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मिच्छामी दुक्कड़म्

 

शब्द छोटा है, 
पर अर्थ महासागर जितना गहरा
“मिच्छामी दुक्कड़म्” 
यानी जो भी ग़लती हुई, 
वह मिट जाए, 
शून्य हो जाए, 
क्षमा की शीतल हवा में
मन का बोझ उतर जाए। 
 
प्रकृति भी यही कहती है
पेड़ क्षमा करते हैं पतझड़ को, 
सूरज क्षमा करता है अंधकार को, 
और बारिश क्षमा करती है सूखे को। 
तो फिर मनुष्य क्यों न करे? 
 
प्रयूषण पर्व की साधना
केवल व्रत और अनुशासन नहीं, 
बल्कि भीतर झाँकने का अवसर है
जहाँ हमें अहसास होता है
कि सबसे बड़ी विजय
क्रोध पर विजय है, 
और सबसे बड़ी शक्ति
क्षमा की शक्ति है। 
 
जब मैं कहता हूँ 
“मिच्छामी दुक्कड़म्” 
तो यह केवल वाणी का 
उच्चारण नहीं, 
बल्कि आत्मा का प्रणाम है
उस हर व्यक्ति के लिए
जिसे कभी दुख पहुँचाया, 
चाहे जानबूझकर, 
या अनजाने में। 
 
क्षमा ही धर्म का हृदय है, 
क्षमा ही संबंधों की डोर है, 
क्षमा ही आत्मा की 
सच्ची शान्ति है। 
 
आइए, इस पर्व पर
मन के भीतर छिपे 
अहंकार को
गला दें, 
रिश्तों की रूखी शाखाओं पर
फिर से हरियाली उगा दें। 
 
क्योंकि
जहाँ क्षमा है, वहीं करुणा है, 
जहाँ करुणा है, वहीं सच्चा धर्म है, 
और जहाँ धर्म है, 
वहीं जीवन की मुक्ति का मार्ग है। 

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