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बेटी की गुल्लक

"अशोक माँ को ले जाओ मेरा टर्न कल ख़त्म हो रहा है," डॉ.. नरेश ने अपने छोटे भाई से कहा।

"भैया मेरी पत्नी आई सी यू में है। घर पर कोई नहीं है माँ की देखभाल कौन करेगा? प्लीज़ आप बड़े भैया से बोल दें या मनोज से कह दें। मैं बाद में उन्हें कुछ माह ज़्यादा रख लूँगा," अशोक ने टूटे स्वर में कहा।

"मैंने उनसे बात की थी वो सभी व्यस्त हैं। मैं ऐसा करता हूँ उन्हें गाँव के घर पर छोड़ देता हूँ; कुछ दिन बाद तुम पिक कर लेना," डॉ.. नरेश ने सपाट लहज़े में कहा।

डॉ. नरेश आईआईटी दिल्ली में प्रोफ़ेसर हैं। छोटा भाई अशोक भोपाल में कोचिंग चलाता है, बड़े भाई सारणी में चीफ़ इंजीनियर हैं और सबसे छोटा दिल्ली की किसी मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर है।

विगत तीन महीने से अशोक बहुत परेशान था। उसकी बीबी को ख़ून में थक्का जमने की बीमारी हो गई थी। बीबी के इलाज में उसका सारा पैसा पानी की तरह बह गया। मानसिक रूप से बहुत परेशान था। उसने अपने मझले भाई की बात का कोई उत्तर नहीं दिया; उसको झल्लाहट हो रही थी।

अशोक के चार भाई थे, अशोक को छोड़ कर सभी अच्छी नौकरी पर थे। पिता जी स्कूल में टीचर थे, उन्होंने सभी बच्चों को अपना पेट काट-काट कर उच्च शिक्षा दिलाई और अंत में अपने गाँव के पैतृक घर में अकेले अपनी पत्नी के साथ ज़िंदगी गुज़ारते हुए दम तोड़ दिया।

चारों बेटों ने माँ को बारी-बारी से तीन-तीन महीने के लिए बाग़वान स्टायल में अपने पास रखने का बेमन से फ़ैसला ले लिया। माँ को अपने पास रखने की आज मझले बेटे डॉ. नरेश की टर्न ख़त्म हो गई थी और अशोक की टर्न शुरू हो गई थी।

दूसरे दिन नरेश की पत्नी फ़्लाइट से अपनी सास को गाँव के मकान में छोड़ गई। अशोक ने अपने गाँव के पड़ोसी से कुछ दिनों के लिए माँ की देखभाल करने को कहा।

एक दिन शौच के वक़्त माँ बाथरूम में गिर गई और बेहोश हो गई। कुछ घंटे बाद पड़ोसी किसी काम से वहाँ गया तो उसने बेहोश पड़ी माँ को किसी तरह से उठा कर बिस्तर पर रखा और अशोक को ख़बर की। अशोक अपनी पत्नी को अस्पताल में छोड़ कर गाँव की ओर भागा उसने सभी भाइयों को फोन लगाया लेकिन सब अपने में व्यस्त थे कहने लगे -

"देख लेना तुम्हरी टर्न है।"

डॉक्टर ने ’पेन किलर’ इंजेक्शन दे कर किसी तरह दर्द को कम किया।

दूसरे दिन अशोक अपनी माँ को लेकर भोपाल पहुँचा और जिस अस्पताल में उसकी पत्नी भर्ती थी उसी में माँ को भर्ती कर दिया। डॉक्टर एक्स-रे के बाद बताया की कूल्हे में मल्टी फ़्रेक्चर है ऑपरेशन ज़रूरी है।

अशोक के पास पैसे नहीं थे उसने बड़े भाई को फोन लगाया, "भैया डॉ.क्टर ऑपरेशन की कह रहा है।"

"अरे प्लास्टर वग़ैरह करवा दो; हड्डियाँ हैं जुड़ जाएँगी। अब बुढ़ापे में ये सब होता है और देख लेना मैं दो-तीन हज़ार रुपये भेज दूँगा," बड़े भाई ने बहुत लापरवाही से कहा।

"ठीक है भैया पैसों की ज़रूरत नहीं है मैं देख लूँगा," अशोक की आँखों में झरझर आँसू बह रहे थे।

नरेश भैया को फोन लगाया, "भैया डॉक्टर ऑपरेशन के लिए कह रहा है।"

"क़रीब चालीस हज़ार का ख़र्च है,"अशोक ने टूटती आवाज़ में कहा।

"ठीक है मैं अपने दोस्त से बोल दूँगा वो तुम्हें पचास हज़ार की व्यवस्था कर देगा। आठ-दस दिन में लेकिन उसके पैसे लौटा देना," डॉ. नरेश की बात सुन कर अशोक आवाक रह गया।

"भैया मेरी लौटाने की स्थिति होती तो मैं आपसे क्यों माँगता? लेकिन अब आप चिंता न करें मैं व्यवस्था कर लूँगा," अशोक ने रोते हुए फोन काट दिया।

उसने छोटे भाई दीपक को फिर फोन नहीं लगाया उसे मालूम था कोई न कोई बहाना वहाँ से भी आ जायेगा। सोच रहा था माँ कितने प्यार से उन चारों को खाना खिलाती थी, दुलारती थी आज वही माँ दर्द में तड़फ रही है और वो बेबस है।

"पापा आप क्यों उदास हैं?" अशोक की पाँच साल की बेटी ने उसके आँखों को पढ़ते हुए पूछा।

"कुछ नहीं बेटा, बस दादी और तुम्हारी माँ ठीक हो जाएँ बस यही चिंता है," अशोक ने अपने आँसू रोकते हुए कहा।

"पापा रुकिए आप मैं अभी आई,"अशोक के चेहरे पर विस्मय के भाव थे।

"ये लीजिये पापा..." बेटी के हाथ में गुल्लक थी।

"मुझे मालूम है मम्मी और दादी के इलाज में बहुत पैसे लग रहे हैं। इसके सारे पैसों से आप दादी और मम्मी का इलाज करवा लीजिये," बहुत ही भोलेपन से बेटी ने गुल्लक को ज़मीन पर गिरा कर तोड़ दिया।

अशोक आवाक सा अपनी बेटी को देख रहा था दौड़ कर उसने अपनी बेटी को छाती से चिपका लिया। तभी दरवाज़े पर डॉक्टर भास्कर ने प्रवेश किया जिनके लड़के को अशोक कोचिंग में पढ़ाता था। उन्होंने अशोक की बेटी को गोद में लेकर प्यार किया।

"बेटी ये तुम्हारी गुल्लक के पैसों से नहीं, अब तुम्हारी दादी और माँ का इलाज मैं करूँगा अपने खर्च पर। अशोक तुम्हे चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैंने अस्पताल प्रबंधन से बात कर ली है और वो तैयार हो गए हैं," डॉ. भास्कर ने सांत्वना देते हुए अशोक से कहा।

अशोक की आँखों में अपनी बेटी और डॉक्टर भास्कर के लिए कृतज्ञता के आँसू थे।

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