बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
आलेख | साहित्यिक आलेख डॉ. सुशील कुमार शर्मा15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
संकलन -डॉ सुशील शर्मा
लोक संस्कारों से सम्पन्न होकर जीवन को आनन्द विभोर बनाता है। लोक का प्रत्येक संस्कार गीतों की सुमधुर ध्वनियों के मध्य ही सम्पन्न होता है। बुंदेलखंड में लोकसंगीत की अगर हम बात करें तो विवाह के अवसर पर जितना आनंद समधियों और बारातियों को मंगल गीतों से गरियाने में होता है वह विवाह की किसी दूसरी रस्म में नहीं होता। रामचंद्र जी और सीता जी के विवाह के अवसर पर कंकण छुड़ाई के समय का यह लोकगीत दूल्हों को एक चुनौती है।
लाल हँसी खेल नइयाँ कंकन को छोरबौ,
जौ नइयाँ धनुष को टौरबो
कंकन की गाँठ लाला लागी मजबूत
देखें हम कैसे हो लाल सपूत
छोर देखों देखें तुम्हारी करतूत
हँसी खेल नइयाँ कंकन को छोरबो...
ज्योनार गारी में तो समझो दूल्हे के पूरे खानदान पर व्यंग्य की ऐसी वर्षा होती है कि बूढ़े-बूढ़े तक जवान हो जाते हैं। दूल्हे के पिता और माता पर वधुपक्ष की महिलाएँ ऐसे बाण चलाती हैं कि बरबस ही पूरे माहौल में ठहाके गूँज जाते हैं।
कुत्ता पाल लो नये समधी जजमान कुत्ता पाल लो।
कुत्ता के राखे सें मिलै अैन चैन
समधिन की रखवारी करै दिन रैन
स्वाद चाख लो कुत्ता पाल लो...
कुत्ता के राखे कौ आसरौ बिलात
समधिन के पीछें लगौ रहे दिन रात
जरा देख लो। कुत्ता पाल लो...
इन गीतों की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इनकी रचना किसी महाकवि या प्रतिष्ठित रचनाकार ने नहीं की है,अपितु इनकी रचना घरेलू स्त्रियों ने की है। इन विवाह लोकगीतों में स्त्रियों के मस्तिष्क की महिमा देखने को मिलती उनके दिमाग़ से ऐसे कवित्त पूर्ण गीत निकलते हैं कि उन पर कितने ही कवियों की रचनाएँ निछावर की जा सकती है। दूल्हे को गरियाने की एक सुंदर बानगी देखिये।
गये ते जखौरा की हाट रे मोरे रंजन भौरा।
गये ते गधैया के पास रे मोरे रंजन भौंरा।
गधैया ने मारी लात रे मोरे रंजन भौंरा।
ऐंगरे टूटे टेंगरे टूटे टूटी हैं लंगड़े की टौन रे मोरे रंजन भौंरा।
अब कैसें निगैं मोरे रंजन भौरा।
ल्याओ चनन कौ चून रे मोरे रंजन भौंरा।
ऐंगरे जोड़े टेंगड़े जोड़ें जोड़ें लंगड़े की टौन रे मोरे रंजन भौंरा।
गये तो जखौरा की हाट रे मोरे रंजन भौंरा।
विवाह के आनंद में स्त्रियाँ सारी सीमायें लाँघ जाती हैं और यहाँ तक कि वरपक्ष की महिलाओं को भी गरियाने से नहीं छोड़तीं।
जाँ लटक रये अनार बाग लै चलो रे लै चलो रे लिवा चलो रे।
जाँ मोरे अनार बाग लै चलौ रे।
उनके गाल है गुलाब नींबू चोंख चलौ रे।
(आगे की पंक्तियाँ अश्लीलता लिए हुए हैं इस लिए उनका उद्धरण नहीं कर रहा हूँ )
जेवनार पर इस गीत में दूल्हे के पूरे खानदान को वधुपक्ष की चतुर नारियाँ इस गीत में गरिया रहीं हैं।
जुर आई ललाजू की सारियाँ, बैठी मीठी गावें गारियाँ।
तुम नृप दशरथ लाल कहाये, ब्याहन काज जनकपुर आये,
तुम हो कौशल्या के जाये, सुनियत पति बिन सुत उपजाये,
इनकी माता को हैं बलिहारियाँ, बैठी मीठी गावें गारियाँ।
नईयाँ भरत भोग अनुरागी, इनके बहनोई बैरागी,
बहना शृँगी ऋषि संग लागी, अपनी कुल मर्यादा त्यागी,
सुन नारी हँस दैबे तारियाँ बेठी मीठी गावें गारियाँ।
हम है जनकपुर की नारी, सबरी सारीं लगें तुमारी,......
वर पक्ष के साथ साथ वधुपक्ष की महिलाएँ अपने पक्ष के दामादों पर भी गारियों की बौछार करने से नहीं चूकती।
सुनो री जीजी जीजा कौ बिलैया लै गई टार कै।
अरतन ढूँढो बरतन ढूँढो सो हड़िया में ढूँढो चमचा डार के। सुनो री...
मटका में देखो घिनोचिन देखो सो नरदा में देखे पानी डार कैं। सुनो री...
छत्तन देखे अटारी में देखे सो चकिया में देखे छन्ना झार कै। सुनो री..
ग्रामाँचलों के गीतों की रचना का आधार आम आदमी होता है। विवाह के इन गारी गीतों में आम आदमी का एक दूसरे से जुड़ाव परिलक्षित होता है। अतः आम आदमी के क्रियाकलापों, उनके सोचने विचारने के तरीक़ों, उनके रहन-सहन, खानपान आदि को इसमें समाहित कर लिया गया है। वस्तुतः ग्रामीण समाज सीधा-सादा एवं भोला-भाला समाज होता है। ग्रामीण व्यक्तियों में छल-कपट की भावना नहीं होती है। पुराने समय में विवाह एक ज़िम्मेवारी के साथ-साथ पूरे गाँव और समाज का उत्सव पर्व माना जाता था इस कारण इसमें रस्मोरिवाज़ के साथ मंगलगारियों का समावेश किया गया होगा ऐसी अवधारणा है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"लघुकथा वृत्त" का जनवरी 2019 अंक
साहित्यिक आलेख | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानीलघुकथा के इकलौता मासिक समाचार पत्र "लघुकथा…
'सौत' से 'कफ़न' तक की कथा यात्रा - प्रेमचंद
साहित्यिक आलेख | डॉ. उमेश चन्द्र शुक्लमुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1980 को…
21वीं शती में हिंदी उपन्यास और नारी विमर्श : श्रीमती कृष्णा अग्निहोत्री के विशेष संदर्भ में
साहित्यिक आलेख | डॉ. पद्मावतीउपन्यास आधुनिक हिंदी साहित्य का जीवंत रूप…
प्रेमचंद साहित्य में मध्यवर्गीयता की पहचान
साहित्यिक आलेख | शैलेन्द्र चौहानप्रेमचंद ने सन 1936 में अपने लेख "महाजनी…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीत-नवगीत
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
कविता
- अनुत्तरित प्रश्न
- आकाशगंगा
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जैसे
- ठण्ड
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- पत्ते से बिछे लोग
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- यज्ञ
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के नज़दीक
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- स्वप्न से तुम
- हर बार लिखूँगा
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे क़लमकार
काव्य नाटक
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
दोहे
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- गणपति
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- टेसू
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रेम
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- होली
लघुकथा
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शेष शुभ
- हर चीज़ फ़्री
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- होली पर कुण्डलिया
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं