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मुझे कुछ कहना है

 

सुनो!
तुमसे एक बात कहनी है
मुझे यह नहीं कहना कि
तुम बहुत सुंदर हो
और मुझे तुमसे प्यार है। 
मुझे प्यार का इज़हार भी नहीं करना
मुझे कहना है कि तुम
बहुत दुबली हो गयी हो
सबका ख़्याल रखते रखते
कभी अपने तन मन
को भी निहार लिया करो। 
रिश्ते निभाते निभाते
तुम भूल गयी हो कि
तुम एक अस्तित्व हो, तुम एक मनुष्य हो मशीन नहीं। 
तुम्हारा भी एक मन है
एक तन है
उस मन में बचपन की
कुछ इच्छाएँ हैं, कुछ बनने की
कुछ बुनने की। 
तुम्हारा सुंदर तन
रिश्ते माँजते हुए, रह गया है एक पोंछा। 
 
तुम्हें जब भी ग़ुस्सा आता है
तुम पढ़ने लगती हो क़िस्से कहानियाँ और ग्रन्थ। 
जब तुम्हें रोना आता है तो
बग़ीचे में पौधों से बात करती हुई
पोंछ लेती हो पत्तियों से आँसू
प्रेम की परिभाषा को बदल दिया तुमने
कहते हैं प्रेम सिर्फ़ पीड़ा और प्रतीक्षा देता है। 
तुम्हारा प्रेम खिला देता है 
मन के बग़ीचे में कई 
सतरंगी गुलाब। 
 
जब भी तुम्हें देखता हूँ
तुम्हारे आँसुओं से पूछता हूँ
तो बस एक ही उत्तर
बस थोड़ा सा दिल टूटा है
थोड़े से सपने बिखरे हैं
थोड़ी सी ख़ुशियाँ छिनी हैं
थोड़ी सी नींदें उड़ीं हैं
और कुछ नहीं हुआ है। 
 
जब भी मैंने तुम्हें सम्हालने
के लिए हाथ बढ़ाया है
तुमने मेरी हथेली पर 
उसका नाम लिखा है। 
जो तुम्हारा कभी नहीं था। 
 
सुनो लौट आओ
दर्द के समंदर से। 
प्रेम अस्तित्व की 
अनुभूति से होता है
शरीर से नहीं।

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