आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
आलेख | सामाजिक आलेख डॉ. सुशील कुमार शर्मा2 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
(नए वर्ष के संकल्प पर आलेख)
लघुत्व से महत्त्व की और बढ़ना स्वाभिमान होने की निशानी है जबकि महत्त्व मिलने पर दूसरों को लघु समझना अभिमानी होने का प्रमाण है। अभिमान में व्यक्ति अपना प्रदर्शन कर दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है इसलिए लोग उससे दूर रहना चाहते हैं। सिर्फ़ चाटुकार लोग ही अपने स्वार्थ के कारण उसकी वाहवाही करते हैं। इसके विपरीत स्वाभिमानी व्यक्ति दूसरों के विचारों को महत्त्व देता है इसलिए लोग उसके प्रशंसक होते हैं। एक जगह बाढ़ आई थी समाजसेवी संस्थाएँ बाढ़ पीड़ितों को सहायता का वितरण कर रही थीं कुछ स्वयंसेवकों ने एक वृद्धा की झोपड़ी में पहुँच कर उसे सहायता देने का प्रस्ताव रखा। उसने बड़े प्रेम से मना कर दिया। बोली—बेटा मैं पिछले बीस वर्षों से अपनी मेहनत की कमाई खा रही हूँ, मुझे आपकी सहायता नहीं चाहिए। स्वयंसेवक अवाक् थे एवं उस वृद्धा के स्वाभिमान के आगे नतमस्तक।
स्वाभिमान व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाता है जबकि अभिमानी हमेशा दूसरों पर आश्रित रहना चाहता है। स्वाभिमान एवं अभिमान के बीच बहुत पतला भेद है। इन दोनों का मिश्रण व्यक्तित्व को बहुत जटिल बना देता है। दूसरों को कमतर आँकना एवं स्वयं को बड़ा समझना अभिमान है। एवं अपने मूलभूत आदर्शों पर बग़ैर किसी को चोट पहुँचाए बिना अटल रहना स्वाभिमान है। अभिमानी व्यक्ति अपने आपको स्वाभिमानी कहता है किन्तु उसके आचरण, व्यवहार एवं शब्दों से दूसरे लोग आहत होते हैं। अभिमानी अन्याय करता है और स्वाभिमानी उसका विरोध। स्वाभिमानी दूसरों का आधिपत्य ख़त्म करता है जबकि अभिमानी अपना आधिपत्य स्थापित करता है। रावण अभिमानी था क्योंकि वह सब पर अधिकार जमाना चाहता था, कंस अभिमानी था क्योंकि वह आतंक के बल पर राज करना चाहता था। राम ने रावण के आधिपत्य को समाप्त किया तथा कृष्ण ने कंस के आतंक को, इसलिए राम और कृष्ण दोनों स्वाभिमानी थे।
जो व्यक्ति अपने कार्यों का प्रतिफल सभी अन्य लोगों की सहायता मानता है उसका स्वाभिमान, अभिमान में परिवर्तित नहीं होता है तथा उसके अंदर स्वाभिमान और अभिमान को परखने की प्रवृति जाग्रत होती है। मेरा एक मित्र कभी किसी की सहायता स्वीकार नहीं करता। चाहे कितनी भी कठिन परस्थितियाँ क्यों न हों, वह हमेशा अकेला ही उनका सामना करता है। लोग कहते हैं कि वह अभिमानी है लेकिन वह कहता है कि वह स्वाभिमानी है।
भौतिक सम्पदा, धन, बल, सम्पत्ति, भूमि आदि अभिमान को जाग्रत करती हैं। महात्मा विदुर ने किसी प्रसंग में कहा है, “बुढ़ापा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को एवं अभिमान सर्वस्व को हरण कर लेता है।”
संतान की उपलब्धियाँ, ज्ञान, विद्या आदि अभिमान का कारण है किन्तु इनकी प्राप्ति के बाद विनम्रता एवं शीलता आती है तो वह स्वाभिमान का प्रेरक मानी जाती है। जितने भी महान वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं राजनेता हुए हैं उनमें अभिमान लेशमात्र भी नहीं था इसलिए वो महान कहलाए।
अभिमान अपनी सीमाओं को लाँघ कर दूसरे की सीमाओं में प्रवेश करता है जबकि स्वाभिमानी अपनी और दूसरों की सीमाओं के प्रति सतर्क एवं जागरूक होता है। लघुत्व से महत्त्व की और बढ़ना स्वाभिमान होने की निशानी है जबकि महत्त्व मिलने पर दूसरों को लघु समझना अभिमानी होने का प्रमाण है। अभिमान में व्यक्ति अपना प्रदर्शन कर दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है इसलिए लोग उससे दूर रहना चाहते हैं। सिर्फ़ चाटुकार लोग ही अपने स्वार्थ के कारण उसकी वाहवाही करते हैं। इसके विपरीत स्वाभिमानी व्यक्ति दूसरों के विचारों को महत्त्व देता है इसलिए लोग उसके प्रशंसक होते हैं। अच्छा श्रोता होना स्वाभिमान का लक्षण है क्योंकि वह सोचता कि मुझे लोगों से बहुत कुछ ग्रहण करना है। प्रत्येक उपलब्धि के नीचे अहंकार का सर्प होता है। उसके प्रति सदैव सावधान रहकर ही आप उसके दंश से बच सकते हैं। स्वाभिमान हमेशा स्वतंत्र का पक्षधर रहता है इसलिए स्वाभिमानी स्वतंत्रता के लिए लड़ते हैं। जबकि अभिमानी अपने को स्वतंत्र रख कर दूसरों की ग़ुलामी का पक्षधर है।
कहीं आप अभिमानी तो नहीं ख़ुद को जाँचिए:
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स्वाभिमानी हमेशा आश्वस्त होते हैं जबकि अभिमानी को कभी ख़ुद पर विश्वास नहीं होता है।
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स्वाभिमानी हमेशा विनम्र भाषा का प्रयोग करते हैं जबकि अभिमानी हमेशा हेकड़ी की भाषा अपनाते हैं। स्वाभिमानी सोचते हैं कि सभी से सामान व्यवहार हो जबकि अभिमानी हमेशा अपने से दूसरों को निम्नतर मानते हैं।
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स्वाभिमानी स्थिर चित्त होते हैं जबकि अभिमानी हमेशा विचलित नज़र आते हैं।
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स्वाभिमान कड़े परिश्रम से सफलता प्राप्त करना चाहते हैं जबकि अभिमानी अवसरवादी होते हैं।
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स्वाभिमानी सफलता का श्रेय अपने साथियों को देते हैं जबकि अभिमानी पूरा श्रेय स्वयं लेना चाहते हैं।
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स्वाभिमानी अपने स्वभाव से पूर्ण परिचित रहते हैं जबकि अभिमानी को अपने स्वभाव पर नियंत्रण नहीं रहता।
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स्वाभिमानी अपनी आलोचना को हितकर मानते हैं जबकि अभिमानी अपनी आलोचना सहन नहीं करते हैं।
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स्वाभिमानी दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करते जबकि अभिमानी लगातार दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
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स्वाभिमानी किसी के भी साथ काम करने को तैयार रहते हैं जबकि अभिमानी सिर्फ़ वही काम करते हैं जहाँ उनको प्रमुखता मिलती हो।
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स्वाभिमानी अपनी योग्यता के प्रति हमेशा सचेत रहता है जबकि अभिमानी अपनी योग्यता को लेकर अतिआत्मविश्वासी।
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अभिमानी व्यक्तिहीन भावना से ग्रसित होता है इसलिए दूसरों को नीचा दिखाने से उसे अपनी महत्ता सिद्ध होती दिखती है। जबकि स्वाभिमानी हमेशा दूसरों को महत्ता देते हैं। अभिमानी हमेशा दूसरों को शिक्षा देते नज़र आते हैं जबकि स्वाभिमानी व्यक्ति दूसरों के गुणों की सराहना करते हैं।
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अभिमानी अपनी असफलता के लिए हमेशा दूसरों को दोष देते हैं जबकि स्वाभिमानी असफलता का कारण जानकर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं।
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स्वाभिमानी हमेशा सहज होते हैं क्योंकि उनका दृष्टिकोण हमेशा सरल एवं आशावादी होता है उन्हें अपनी कमियाँ एवं ख़ूबियाँ मालूम रहती हैं जबकि अभिमानी हमेशा अपनी कमियों को ढाँकने की कोशिश करता है एवं अपनी ग़लतियाँ कभी स्वीकार नहीं करते हैं।
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अभिमानी लोगों के रिश्ते दर्द भरे होते हैं, उनके रिश्ते उनकी महत्ता एवं घमंड पर टिके होते हैं।
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अभिमानी सफलता प्राप्त करने के लिए रिश्ते तोड़ सकते हैं जबकि स्वाभिमानी व्यक्ति हमेशा दूसरों की भावनाओं का ख़्याल रखते हैं। अत: इनके रिश्ते मज़बूत एवं सुखमय होते हैं।
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अभिमानी व्यक्ति चाहता है कि सिर्फ़ उसकी सुनी एवं मानी जाए ये दूसरों की बातों या विचारों को महत्त्व नहीं देते जबकि स्वाभिमानी अपने विचारों को दूसरों पर नहीं थोपते हैं।
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अभिमानी व्यक्ति हमेशा आँखें बचा कर बात करते हैं एवं उनकी आँखों में दूसरों को हमेशा नीचा दिखाने का भाव होता है। जबकि स्वाभिमानी व्यक्ति की आँखें सरल होती हैं एवं उन आँखों में दूसरों के लिए सम्मान का भाव होता है।
अहंकार के रास्ते बड़े सूक्ष्म होते हैं। कभी यह त्याग के रास्ते आता है, कभी विनम्रता के, कभी भक्ति के, तो कभी स्वाभिमान के। इसकी पहचान करने का एक ही तरीक़ा है जहाँ भी ‘मैं का भाव उठे वहाँ अहंकार जानना चाहिए।’ स्वाभिमान हमारे डिगते क़दमों को ऊर्जावान कर उनमें दृढ़ता प्रदान करता है। कठिन परिस्थितियों और विपन्नावस्था में भी स्वाभिमान हमें डिगने नहीं देता। अभिमान अज्ञान के अँधेरे में ढकेलता है। अभिमान मिथ्या ज्ञान, घमंड और अपने को बड़ा ताक़तवर समझकर झूठा व दंभी बनाता है। व्यक्ति को अपने ‘ज्ञान का’ अभिमान तो होता है लेकिन अपने ‘अभिमान का’ ज्ञान नहीं होता है। अपने स्वाभिमान को जाँचते रहिए कहीं ये अभिमान में तो नहीं बदल रहा है?
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