रियंका को खाया है
हवस के कूकर मुत्तों ने।
एक शेरनी को मारा है
नरपिशाच उन कुत्तों ने।
हर दिन ऐसी कितनी बेटी
लुटती सरे बज़ारों में।
जाने कितने हवस के कुत्ते
बैठे हैं अँधियारों में।
कौन बचाएगा बेटी को
जब भक्षक रखवाला हो।
आज पिता की आँखें चिंतित
माँ की सारी नींद उड़ी है।
भाई का मन रहे सशंकित
विपदा कैसी आन खड़ी है।
बेटी नहीं आज तक रक्षित
किस समाज में हम जीते।
सोती सत्ता तंत्र निकम्मा
घूँट ज़हर के हम पीते।
ग़ैरों की क्या करें शिकायत
जब दुश्मन घरवाला हो।
बेटी रामायण है घर की
बेटी है गीता का ज्ञान।
बेटी है क़ुरान की आयत
बेटी बाइबल का आख्यान।
बेटी तुम अब सशक्त बन जाओ
रणचंडी का रूप धरो।
ये समाज अब बना शिखंडी
अपनी रक्षा आप करो।
हे रणचंडी निकल पड़ो तुम
कर नरपशुओं की माला हो।
आज नहीं तुम अबला नारी
तुम सशक्त इंसान हो।
समता ओज सुरक्षा शुचिता
पूर्णशक्ति आधान हो।
कलयुग का महिषासुर देखो
तुमको आज नकार रहा है।
उठो उठो तुम हे रणचंडी
समय तुम्हे पुकार रहा है।
ओंठो पर जयघोष का नारा
अरु हाथों में भाला हो।
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