नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
आलेख | सामाजिक आलेख डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
(नव वर्ष पर विशेष)
आज जब इस विषय पर लिखने बैठा तो पूरा साल स्मृतियों में किसी बच्चे की चीख़ चिल्लाहट कोरोना बीमारी की वीभत्स हँसी, भूखे मज़दूरों के फटे पाँवों के दर्द, भय कुल मिला कर दुःखद यादों की झिलमिलाहट सब कुछ खट्टी-बुरी यादें हालाँकि मैंने इन यादों को अपने मन में सँजो कर रख लिया है जैसे काला बाज़ारियों ने नोटों को तिजोरी में रखा हुआ था। लेकिन आपसे वादा है आप जब भी इनका हिसाब माँगेंगे मैं पूरा हिसाब दूँगा। आज मैं सिर्फ़ साहित्य एवम् मानवीय रिश्तों के सन्दर्भ में बात करूँगा।
यदि वर्तमान में हमने कुछ खोया है तो वह है – रिश्तों की बुनियाद। दरकते रिश्ते, कम होती स्निग्धता, प्रेम और आत्मीयता, इतिहास की वस्तु बनते जा रहे हैं। आज नव वर्ष के उपलक्ष्य में कुछ संकल्पों की मानव और मानवीयता को अभीष्ट आवश्यकता है।
जब हृदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है यही बात उसे संकल्पित करती है। यही संकल्प मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाते है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होते है।
हर साल के शुरुआत होने से पहले हम सब सौ प्रतिशत उत्साहित होते हैं कुछ अच्छा और नया करने के लिए पर जैसे ही हम नए वर्ष में घुसते हैं हम सब कुछ भूल जाते हैं। ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए क्योंकि यही उस वर्ष का असफलता का पहला कारण होता है।हम ऐसे वर्ष से गुज़र चुके हैं जिसने हमें बहुत सताया है मानसिक और आर्थिक रूप से तोड़ दिया है। इन बुरी यादों को इसी वर्ष में पीछे छोड़कर आज इस नव वर्ष के उपलक्ष्य में हम निम्न संकल्पों के लिए संकल्पित हों।
1. लोगों को अंदर से पसन्द करिये।
2. मुस्कराहट के साथ मिलिए।
3. लोगों के नाम ध्यान रखिये।
4. "मैं" से पहले "आप" को रखिये।
5. बोलने से पहले सुनिए।
6. क्या कहते हैं से कैसे कहते हैं ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
7. बिना अपना फ़ायदा सोचे दूसरों की सहायता करिए।
8. अपनी भेष-भूषा को उत्तम बनाइये।
9. आप जिसकी प्रशंसा कर सकें उसे खोजिये।
10. अपने को लगातार परखिये एवं सुधार करते रहिये।
सबसे महत्वपूर्ण बात अपने अन्दर सकारात्मक सुविचार लायें।अपने कार्य को सफल बनाने के लिए सही योजना बनायें। आपको अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपने आप से अटल वायदा करना पड़ेगा, तभी आप हमेशा अपने संकल्पों को सफल बनाने के लिए प्रेरित रहेंगे। पक्का कर लें कि चाहे रास्ते में जितनी बड़ी मुश्किल आए या छोटी-मोटी असफलता आए आप रुकेंगे नहीं चाहे बार-बार आपको जितना भी कोशिश करना पड़े ।
आज दुनिया में पश्चिमी साम्राज्यवाद का शिकंजा तेज़ी से कसता जा रहा है, जिसके कारण एशिया, अफ़्रीका तथा लैटिन अमेरिकी देशों के स्वतंत्र अस्तित्व और पहचान पर गंभीर ख़तरा उपस्थित है। दूसरी ओर हमारे समाज में नवजागरण तथा राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के ऊँचे आधुनिक आदर्शों को रौंदते हुए छद्म तुष्टिकरण और जातिवादी ताक़तें नए सिरे से सक्रिय हुई हैं। इधर भाषिक पृथकतावाद तथा अन्य संकीर्णताएँ भी पनपी हैं। लोगों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से विच्छिन्न किया जा रहा है और उपभोक्तावाद फैल रहा है। जन संचार माध्यम द्वारा सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाया जा रहा है, जिसके कारण लोग अपसंस्कृति के दल-दल में फँस रहे हैं। बुनियादी मानवीय मूल्य आज गहरे संकट में हैं।
भारत मिश्रित संस्कृतियों का संघ है अथवा यह भी कह सकते हैं कि वह कई राष्ट्रीयताओं का संघीकृत राज्य है। उपर्युक्त संदर्भ को भारत की आंतरिक समाज व्यवस्था पर घटाने का प्रयास करें तो भी स्थिति कुछ सहज नहीं होगी। आज भी हमारी मौलिक समस्याएँ क्या हैं? वर्तमान साहित्यकारों के लिये आज भी भारत की मौलिक समस्या भूख, ग़रीबी, बेरो्ज़गारी, असमानता, आइडेंटिटी क्राइसिस आदि ही हैं।आधुनिक साहित्य ने राष्ट्रवाद को विकास करने में अहम् भूमिका निभाया है। यही कारण है है कि भारत की जनसंख्या बहुधर्मी-बहुजातीय एवं बहुभाषी होने के बाद भी राष्ट्रवाद की ओर अग्रसर है।
साहित्य अब सामाजिक सक्रियता की ओर बढ़ना चाहता है। परिवर्तन की अदम्य चाह में कवि ‘एक्टिविस्ट’ के तौर पर ‘क़लम की ताक़त’ को नई भूमिका में 21वीं सदी में प्रस्तुत कर रहा है। आज का उस दौर का साक्षी है जहाँ मनुष्य के अमानवीकरण की गति में तीव्रता आई है। वैचारिक दृष्टि से समाजवाद का स्वप्न ध्वस्त हुआ है तो यांत्रिक सभ्यता का क़हर भी विद्यमान है। मानवता को खूँटियों पर टाँग देने का प्रयास हो रहा हो, आज साहित्यकार को न केवल आक्रोश व्यक्त करना होता है, बल्कि वह उस विचारहीनता को चुनौती दे रहा है।
आज नए-नए संगठनों का जन्म होने लगा। नए लेखकों और साहित्यकारों के छोटे-छोटे समूहों ने, छोटी-छोटी जगहों से, इस दौर में अपनी सामर्थ्य के अनुसार, छोटी पत्रिकाओं का प्रकाशन और अक़्सर मुफ़्त या सामान्य मूल्य पर उनका वितरण निष्ठापूर्ण उत्साह के साथ किया जा रहा है ताकि आम पाठक तक उसकी पहुँच हो सके। आज साहित्यकार इस बात के मुखापेक्षी नहीं रह गए कि वे बड़ी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में छपते हैं या नहीं। सेठाश्रयी पत्रिकाओं के बहिष्कार का तो नारा ही चल पड़ा है। आज के दौर में 'ज़रूरी यह हो गया है कि रचित साहित्य सामाजिक परिवर्तन का पक्षधर है या नहीं इस बात का मूल्यांकन स्वयं साहित्यकार एवम् समाज को करना है’।
कोरोना के इस भीषण भय भरे माहौल में साहित्य ने संजीवनी बन कर लोगों को भयाक्रांत होने से बचाया है। 2020 सदियों तक इस महामारी की कहानी बनकर इतिहास में अंकित हो चुका है।
आज के साहित्यकार के लिए चुनौती है कि वह सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य का बहुआयामी विश्लेषण करें एवं सामाजिक जीवन के उच्चत्तर मूल्यों एवं आदर्शों के सामने सांप्रदायिकता एवम् तुष्टिकरण से उत्पन्न हो गए ख़तरों को रेखांकित करे। इस संदर्भ में सांस्कृतिक माध्यमों, विशेषकर लघु-पत्रिकाओं की बढ़ी हुई ज़िम्मेदारियों को महसूस करते हुए संकट की इस घड़ी में मिलजुल कर अपनी प्रखरतम भूमिका का ऐतिहासिक दायित्व निभाने के लिए आज का रचनाकार तैयार है।
साहित्य जब जन सामान्य की विषय वस्तु बन जाता है तभी वह आम संवेदनाओं का सम्प्रेषण कर पाता है।
आज़ादी के 73 साल पूरे हो जाने पर भी हवा, पानी और रोटी की समस्या हल नहीं होना, उस भ्रष्ट तंत्र का चेहरा प्रस्तुत करता है, जिसका प्रभाव इस दशक तक जारी है। आज के साहित्य का आक्रोश देर तक संयमित नहीं रह पाता। मनुष्य के राक्षस बनने की प्रक्रिया पर आज का साहित्य उस विचारहीन, बेढाल, निर्द्वन्द्व अथवा मरे हुए लोगों की भाँति पीढ़ी पर व्यंग्य कर रहा है। रचनाकार अपनी रचनाओं में वर्तमान के प्रति चिंता व्यक्त करता है, देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करता है, इन स्थितियों में सुधार की कामना करता है, जनता का आह्वान करता है और स्वयं सक्रियतापूर्वक भाग भी लेता है।
प्रगति, विकास, संस्कृति, इतिहास-भूगोल आदि की जड़ भाषा होती है, और भाषा को समृद्ध साहित्य करता है। साहित्य प्रत्येक वर्तमान को कलात्मक एवं यथार्थ रूप में समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता हैं। मनुष्य चाहे जितना प्रगति करले, विकास की डींगे हाँक ले, सभ्यता का दंभ भरे; पर जब तक वह भीतर से सभ्य नहीं होता, तब तक मनुष्य की सही मायने में प्रगति नहीं हो सकती। हम सभी 2021नव वर्ष के शुरुआत से संकल्प लें कि हम अपने देश समाज और पर्यावरण को अपनी लेखनी से ही नहीं वरन अपने आचरण से एक नयी दिशा प्रदान करने की कोशिश करेंगे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
सामाजिक आलेख | डॉ. सत्यवान सौरभ(बुद्ध का अभ्यास कहता है चरम तरीक़ों से बचें…
अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
सामाजिक आलेख | डॉ. सुशील कुमार शर्मावैज्ञानिक दृष्टिकोण कल्पनाशीलता एवं अंतर्ज्ञान…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीत-नवगीत
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
कविता
- अनुत्तरित प्रश्न
- आकाशगंगा
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जैसे
- ठण्ड
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- पत्ते से बिछे लोग
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- यज्ञ
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के नज़दीक
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- स्वप्न से तुम
- हर बार लिखूँगा
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे क़लमकार
काव्य नाटक
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
दोहे
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- गणपति
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- टेसू
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रेम
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- होली
लघुकथा
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शेष शुभ
- हर चीज़ फ़्री
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- होली पर कुण्डलिया
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं