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कबीर छंद – 001

कबीर छंद
इसके प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ तथा 16, 11 मात्राओं पर यति चरणान्त में 21("गुरु-लघु"); क्रमागत दो-दो चरण समतुकांत होते हैं।


1.
हे कृष्ण तुम्हारा ध्यान करूँ, अब तो आओ पास।
मोर मुकुट पीतांबर धारी, बस तेरी ही आस॥
मन मोहन मुरलीधर प्यारे, राधा के प्रियवंत।
अधर बाँसुरी केशव साजे, भक्तों के भगवंत॥
2.
कितनी मोहक कितनी प्यारी, होंठों पर मुस्कान।
मधुर मृदुल नैना कजरारे, जीवन के आधान॥
एक बार तुझको जो देखे, जीवन होता धन्य।
मेरे मन मंदिर के अंदर, तेरे सिवा न अन्य॥
3.
ज्ञान ध्यान से तुमको देखा, मिला नहीं है छोर।
भक्ति भाव से अब में देखूँ, कान्हा तेरी और॥
मन से मैं तुझको भजता हूँ, करो भक्ति स्वीकार।  
तन मन धन सब तुझको अर्पण, तू जीवन आधार॥
4.
मुरली के सारे स्वर भर दो, महकें मेरे छंद।
मेरी कवितायें बन जाएँ, जन जन का आनंद।
मेरे लेखन में हो केशव, सरस्वती का वास।
हरेक मन की व्यथा लिखूँ मैं, लिखूँ आपका रास।

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